भारत सरकार ने 23 सितम्बर 1952 को डॉ० मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया तथा इस आयोग में निम्न सदस्य थे।
- अध्यक्ष- डॉ० ए० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर, कुलपति मद्रास, विश्वविद्यालय
- सदस्य सचिव – ए०एन० बसु, सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन, दिल्ली
सदस्य-
- जान क्रिस्टी, प्राचार्य, जीसस कालिज, ऑक्सफोर्ड
- डॉ० केनेव रस्ट विलियम्स एसोसियेट डायरेक्टर, साउदर्न रीजनल ऐजुकेशन बोर्ड, अटलांटा
- श्रीमती हंसा मेहता, कुलपति, बड़ौदा विश्वविद्यालय
- जे०ए० तारापोरवाला, निदेशक, तकनीकी शिक्षा, बम्बई सरकार
- डॉ० के० एल० श्रीमाली, प्राचार्य, विद्या भवन टीचर्स ट्रेनिंग कालिज, उदयपुर
- एम०टी० व्यास, प्राचार्य, न्यू इरा स्कूल, बम्बई
- के०जी० सैयेदेन, सह सचिव, शिक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार
सहायक सचिव डॉ० एस०एम०एम० चारी, एजूकेशन आफिसर, शिक्षा मन्त्रालय भारत सरकार
आयोग को भारत में माध्यमिक शिक्षा के सभी पक्षों की वर्तमान स्थिति की जाँच करने तथा उस पर आख्या देने एवं सम्पूर्ण राष्ट्र में हमारी आवश्यकताओं व संसाधनों के अनुरूप एक सुसंगठित व उचित समान माध्यमिक शिक्षा प्रणाली प्रदान करने के लिए निम्न बिन्दुओं के सन्दर्भ में उपाय सुझाने का कार्य दिया गया
- माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य, संगठन तथा विषयवस्तु
- इसका प्राथमिक, बेसिक तथा उच्च शिक्षा से सम्बन्ध
- विभिन्न प्रकार के माध्यमिक स्कूलों में परस्पर सम्बन्ध
- अन्य समस्याएँ
स्पष्ट है कि इस आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन करके उनके सम्बन्ध में सुझाव देना था। प्रश्नावली व साक्षात्कारों की सहायता से माध्यमिक
शिक्षा की विविध समस्याओं का परिचय पाकर आयोग ने उनका समाधान खोजने का प्रयास किया। आयोग ने 29 अगस्त 1953 को 240 पृष्ठों का अपना प्रतिवेदन भारत सरकार। द्वारा माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दी गई प्रमुख सिफारिशें निम्नवत् थी को प्रस्तुत किया। आयोग
भाषावाद की समस्या एवं समाधानों की विवेचना कीजिए।
- त्रिभाषा सूत्र (Three-Language Formula) आयोग ने त्रिभाषा सूत्र का समर्थन किया तथा माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा का समाधान मातृभाषा प्रादेशिक भाषा रखने का सुझाव दिया। मिडिल स्कूल स्तर पर कम से कम दो भाषाएँ पढ़ाई जानी चाहिए। जूनियर बेसिक स्तर के अन्त में अंग्रेजी व हिन्दी पढ़ाई जानी चाहिए, परन्तु किसी भी एक वर्ष में दोनों भाषाएँ शुरू नहीं करनी चाहिए। उच्च माध्यमिक स्तर पर कम से कम दो भाषाएँ पढ़ाई जानी चाहिए जिनमें से एक मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम (Curriculum) आयोग ने माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम के क्षेत्र को विस्तृत बनाने का सुझाव दिया। आयोग ने कहा कि पाठ्यक्रम छात्रों की सभी शक्तियों का विकास करने वाला हो। उसमें विविधता का समावेश हो, यह सामाजिक जीवन से पनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हो, पाठ्यक्रम के विषय एक दूसरे से सम्बन्धित हो, तथा यह छात्रों को अवकाश के समय का सदुपयोग करना भी सिखलाएँ। पाठ्यक्रम निर्माण के मूलभूत सिद्धान्तों की चर्चा भी आयोग ने की।
- पाठ्य-पुस्तकें (Text Books) पाठ्यपुस्तकों के स्तर को ऊँचा करने तथा इनके लेखन व प्रकाशन आदि के लिए आयोग ने राज्य स्तरीय पाठ्यपुस्तक मंडल बनाने की सिफारिश की। आयोग ने पाठ्यपुस्तकों में जल्दी-जल्दी परिवर्तन करने को हतोत्साहित किया।
- शिक्षण विधियाँ (Teaching Method) : आयोग ने कहा कि शिक्षण विधि का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं होना चाहिए वरन मूल्यों, दृष्टिकोणों व कार्य आदतों का विकास करना होना चाहिए। शिक्षण को मौखिक व स्मरण से हटाकर उद्देश्यपूर्ण तथा वास्तविक परिस्थितियों पर आधारित बनाया जाना चाहिए। क्रिया विधि तथा प्रोजेक्ट विधि के सिद्धान्तों को अपनाना चाहिए। प्रत्येक स्कूल में अच्छे पुस्तकालय होने चाहिए।
- अनुशासन (Discipline) अनुशासन को बढ़ाने के लिए अध्यापक छात्र सम्पर्क, हाउस प्रणाली तथा परिषद् को स्कूलों में लागू करना चाहिए।
- धार्मिक व नैतिक शिक्षा (Religions and Moral Education): स्कूलों में धार्मिक शिक्षा स्वैच्छिक आधार पर दी जा सकती है।
