अलाउद्दीन की मंगोल नीति – अलाउद्दीन के समय में भारत की उत्तर पश्चिम सीमा से मंगोल के निरन्तर आक्रमण हुए। मंगोलों का दबाव सिन्ध और पंजाब पर निरन्तर बढ़ता गया था और ममलक सुल्तानों के समय में उनकी सीमाए रावी नदी तक हो गयी थी। गजनी और काबुल उनके अधीन थे जो उनके आक्रमणों के आधार बने हुए थे। सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के समय में भी मंगोलों का आक्रमण हुआ था। अलाउद्दीन के समय भी कुछ अन्तिम वर्षों को छोड़कर भारत पर मंगोलों के आक्रमण का भय बना हुआ था।
यद्यपि चंगेज खाँ की मृत्यु के पश्चात मंगोल साम्राज्य के विभाजन और उनके नेताओं के पारस्परिक युद्धों के कारण मंगोलों की शक्ति पहले की अपेक्षा दुर्बल हो गयी थी तथापि एशिया में मंगोल उस समय तक एक महान शक्ति थे। इसके अतिरिक्त इस समय मंगोल आक्रमणों का उद्देश्य पहले से भिन्न था। जबकि पहले मंगोलों के आक्रमणों का उद्देश्य लूटमार और अपने प्रभाव का विस्तार मात्र था। लेकिन अलाउद्दीन के समय में हुए उनके आक्रमणों का उद्देश्य भारत विजय तथा प्रतिशोध की भावना थी। मंगोल की विभिन्न शाखाओं में से पर्शिया (ईरान) के इल- खानों और ट्रान्स ऑसियाना के चगताइयों ने इस समय में भारत पर आक्रमण किये। परन्तु भाग्यवश इन दोनों मंगोल शाखाओं में पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता थी और दोनों मध्य एशिया में ही नहीं बल्कि भारत में भी एक दूसरे के विरुद्ध साम्राज्य विस्तार की लालसा रहती थी। मंगोलों के आक्रमण के समय अफगान तथा खोक्खर जातियाँ भी सुल्तानों से असंतुष्ट भारतीय अमीर कभी-कभी मंगोलों में मिल जाते थे। इस कारण मंगोलों के आक्रमण भारत के लिए एक स्थायी खतरा बने हुए थे।
अलाउद्दीन के काल में हुए मंगोल आक्रमण
1297-98 ई. में ट्रान्स आक्सियाना के शासक दाऊद खाँ ने एक लाख की सेना कादर के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजी। पंजाब में प्रवेश करके उन्होंने लाहौर के सीमावर्ती क्षेत्रों को सूटना आरम्भ किया। अलाउद्दीन ने जफरखों और उलूगखों को उनके विरूद्ध भेजा जिन्होंने मंगोलों को जालन्धर के निकट परास्त कर दिया।
1299 में सलदी के नेतृत्व में मंगोलों का दूसरा आक्रमण हुआ। सलदी दाऊद खाँ का भाई था। उसने सेहवान पर अधिकार कर लिया। परन्तु जफरखों ने उसे परास्त किया और सेहबान उससे छीन लिया। सलदी और मंगोल स्त्री-पुरुषों को बन्दी बनाकर दिल्ली भेज दिया।
