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आवादी अन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।

आवादी अन्दोलन का मूल्यांकन

उग्रवादी संवैधानिक उपायों को प्रभावपूर्ण नहीं मानते थे वे प्रभावशाली और सामूहिक कार्यवाही में विश्वास करते थे। वे छोटे-छोटे संवैधानिक सुधारों की अपेक्षा स्वतन्त्रता चाहते थे। उनका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था। वे भारत और इंग्लैण्ड के मध्य सम्बन्धों को हानिकारक मानते थे। उनकी मान्यता थी कि जब तक भारत में विदेशी शासन रहेगा, भारत का आर्थिक विकास होना सम्भव नहीं था। वे यह भी मानते थे कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद में भारत के राष्ट्रवादद के लिये कोई स्थान नहीं था। तिलक ने स्पष्ट घोषणा की थी, “विरोध पत्रों से कोई लाभ नहीं होगा। आत्मविश्वास के बिना केवल विरोध प्रकट करने से जनता का भला नहीं होगा। विरोध पत्रों और प्रार्थनाओं के दिन लद गये हैं।”

हाल में केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुछ विद्वानों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि काँग्रेस में उग्रवाद का उत्थान का कारण कॉंग्रेस की गुटबन्दी थी। उनका कहना है कि उग्रवादी एक गुट था जो उदारवादियों से सत्ता छीनना चाहता था लेकिन यह मत मिथ्या और भ्रामक है।

काँग्रेस में कोई सत्ता-संघर्ष नहीं था। उग्रवाद के उत्थान का मूल कारण यह था कि काँग्रेस का नवयुवक वर्ग उदारवादियों की विनयशीलता ओर राजभक्ति से असन्तुष्ट था। उनकी असफलता से इस नवयुवक वर्ग में आक्रोश उत्पन्न हुआ था।

राष्ट्रीय एकीकरण की समस्याओं की विवेचना कीजिए।

उपवाद को सफलता प्राप्त नहीं हुई, लेकिन इसका महत्व इस तथ्य में है कि इसने भारतीयों में संघर्षशील राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को शक्तिशाली बनाया। इसने मध्यमवर्गीय काँग्रेस को सामान्य जनता तक पहुँचाया। इसने भारतीयों को आत्मविश्वास और राजनीतिक जागृति प्रदान की। जी.एन. सिंह लिखते हैं, “सत्य तो यह है कि भारतीय जनता के हृदयों में एक नये जीवन का प्रवाह हो रहा था और राष्ट्रीय आन्दोलन एक वास्तविक जन-आन्दोलन का स्वरूप धारण कर रहा था। “

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