Sociology

आश्रम व्यवस्था का परिचय दीजिए तथा उसका महत्व बताइए।

आश्रम व्यवस्था का परिचय – आश्रम शब्द संस्कृत भाषा के श्रम धातु से निकला है जिसका अर्थ है परिश्रम करना। अतः इस शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं-पहला अर्थ है वह जगह जहाँ पर परिश्रम किया जाता है। दूसरा अर्थ है वह काम जिसमें परिश्रम किया जाना चाहिए। इसी प्रकार आश्रम का सही शब्दों में अर्थ है विश्राम करने की जगह या स्थान। अतएव इस शब्द से जीवन के उस विश्राम स्थल का बोध होता जहाँ मनुष्य विश्राम करना चाहता है। जिसमें भावी जीवन की यात्रा की तैयारी कर सके। प्राचीन काल में मनुष्य की जीवन यात्रा का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना था। इसलिए आश्रमों को विश्राम स्थल के रूप में समझना चाहिए। महाभारत में व्यास जी ने कहा है कि जीवन की यह चार स्थितियाँ चार सोपानों का निर्माण करती है जिन पर चढ़कर मनुष्य ब्रह्मलोक पर पहुँच सकता है।

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गौतम आपस्तम्ब और विशिष्ट आदि व्यवस्थाकारों ने आश्रमों की संख्या चार बतायी है। इन्होंने साधारणतया मनुष्य की आयु 100 वर्ष की मानी है। इस आयु को 25-25 वर्ष के चार आश्रमों में विभाजित किया है। यह चार आश्रम निम्नलिखित है-

  1. ब्रह्मचर्य आश्रम
  2. गृहस्थ आश्रम
  3. वानप्रस्थ आश्रम
  4. संन्यास आश्रम ।

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