12वीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।

देश की 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में औसत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य अब 80 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। योजना आयोग की संस्तुति पर राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने इस पंचवर्षीय योजना में वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य 8.2 प्रतिशत से घटाकर अब 80 प्रतिशत कर दिया है इस संशोधन के साथ 12वीं योजना के दस्तावेज को परिषद् की प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 27 दिसम्बर, 2012 को नई दिल्ली में सम्पन्न बैठक में स्वीकार किया गया। यह दूसरा अवसर है जब इस पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य घटाया गया है, योजना के एप्रोच पेपर में यह लक्ष्य 9.0 प्रतिशत का निर्धारित किया गया था जिसे बाद में सितम्बर 2012 में घटा कर 8.2 प्रतिशत किया गया था। देश की 11 वीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 7.9 प्रतिशत (अनंतिम) वार्षिक वृद्धि प्राप्त की गई है। 12 वीं पंचवर्षीय योजना में पाँच वर्ष की अवधि में गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार के 5 करोड़ नए अवसर सृजित करने तथा देश में निर्धनता अनुपात में 10 प्रतिशत बिन्दु की कमी करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।

सभी पंचवर्षीय योजना का संक्षिप्त विवरण

पंचवर्षीय योजनाअवधिप्राथमिकता/उद्देश्यलक्ष्य की दर प्राप्ति की दर 
प्रथम पंचवर्षीय योजना1951-1956कृषि/सिचाई2.13.0
दवितीय पंचवर्षीय योजना1956-1961आधयोगिकरण44.27
तृतीय पंचवर्षीय योजना1961-1966गतिमान एवं आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था5.62.4
चौथी पंचवर्षीय योजना1969-1974कृषि/आत्मनिर्भरता की अधिकाधिक प्राप्ति5.63.3
पांच पंचवर्षीय योजना1974-1979गरीबी उन्मूलन4.44.8
छठी पंचवर्षीय योजना1980 1985कृषि/उदयोग/रोजगार सृजन5.25.4
सातवीं पंचवर्षीय योजना1985 – 1990खादय एवं ऊर्जा5.06.0
आठवीं पंचवर्षीय योजना1992-1997मानव संसाधन का विकास5.66.8
नौवीं पंचवर्षीय योजना1997-2002सामाजिक न्याय एवं समानता के साथ आर्थिक संवृद्धि7.05.6
दसवीं पंचवर्षीय योजना2002-2007रोजगार एवं ऊर्जा7.97.7
ग्यारवीं पंचवर्षीय योजना2007-2012तीव्रतम समावेशी विकास87.7
बारहवीं पंचवर्षीय योजना2012-2017तीव्र एवं सतत समावेशी विकास97.9

12वीं पंचवर्षीय योजनाः अवलोकन

भारत के 1.25 बिलियन नागरिकों को आज अपने भविष्य के बारे में पहले से कहीं अधिक उम्मीदें हैं। उन्होंने विगत दस वर्षों में अर्थव्यवस्था को पहले की तुलना कहीं अधिक तेजी से बढ़ते हुए में और बहुत से लोगों को प्रत्यक्ष लाभ देते हुए देखा है। अतः स्पष्ट है कि इससे सभी वर्गों की उम्मीदें बढ़ गई हैं विशेषकर उनकी जिन्हें कम लाभ हुआ है। हमारी जनता को अब संभावनाओं की पहले से कहीं अधिक जानकारी है और वे इससे कम के लिए राजी नहीं होंगे। बारहवीं पंचवर्षीय योजना को इन ऊंची उम्मीदों को पूरा करने की चुनौती पर खरा उतरना होगा।