1299 ई. के अन्त में दाऊद खाँ ने अपने पुत्र कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में दो लाख मंगोलों की एक शक्तिशाली सेना को सलदी खाँ की पराजय और मृत्यु का बदला लेने तथा भारत को विजंग करने के उद्देश्य से भेजा वे बिना कोई बड़ा युद्ध लड़े दिल्ली के निकट पहुँच गये। उस अवसर पर अलाउद्दीन ने एक योग्य शासक और दृढ़ योद्धा होने का परिचय दिया और अपने मित्र अला-उल-मुल्क तक की सलाह को नहीं माना। जिसमें सुल्तान को उचित अवसर तक युद्ध न करने और मंगोलों को तंग करके दुर्बल बनाने की सलाह दी। अलाउद्दीन ने अपनी सेना लेकर कीली के मैदान में पहुँच गया। स्वयं सुल्तान और नुसरत खाँ सेना के मध्य भाग में उलूग खाँ वाम पक्ष और जफर खा दाहिने पक्ष पर था। जफर खो मंगोलों से युद्ध के लिए बेचैन था और उसने कुतलुग ख्वाजा को द्वन्द्व युद्ध की चुनौती दी थी।
परन्तु इस बीच करने में जफर खाँ के आक्रमण से मंगोलों का वाम पक्ष टूट गया और वे भाग खड़े हुए। थोड़े समय • पश्चात मंगोलों ने जफर खाँ पर भीषण आक्रमण किया और जफर खाँ ने उनका मुकाबला नही किया बल्कि उनको भागने पर बाध्य किया। जफर खाँ ने 18 कोस तक मंगोलों का पीछा किया परन्तु जब वह उन्हें भगा कर केवल एक हजार सैनिकों के साथ वापस लौटा तो नार्गी के नेतृत्व में मंगोलों ने उसे घेर लिया। मंगोलों की संख्या प्रायः 10 हजार थी। परन्तु फिर भी बचकर भागन के स्थान पर जफर खाँ ने उनसे भयंकर युद्ध किया और वह उसका एक एक सैनिक और सरदार उस युद्ध में मारे गये।
जफर खाँ के शीर्ष और भारतीय सेना की वीरता से मंगोल इतने प्रभावित हुए कि वे उसी रात्रि को 30 कोस पीछे हट गये और फिर वापस चले गये। मंगोलों का चौथा आक्रमण उस समय हुआ जब अलाउद्दीन चित्तौड़ के घेरे से वापस लौटकर दिल्ली पहुंचा ही था उसकी दिल्ली की सेना अपर्याप्त और दुर्बल स्थिति में थी और एक बड़ी सेना तेलंगाना के आक्रमण (1303 ई.) पर जा चुकी थी। मंगोल नेता तार्गी ने 1, 20,000 घुड़सवार लेकर अत्यन्त द्रुत गति से दिल्ली पर आक्रमण किया।
अलाउद्दीन मंगोलों से युद्ध करने की स्थिति में न था। उसने सीरी के किले में अपनी सुरक्षा का प्रबन्ध किया। मंगोलों ने अलाउद्दीन की सहायता के लिए उत्तर पश्चिम से आने वाली एक मलिक जूना और छज्जू के नेतृत्व में पूर्व से आने वाली सेनाओं के मार्ग को बन्द कर दिया। परन्तु मंगोल घेरा डालकर किले को जीतने की कला में दक्ष न थे और सम्भवतया, वे इसके लिए तैयार होकर भी नहीं आये थे मध्य एशिया की राजनीति के कारण वे अधिक समय तक भारत में रह भी नहीं सकते थे। इन कारणों से दो माह के घेरे के पश्चात सीरी के किले को जीतने में असफल होकर वे दिल्ली की सड़क और उसके निकटवर्ती क्षेत्र को ही लूटकर वापस चले गये।
ताग के आक्रमण ने अलाउद्दीन को सचेत कर दिया। उसने सौरी के किले को दृढ किया। दिल्ली के किले की मरम्मत करायी। सीरी को अपनी राजधानी बनाया। उस पश्चिम सीमा के पुराने किले की मरम्मत करायी। कुछ नये किले बनवायें। उन किलों में स्थायी सेना रखी। सीमान्त प्रदेश की रक्षा के लिए पृथक सेना और एक सुबेदार (सीमारक्षक) की नियुक्ति की तथा अपनी सेना की संख्या और युद्ध कुशलता में वृद्धि की।
