अलाउद्दीन के आर्थिक सुधार अथवा व बाजार नियन्त्रण नीति का वर्णन कीजिए।

अलाउद्दीन खिलजी न केवल एक महान विजेता था बल्कि यह एक कुशल प्रशासक भी था। अलाउद्दीन के आर्थिक सुधार अथवा बाजार नियन्त्रण व्यवस्था ने उससे भारत के शासकों में एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया है। उनकी बाजार नियन्त्रण व्यवस्था की न केवल तत्कालीन इतिहास कारों ने प्रशंसा की है बल्कि आधुनिक इतिहासकारों ने भी खुले दिल से उसकी प्रशंसा की है।

बाजार नियन्त्रण व्यवस्था के कारण

अलाउद्दीन के आर्थिक सुधार के दो कारण थे प्रथम वह अपनी जनता को उचित मूल्य पर और आसानी से दैनिक उपयोग की वस्तुएँ उपलब्ध कराना चाहता था और दुकानदारों की मनमानी पर रोक लगाना चाहता था। द्वितीय और वास्तविक कारण था- अपने सिंहासन की सुरक्षा करना। अलाउद्दीन सेना के महत्व को भली भांति समझता था उसने सैन्य बल से ही सत्ता प्राप्त की थी। अलाउद्दीन के पास एक विशाल सेना थी और सेना को नियमित और विश्वास योग्य बनाये रखने के लिए आवश्यक था कि उसके दैनिक उपयोग की वस्तुएँ सैनिकों को आसानी से ओर उचित मूल्य पर उपलब्ध होती रहें। अतः अलाउद्दीन ने उपरोक्त उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए बाजार एवं मूल्य नियन्त्रण की विस्तृत योजना तैयार की।

अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था अथवा आर्थिक सुधार

अलाउद्दीन ने सेना और जनता दोनों के लाभ के लिए बाजार नियंत्रण व्यवस्था स्थापित की। यह व्यवस्था उसने सम्पूर्ण साम्राज्य में लागू की। इस व्यवस्था के अन्तर्गत उसने सभी वस्तुओं के दाम निश्चित कर दिये। वस्तुओं में सभी प्रकार के अनाज, दाले, कपड़ा, गुलाम, घोड़ें, सब्जी, मेवा, माँस, मछली, गन्ना, सुई, धागा, कंपा आदि लगभग सभी वस्तुओं के लिए पृथक-पृथक बाजार निश्चित कर दिये थे। जैसे गल्ले के लिए मण्डी कपड़े के लिए सराय-ए-अदल आदि नामों से ये बाजार पुकारे जाते थे। अकाल और सूखे के समय के लिए सरकारी गोदामों में सभी आवश्यक वस्तुओं को संग्रह करने की व्यवस्था की गयी थी, और ऐसी परिस्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक वस्तुओं के खरीदने की सीमा निश्चित कर दी गयी थी। किसी भी वस्तु की कमी न हो इसके लिए भी उचित प्रबन्ध किया गया था। सभी व्यापारियों को “शहान-ए-मंडी” के दफ्तर में अपने को पंजीकृत करवाना पड़ता था। सरकार से पंजीकृत व्यापारियों को व्यापार करने का अधिकार था अपंजीकृत व्यापारी किसानों से सीधे अनाज भी नहीं खरीद सकता था। जिन व्यापारियों के पास अपनी पर्याप्त पूँजी नहीं होती थी। उन्हें राजकोष से धन दिया जाता था।

व्यापारियों को निश्चित दर पर वस्तुओं को बेचना पड़ता था। सुल्तान द्वारा निश्चित किये गये मूल्यों पर ही वस्तुएँ बेची जाती थी। कोई भी व्यापारी व दुकानदार किसी वस्तु का मूल्य निर्धारित मूल्य से अधिक नहीं ले सकता था और न ही वस्तुओं के तौलने में कमी कर सकता था। बड़े से बड़ा अधिकारी भी सुल्तान की आज्ञा के बिना मूल्यों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता था। बाजार के नियमों का बड़ी कठोरता से पालन किया जाता था। बाजार के नियमों को तोड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कठोर दण्ड दिया जाता था। उनके साथ किसी प्रकार की उदारता का व्यवहार नहीं किया जाता था। अलाउद्दीन ने यह घोषणा कर रखी थी कि यदि कोई व्यक्ति कम नापता अथवा कम तौलता है तो उस व्यक्ति के शरीर से उतना ही गोश्त (मांस) काट लिया जायेगा। कोई भी व्यक्ति किसी भी वस्तु का संग्रह नहीं कर सकता था।

अलाउद्दीन खिलजी द्वारा “दीवाने-रियासत” तथा “शहाने गण्डी” नाम दो पदाधिकारी एवं “सराय-अदल” नामक एक न्यायाधीश की नियुक्ति बाजार पर निगरानी व उसके भावों पर नियाण बनाये रखने के लिए की गयी। अपने अधीनस्थ अधिकारियों एवम् गुप्तचरों के माध्यम ये लोग बाजार पर कड़ी नजर रखते थे और बाजार के मूल्यों पर निगरानी बनाये रखते थे।

बाजार में वस्तुओं उपलब्धता का प्रबन्ध

अलाउद्दीन एक योग्य और बुद्धिमान शासक था। उसने केवल नियम बनाकर उसका कड़ाई से पालन ही नहीं करवाया बल्कि यह भी व्यवस्था की कि बाजार में सदैव सामान उपलब्ध रहे और दुकानदारों को भी माल मण्डी से ऐसी कीमत पर मिल सके जिससे वे नियत किये गये मूल्यों पर उन्हें बेच सकें। इसके लिए अलाउद्दीन से सभी आवश्यक वस्तुओं की अलग-अलग मण्डियां बनवाई। प्रत्येक मण्डी का एक अधिकारी। होता था जिसे ‘शहना-ए-मण्डी’ कहा जाता था। इनसे बड़ा अधिकारी दीवान-ए-रिसालत कहलाता था।

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अलाउद्दीन की मूल्य नियंत्रण व्यवस्था का परिणाम

अलाउद्दीन के बाजार एवं मूल्य नियन्त्रण से न केवल दैनिक उपयोग की वस्तुएं सस्ती हो गयी बल्कि उनका मूल्य भी निश्चित हो गया। इस व्यवस्था का लाभ अलाउद्दीन की सेना को तो मिला ही साथ ही साथ आम जनता भी इससे लाभान्वित हुई जहाँ सैनिकों को कम वेतन में ही अपना जीवन-यापन करना आसान हुआ वहीं आम नागरिकों को भी सरने मूल्य पर सामान मिलने लगा और मिलावट, बेईमानी और व्यापारियों की मनमानी पर अंकुश लगा। निःसन्देह अलाउद्दीन की बाजार एवं मूल्य नियंत्रण व्यवस्था उसकी महान उपलब्धि थीं।

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