प्रारंभिक परिस्थितियां

हालांकि उम्मीदें बढ़ी हैं, तथापि, जिन परिस्थितियों में बारहवीं योजना शुरू हुई है, वे 2007-08 में ग्यारहवीं योजना के आरंभ के समय की परिस्थितियों से कम अनुकूल हैं। उस समय अर्थव्यवस्था का सुदृढ तरीके से विकास हो रहा था, वृहद आर्थिक संतुलन सुधर रहा था और वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम समर्थनकारी था। आज की परिस्थिति कहीं अधिक विकट है। वैश्विक अर्थव्यवस्था दीर्घकालिक मंदी से गुजर रही है। घरेलू अर्थव्यवस्था अनेक आंतरिक बाधाओं का भी सामना कर रही है। अर्थव्यवस्था को राजकोषीय प्रोत्साहन देने के लिए 2008 के बाद किए गए राजकोषीय विस्तार के परिणामस्वरूप वृहद आर्थिक असंतुलन उत्पन्न हो गए हैं। स्फीतिकारी दबाव उत्पन्न हो गए हैं। विभिन्न प्रकार की कार्यान्वयन संबंधी कठिनाइयों की वजह से ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र की प्रमुख निवेश परियोजनाओं की प्रगति से सदी आ गई है। 2012-13 में कर व्यवस्था में कुछ परिवर्तनों से निवेशकों में अनिश्चितता उत्पन्न हुई है।

इन घटनाओं के फलस्वरूप निवेश की दर में कमी आई है और 2011-12. जो ग्यारहवीं योजना का अंतिम वर्ष था. में आर्थिक विकास की दर कम हो कर 6.2 प्रतिशत हो गई है। बारहवीं योजना के पहले वर्ष अर्थात 2012-13 के पूर्वार्द्ध में विकास दर इससे भी कम है। इस गिरावट की प्रवृत्ति के लिए तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई अपेक्षित है, तथापि, इसके फलस्वरूप मध्यम काल के बारे में अनावश्यक निराशावाद उत्पन्न नहीं होना चाहिए। भारत के आर्थिक मूलाधारों में अनेक आयामों में सुधार हो रहा है और यह इस तथ्य से परिलक्षित होता है कि 2011-12 में मंदी के बावजूद ग्यारहवीं योजना अवधि में अर्थव्यवस्था की औसत विकास दर 8 प्रतिशत रही। यह 9 प्रतिशत के योजना लक्ष्य से कम थी परंतु यह दसवीं योजना में 7.8 प्रतिशत की उपलब्धि से बेहतर थी। यह तथ्य कि यह विकास उस अवधि में प्राप्त किया गया जिसके दौरान दो वैश्विक संकटों का सामना करना पड़ा था. एक 2008 में और दूसरा 2011 में, अर्थव्यवस्था द्वारा विकसित की गई समुत्थानशीलता का सूचक है।

नीतिगत चुनौती

अतः बारहवीं योजना में नीतिगत चुनौती द्वि-स्तरीय है। तात्कालिक चुनौती यह है कि निवेश का यथाशीघ्र पुनरुद्धार करके विकास में देखी गई मंदी की प्रवृत्ति को पलट दिया जाए। इसके लिए अवसंरचना में कार्यान्वयन संबंधी बाधाओं, जो बड़ी परियोजनाओं को रोक रही हैं, से निपटने हेतु तात्कालिक कार्रवाई के साथ ही कर संबंधी मुद्दों, जिन्होंने निवेश के माहौल में अनिश्चितता उत्पन्न कर दी है, से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है। दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य से, इस योजना को ऐसी नीतियां लागू करनी होंगी जो अर्थव्यवस्था को पुनः इसकी वास्तविक विकास क्षमता तक पहुंचाने के लिए अर्थव्यवस्था की अनेक योग्यताओं का लाभ उठा सके। इसमें समय लगेगा परंतु लक्ष्य यह होना चाहिए कि बारहवीं योजना अवधि के अंत तक पुन 9 प्रतिशत विकास हासिल कर लिया जाए।

12 वीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य लक्ष्य एक दृष्टि में

  1. वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 80 प्रतिशत
  2. कृषि क्षेत्र में 4.0 प्रतिशत व विनिर्माणी क्षेत्र में 10.0 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि के लक्ष्य
  3. योजनावधि में गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार के 5 करोड़ नए अवसरों के सृजन का लक्ष्य
  4. योजना के अन्त तक निर्धनता अनुपात से नीचे की जनसंख्या के प्रतिशत में पूर्व आकलन की तुलना में 10 प्रतिशत बिन्दु की कमी लाने का लक्ष्य। योजना के अन्त तक देश में शिशु मृत्यु दर को 25 तथा मातृत्व मृत्यु दर को 1 प्रति हज़ार जीवित जन्म तक लाने तथा 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में बाल लिंगानुपात को 950 करने का लक्ष्य।