- पाठ्येत्तर क्रियाएँ (Extra-Curricular Activities) पाठ्येत्तर क्रियाओं को शिक्षा का एक अभिन्न अंग मानकर स्कूल में इनकी व्यवस्था की जानी चाहिए। सभी क्रियाओं को इन क्रियाओं में समय देना चाहिए।
- परामर्श व निर्देशन (Guidance and Counselling) : शैक्षिक परामर्श व निर्देशन पर बल दिया जाना चाहिए। सभी स्कूलों में प्रशिक्षित परार्मशदाताओं की सेवाएं धीरे-धीरे उपलब्ध करानी चाहिए।
- माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Secondary Education): आयोग ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य लोकतान्त्रिक नागरिकता का विकास करना, नेतृत्व की शिक्षा प्रदान करना, व्यावसायिक कौशल में वृद्धि करना, व्यक्तित्व का विकास करना तथा देश-प्रेम की भावना का विकास करना होना चाहिए।
- माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन (Reorganisation of Secondary Education) : आयोग ने स्कूल शिक्षा का पुनर्गठन करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि प्राथमिक या जूनियर बेसिक शिक्षा 4 वर्ष की हो, सीनियर बेसिक शिक्षा 3 वर्ष करने तथा माध्यमिक शिक्षा 4 वर्ष की हो। इस आयोग ने इण्टरमीडिएट समाप्त करने तथा स्कूल शिक्षा व प्रथम उपाधि स्तर पर एक-एक वर्ष बढ़ाने का प्रस्ताव दिया।
- बहु उद्देश्य विद्यालय (Multi Purpose Schools) व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा पर बल देते हुए आयोग ने बहुउद्देश्य स्कूल खोलने का सुझाव दिया जिससे पाठ्यक्रम में विविधता आ सके तथा छात्र अपनी रुचि क्षमता व आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर सकें।
- कृषि शिक्षा (Agriculture Education): आयोग ने सभी राज्यों के द्वारा ग्रामीण विद्यालयों में कृषि शिक्षा प्रदान करने के लिए वि शेष प्राविधान करने की सिफारिश की।
- तकनीकी शिक्षा (Technical Education) आयोग ने बड़ी संख्या में तकनीकी स्कूल खोलने का सुझाव दिया। प्रशिक्षुत्व प्रशिक्षण को तकनीकी शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग बनाने पर भी जोर दिया गया।
- आवासीय शिक्षा (Residential School) मुदालियर आयोग ने आवासीय विद्यालय विशेषकर चुने हुए ग्रामीण क्षेत्रों में खोलने की अनुशंसा की।
- विकलांगों की शिक्षा (Education of Handicapped) : आयोग ने विकलांग बालकों की आवश्यकताओं के अनुरूप बड़ी संख्या में विद्यालय खोलने की सिफारिश की।.
- सहशिक्षा (Co-education): आयोग ने कन्या विद्यालयों तथा सह शिक्षा स्कूलों में गृह विज्ञान की शिक्षा की विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराने का सुझाव दिया। लड़कियों के लिए पृथक विद्यालयों की मांग वाले स्थानों पर कन्या विद्यालय खोलने का प्रयास करने का सुझाव भी दिया गया।
- स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education) सभी राज्यों में विद्यालय चिकित्सा सेवा शुरू की जानी चाहिए। सभी छात्रों की चिकित्सा जाँच तथा तदनुसार उपचार किया जाना चाहिए।]
- अध्यापक (Teachers) : अध्यापक के वेतन तथा सेवाशर्तों में सुधार किया जाना चाहिए। उनके प्रशिक्षण की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
- छात्र संख्या (Number of Students) प्रत्येक कक्षा में 30 से 40 छात्र होने चाहिए। प्रत्येक स्कूल में 500 से 750 के बीच छात्र होने चाहिए।
- अवधि (Duration) : वर्ष में कम से कम 200 कार्य दिवस होने चाहिए। प्रत्येक सप्ताह में कम से कम 45 मिनट के 35 कालांश होने चाहिए।
- वित्त व्यवस्था (Finance) तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा के विकास के लिए औद्योगिक शिक्षा उपकर लगाना चाहिए। केन्द्र को माध्यमिक शिक्षा के व्यय का एक भाग वहन करना चाहिए।
- परीक्षा प्रणाली (Examination System) परीक्षा सुधार की चर्चा करते हुए आयोग ने मूल्यांकन की नवीन अवधारणा को अपनाने परीक्षा को वस्तुनिष्ठ बनाने, ग्रेड प्रणाली को प्रारम्भ करने तथा छात्रों के संचयी प्रगति तैयार करने जैसी महत्वपूर्ण सिफारिशें की।
- संगठन तथा प्रशासन (Orgnization and Administration): आयोग ने प्रत्येक राज्य में ऐसा माध्यमिक शिक्षा परिषद् बनाने का सुझाव दिया जिसमें 25 से अधिक सदस्य न हो तथा शिक्षा निदेशक जिसका अध्यक्ष हो। परिषद् की एक उपसमिति परीक्षा के कार्य को देखे। आयोग ने राज्य परिषदों के गठन का भी सुझाव दिया।
- निरीक्षण (Inspection): आयोग के विचार में निरीक्षक का मुख्य कार्य समस्याओं का अध्ययन करके सुझाव देना होना चाहिए।
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