अलाउद्दीन खिलजी कौन था ? – अलाउद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम ‘अली गुर्शास्प’ था। उसके पिता का नाम शहाबुद्दीन मसरूद खिलजी था जो कि जलालुदीन खिलजी का भाई था। इस प्रकार अलाउद्दीन सुल्तान जलालउद्दीन खिलजी का भतीजा था और उसका लालन पालन जलालुद्दीन के यहां ही हुआ था। उसका विवाह भी जलालुद्दीन ने अपनी पुत्री से कर दिया था।
जलालुद्दीन के सिंहासनारोहण के समय अलाउद्दीन, उत्स्वाध्यक्ष (अमीर-ए-तुजुक) नियुक्त किया गया। उसके चाचा ने उसे कड़ा का जागीरदार बना दिया। यहीं से अलाउद्दीन के मस्तिष्क में बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाओं ने जन्म लिया। बरनी के अनुसार, “कड़ा के विद्रोहियों की कपटी सलाहों ने उसके दिमाग में घर कर लिया तथा तथा उस पर प्रदेश पर अधिकार कर लेने के बाद पहले वर्ष से ही किसी दूरस्थ स्थान में जाकर धन एकत्रित करने के उद्देश्य से काम करने लगा।” 1292 ई. में उसने मालवा पर आक्रमण किया तथा मिलसा का किला जीत लिया। उसने 1294 ई. में अचानक देवगिरि पर चढ़ाई की। वहां का राजा रामचन्द्रदेव युद्ध के लिए तैयार नहीं था। अतः उसने सन्धि की वार्ता चलाई, लेकिन उसके पुत्र शंकरदेव ने अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण किया, किन्त पराजय हुई। अब राजा को अधिक कठोर शर्तों पर सन्धि करनी पड़ी। इसके फलस्वरूप अलाउद्दीन को प्रचुर धन सम्पत्ति प्राप्त हुई, जिससे अलाउद्दीन के हृदय में सुलतान बनने की प्रबल इच्छा जाग्रत हो उठी तथा दिल्ली के सिंहासन को पाने के लिए उसने अपने चाचा एवं ससुर की हत्या का षडयंत्र रचा।
सिंहासनारोहण
जलालुद्दीन अपने भतीजे और दामाद अलाउदीन की देवगिरि की महान् विजय से प्रसन्न हुआ। यह उसे बधाई देने तथा अपना कुछ (लूट का) भाग लेने के लिए कड़ा की ओर बढ़ा। अहमद चप, आदि कुछ अनुभवी एवं स्वामिभक्त अधिकारियों के मना करने पर भी वह न माना। जब अलाउद्दीन सुल्तान से मिला तो अलाउद्दीन ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या करवा दी और अपने आपको दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया। इस प्रकार अपने चाचा की हत्या करके अलाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान बना।
अलाउद्दीन की आरम्भिक कठिनाईयाँ (समस्याएँ)
अलाउद्दीन ने धोखे से अपने चाचा की हत्या करके अपने को सुल्तान घोषित किया था, लेकिन उसकी स्थिति सुरक्षित न थी। राजसत्ता पर पूरी तरह अधिकार करने के लिए उसे निम्नलिखित अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा
- वह एक अपहर्ता था। उसने उपकारी चाचा और उदार सुल्तान की हत्या की थी। अतः जन साधारण जनता उसे निर्मम हत्यारा एवं कृतघ्न मानकर उससे घृणा करने लगी थी।
- जलाली अमीर अपने स्वानी के हत्यारे को कभी क्षमा नहीं कर सकते थे।
- अलाउद्दीन अभी कड़ा में था। यहां से दिल्ली काफी दूर थी। वहां सुल्तान जलालुद्दीन की विधवा मलिका-ए-जहां ने अपने छोटे पुत्र केंद्र खां को रुकनुद्दीन इब्राहिम के नाम से गहरी पर बैठा दिया था। इस तरह राजधानी अभी जलालुदीन के पुत्र के अधिकार में थी।
- भूतपूर्व सुल्तान का बड़ा पुत्र अर्कली खां मुल्तान और सिन्ध का शासक था।
- पंजाब में खोखर दिल्ली सल्तनत के विरोधी थे।
- सल्तनत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मंगोल निरन्तर आक्रमण कर रहे थे।
समस्याओं का समाधान
परिस्थिति भयंकर थी, लेकिन अलाउद्दीन कम साहसी न था। उसने शक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ कठिनाइयों का सामना किया। समस्याओं के समाधान के लिए उसने अग्रलिखित कार्य किए
- उसने सहयोगियों और समर्थकों को अनेक उपाधियों, पद एवं धन देकर अपने पक्ष को सुदृढ़ बनाया। उसने अपने भाई अलमास बेग को उलूग खां की उपाधि दी।
- उसने भूतपूर्व सुल्तान के विरोधी अमीरों सैनिकों तथा असन्तुष्ट जनता पर धन लुटा कर अपना समर्थक बना लिया। बरनी लिखता है, “अलाउद्दीन की धन रूपी वर्षा की बाद में बढ़े सुल्तान की स्मृति रूपी नौका डूब गयी।” मे
- उसने अनेक जलाली अमीरों को रिश्वत देकर अपनी ओर मिला लिया।
- अधिक वेतन का लोभ देकर 60 हजार पैदल और 60 हजार घुड़सवार सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार कर ली।
- जो लोग धन के लोभ में उसकी ओर आये थे, उनकी धन सम्पत्ति छीन ली और उनमें से कई मार दिये गये, क्योंकि स्वार्थसिद्धि के बाद वह उनको राजद्रोही समझने लगा था।
दिल्ली पर अधिकार
भाग्य ने अलाउद्दीन का साथ दिया। जलालुद्दीन का जीवित बड़ा पुत्र अर्कली खां अपनी वीरता एवं रणकुशलता के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन मलिका-ए-जहां ने उसके छोटे पुत्र इब्राहिम को सुल्तान घोषित कर दिया। इससे वह नाराज हो गया और उसने दिल्ली में आकर अपने छोटे भाई के पक्ष को मजबूत करने की कोशिश नहीं की इब्राहिम ने बंदायूं के स्थान पर अलाउद्दीन का सामना किया, लेकिन हार गया और भाग निकला। अलाउद्दीन ने आगे बढ़कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। 20 अक्टूबर, 1296 ई. में वह राजगद्दी पर बैठा और उसके नाम का खतना पड़ा गया और सिक्के डाले गए।
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अपनी सत्ता को निष्कण्टक बनाने के लिए अलाउद्दीन ने जलाउद्दीन के परिवार के विनाश का निश्चय कर लिया। मलिका-ए-जहां को बन्दी बना लिया। दोनों राजकुमारों को अंधा बना दिया। इस तरह चतुर कुटनीति द्वारा अपने प्रतिद्वन्द्वियों को अपने मार्ग से हटाकर दिल्ली का सुल्तान बना।
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