अधिसंरचना – मार्क्स की कृतियों में सामाजिक संरचना के सम्बन्ध में जो विचार व्यक्त किया गया है, उसके अध्ययन से यह पता चलता है कि मार्क्स ने सम्पूर्ण सामाजिक संरचना को दो भागों में विभाजित करके उनके बारे में विश्लेषण किया है। समाज के सम्पूर्ण ढाँचे के ऊपरी भाग को उन्होंने ‘अधिसंरचना’ कहा है जबकि बुनियादी भाग या निचले भाग को ‘अधोसंरचना’ की संज्ञा दी है। इन दोनों के सम्मिलित रूप से ही समाज की सम्पूर्ण संरचना का निर्माण होता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सामाजिक संरचना के केवल ये ही दो भाग होते हैं। ये दो प्रमुख या महत्त्वपूर्ण भाग हैं और इनमें से प्रत्येक भाग में अनेक उपभाग पाये जाते हैं। इन विभिन्न इकाइयों (भागों और उपभागों) में अपेक्षाकृत स्थायी अंतः सम्बन्ध पाये जाते हैं और इन अंतः सम्बन्धित इकाइयों की विशिष्ट क्रमबद्धता या संगठन से ही सामाजिक संरचना बनती है।
मार्क्स के अनुसार सामाजिक संरचना मनुष्य के सामाजिक जीवन या अस्तित्त्व की ही अभिव्यक्ति है और मनुष्य के सामाजिक अस्तित्त्व की बुनियादी बात यह है कि उसकी उन भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे जिनके कारण उसका जीवित रहना सम्भव होता है; और अधिक स्पष्ट शब्दों में जीवित रहने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं जैसे भोजन, कपड़ा, मकान आदि की पूर्ति होती रहे। इन चीजों की पूर्ति भगवान्, आत्मा या परमात्मा नहीं करेंगे, इसके लिए तो स्वयं मनुष्य को ही परिश्रम करना होगा।
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मार्क्स के अनुसार उत्पादक शक्ति और उत्पादन सम्बन्धों के सम्पूर्ण योग से ही समाज की आर्थिक संरचना का निर्माण होता है। इसी को अधोसंरचना कहा गया है। क्योंकि यही वास्तविक नींव है जिस पर कि समाज की अधिसंरचना खड़ी होती है अधिसंरचना के अंतर्गत सामाजिक जीवन के अन्य पक्ष जैसे सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक, वैधानिक, सांस्कृतिक आते हैं। मार्क्स के अनुसार अधोसंरचना के अनुरूप भी अधिसंरचना की प्रकृति निश्चित होती है। समाज के विकास का इतिहास वास्तव में उत्पादन प्रणाली के विकास का इतिहास है।