अलाउद्दीन की सैन्य व्यवस्था – अलाउद्दीन खिलजी एक बुद्धिमान और योग्य शासक था। उसने सैन्य शक्ति से ही सत्ता प्राप्त की थी एवंम अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। वह सैन्य व्यवस्था के महत्व को भली भांति समझता था। इसीलिए उसने एक समृद्ध और सुसज्जित सेना का गठन किया। उसने अपनी विशाल सेना से अमीरो व सरदारो को भयभीत कर दिया। उसने सरदारों को अपनी निजी सेना रखने की अनुमति न दी। फरिश्ता का विचार है कि अलाउद्दीन के पास 4.75,000 अश्वारोही सैनिक थे वह अपने सैनिको को उत्तम वेतन देता था। एक साधारण मुख्लब को 234 टंके प्रतिवर्ष वेतन मिलता था। सवार का वेतन 156 टंके था। सैनिकों को नियमित रूप से वेतन मिलता था और उनके कार्यों का भी निरीक्षण किया जाता था।
प्रबुद्ध निरंकुश शासक के रूप में फ्रेडरिक महान का उल्लेख कीजिए।
अलाउद्दीन ने ‘दाग’ या घोड़ों पर निशान लगाने और विस्तृत सूचीपत्रों की तैयारी के लिए ‘हुलिया’ प्रथा प्रचलित की। इन सब सुधारों का फल यह हुआ कि सैनिकों व घोड़ों को पहचानने में सुल्तान किसी प्रकार की धूर्तता का शिकार नहीं हो सकता था। सेना की प्रत्येक इकाई में रहते थे और सैनिक अधिकारियों के व्यवहार के विषय में मुल्तान के पास दैनिक सूचनाएं पहुंचाते रहते थे। अलाउद्दीन ने दीवाने अर्ज (सेना विभाग) की स्थापना की जिसका सबसे बड़ा अधिकारी आरिजे ममालिक कहलाता था। वही सेनाओं की भर्ती और संगठन का कार्य देखता था।