1305 ई. में अलीबेग और तार्ताक के नेतृत्व में 50 हजार की मंगोल सेना ने पुनः आक्रमण किया। पिछले आक्रमण का नेता तार्गी भी उनके साथ सम्मिलित हो गया। सीमा स्थित किलों से बचकर मंगोल अमरोहा तक पहुँच गये। अलाउद्दीन ने मलिक काफूर और गाजी मलिक को उनके विरूद्ध भेजा। जिन्होंने वापस जाती हुई मंगोल सेना को घेर कर परास्त कर दिया। अलीवेग और तार्ताक को कैद करके दिल्ली लाया गया। जहाँ उन्हें कत्ल कर दिया गया और उनके सिरों को सीरी के किले की दीवार में चुनवा दिया गया। तार्गी अमरोहा पहुँचने के पहले ही एक युद्ध में मारा जा चुका था।
इस युद्ध के पश्चात गाजी मलिक तुगलक को पंजाब का सूबेदार एवं सीमारक्षक तथा अलपखों को गुजरात का सूबेदार बनाया गया। 1306 ई. में अलीबेग और तार्ताक की मृत्यु का बदला लेने के लिए मंगोलों ने पुनः आक्रमण किया। उनकी एक सेना कवल के नेतृत्व में मुल्तान होती हुए रावी नदी की ओर बढ़ी तथा एक अन्य इकबालमंद और तई-बू के नेतृत्व में नागौर की तरफ बढ़ी लेकिन बुरी तरह पराजित हुयी और लगभग सम्पूर्ण सेना नष्ट कर दी गयी। अब मंगोल बहुत आंतकित हो गये और उन्होंने भारत ‘विजय का सपना त्याग दिया।
मंगोल आक्रमण के प्रभाव / परिणाम
(1) सैनिक तैयारी
दिल्ली सल्तनत की आन्तरिक एवं बाह्य नीति पर मंगोलों के आक्रमण का गम्भीर प्रभाव पड़ा। जब तक यह संकट था तब तक सुल्तान को अपनी सैनिक शक्ति बढ़ानी पड़ी। इल्तुतमिश से लेकर मुहम्मद तुगलक तक सभी को अपनी सेनाओं की ओर अधिक ध्यान देना पड़ता था तथा उनके संगठन पर काफी धन व्यय करना पड़ता था।
(2) विजय अभियान में अवरोध
उत्तर पश्चिम के संकट के कारण साधारण कोटि के सुल्तानों के लिए स्वतन्त्र हिन्दू राज्यों की विजयों के लिए रणयात्राएँ को करना असम्भव हो गया। इन परिस्थितियों में केवल अलाउद्दीन खिलजी ही ऐसा शासक हुआ जो देश की सुरक्षा तथा स्वतन्त्र देशी राज्यों को विजय करने की नीति का साथ-साथ अनुसरण कर सका। यद्यपि मुहम्मद तुगलक ने भी उसकी नीति का अनुसरण किया परन्तु उसे विनाशकारी असफलता का सामना करना पड़ा।
(3) धन-जन की हानि
मंगोलों के आक्रमण से देश को धन और जन की अपार क्षति हुई। असंख्य सैनिक मारे गए और आक्रमणकारी देश से विपुल सम्पत्ति लूट कर अपने साथ ले गये।
इब्राहीम लोदी की असफलताओं का उल्लेख कीजिए।
(4) प्रजा में भय का प्रसार
मंगोल बहुत ही निर्दयी एवं क्रूर थे। इन्होंने भारत में लोगों की नृशंसतापूर्वक संहार किया। इसलिए भारत के लोग उन्हें घृणा और भय की दृष्टि से देखने लगे।
(5) सल्तनत पर कुप्रभाव
मंगोलों के आक्रमणों का दिल्ली सल्तनत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। शासकों का सारा ध्यान इसी ओर लगा रहता था। जिसके कारण आन्तरिक अव्यवस्था भी पैदा हो जाया करती थी। बार-बार के आक्रमण ने दिल्ली सल्तनत को कमजोर बना दिया।