समावेशी विकास के संबंध में ग्यारहवीं योजना की उपलब्धियां

समावेशी विकास के उद्देश्य को पूरा करने में ग्यारहवीं योजना किस हद तक सफल रही है. इसे दर्शाने वाले कुछ महत्वपूर्ण संकेतक निम्नानुसार हैं (कुछ मामलों में, जहां डेटा एनएसएसओ सर्वेक्षणों से संबंधित है, वहां तुलना के लिए समय अवधि 2004-05 से पहले और बाद की है)।

  1. ग्यारहवीं योजना (2007-08 से 2011-12) में जीडीपी विकास 8 प्रतिशत था जबकि इसकी तुलना में दसवीं योजना (2002-03 से 2006-07) में यह 76 प्रतिशत और नौवी योजना (1997-98 से 2001-02 ) में मात्र 5.7 प्रतिशत था ग्यारहवीं योजना अवधि में 7.9 प्रतिशत की विकास दर उस अवधि, जिसमें दो वैश्विक संकट देखे गए थे, में किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक है।
  2. ग्यारहवी योजना में कृषि जीडीपी विकास तीव्र होकर 3.7 प्रतिशत की औसत दर तक पहुंच गया जबकि इसकी तुलना में यह दसवीं योजना में 24 प्रतिशत और नौवी योजना में 25 प्रतिशत था।
  3. गरीबी रेखा से नीचे जनसंख्या के प्रतिशत में 2004-05 से 2009-10 तक की अवधि में 1.5 प्रतिशतांक (पीपीटी) प्रतिवर्ष की दर से गिरावट आई जो 1993-94 से 2004-05 तक की पिछली अवधि में इसकी गिरावट की दर से दुगनी थी। (जब 2011-12 के लिए नवीनतम एनएसएसओ सर्वेक्षण का डेटा उपलब्ध हो जाएगा तो गिरावट की दर लगभग 2 प्रतिशतांक प्रतिवर्ष होने की संभावना है)।
  4. 2004-05 से 2011-12 तक की अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति वास्तविक खपत की विकास दर 34 प्रतिशत प्रतिवर्ष थी जो कि 1993-94 से 2004-05 तक की पिछली अवधि की दर से चार गुणा थी।
  5. बेरोजगारी की दर 2004-05 में 8.2 प्रतिशत से घटकर 2009-10 में 6.6 प्रतिशत हो गई और इसने पिछली अवधि में देखी गई प्रवृत्ति को उलट दिया जब यह 1993-94 में 6.1 प्रतिशत से वास्तव में बढ़कर 2004-05 में 8.2 प्रतिशत हो गई थी।
  6. ग्यारहवी योजना (2007-08 से 2011-12) में ग्रामीण वास्तविक मजदूरी में प्रतिवर्ष 6.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि इसकी तुलना में पिछले दशक में इसकी औसत 1.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष थी और यह वृद्धि मुख्यतया सरकार की ग्रामीण नीतियों और पहलों की वजह से सभव हुई।
  7. 2002-04 और 2007-08 के बीच पूर्ण टीकाकरण में 2.1 पीपीटी प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई जबकि इसकी तुलना में 1998-99 और 2002-04 के बीच प्रतिवर्ष 1.7 पीपीटी की गिरावट देखी गई थी। इसी प्रकार 2002-04 और 2007-08 के बीच सांस्थानिक प्रसूतियों में 1.6 पीपीटी प्रतिवर्ष की वृद्धि हुई जो 1996-90 और 2002-04 के बीच 1.3 पीपीटी प्रतिवर्ष की वृद्धि की तुलना में अधिक है।
  8. 2009-10 में प्राथमिक स्तर पर निवल नामांकन दर बढ़ कर 98.3 प्रतिशत यानी लगभग सर्वव्यापकता के करीब पहुंच गई। स्कूल छोड़ने की दर (कक्षा-VIII) में भी सुधार दिखाई दिया, 2003-04 और 2009-10 के बीच इसमें 1.7 पीपीटी प्रतिवर्ष की गिरावट आई जो 1998-99 और 2003-04 के बीच 0.8 पीपीटी की गिरावट से दुगनी थी।

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