हर्षवर्धन राज्यकाल का इतिहास के साहित्यिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।

हर्षवर्धन राज्यकाल का इतिहास जानने के स्रोतों को मुख्य रूप से निम्न तीन भागों में बांटा जा सकता है

  1. साहित्यिक स्रोत
  2. विदेशी यात्रियों के वृतान्त तथा
  3. पुरातात्विक स्रोत

(क) साहित्यिक स्रोतः

हर्ष कालीन इतिहास को जानने के अनेक साहित्यिक स्रोत प्राप्त होते हैं जिनमें से प्रमुख साहित्यिक स्रोत निम्न हैं

(1) हर्ष चरित्रः बाणभट्ट कृत यह ग्रन्थ हर्ष के शासनकाल को जानने का सर्वप्रमुख स्रोत है। हर्षचरित में आठ उच्छास है। प्रथम तीन में बाण ने अपनी आत्मकथा लिखी है तथा शेष पाँच में सम्राट हर्षवर्द्धन का जीवन-चरित लिखा गया है। इसमें हम हर्ष के पूर्वजों के विषय में भी ज्ञान प्राप्त करते हैं। हर्ष के प्रारम्भिक जीवन, राज्यारोहण, सैनिक अभियान के साथ ही साथ हर्ष चरित हर्षकालीन भारत की राजनीति एवं संस्कृति पर भी यह ग्रन्थ प्रचुर प्रकाश डालता है।

(2) आर्यमंजुश्रीमूलकल्पः यह एक प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ है। इसमें एक हजार श्लोक हैं जिनके अन्तर्गत ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी ईस्वी तक का प्राचीन भारत का इतिहास वर्णित है। हर्षकालीन इतिहास की कुछ घटनाओं पर यह प्रकाश डालता है। इसमें हर्ष के लिये केवल ‘ह’ शब्द का प्रयोग किया गया है किन्तु इस ग्रन्थ में अनेक अनैतिहासिक सामग्रियां दी गयी है। अतः इस पर बहुत अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता।

(3) कादम्बरीः यह संस्कृत में बाणभट्ट द्वारा लिखा उपन्यास है। इसमें भी हर्षकालीन सामाजिक व्यवस्था पर प्रचुर मात्रा में प्रकाश पड़ता हैं।

(4) हर्ष द्वारा लिखित ग्रन्थः सम्राट हर्ष ने भी कई ग्रन्थों की रचना की है। जिसने हर्षकालीन प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानन्द प्रमुख है।

(ख) विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तः

विदेशी यात्रियों के वृत्तान्तों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

(1) ह्वेनसांग का विवरणः यह प्रसिद्ध चीनी यात्री हर्ष के समय में भारत की यात्रा पर आया तथा उसने यहाँ सोलह वर्षो तक निवास किया। उसका यात्रा विवरण ‘सी-यू-की’ नाम से प्रसिद्ध है। यह तत्कालीन राजनीति तथा संस्कृति का अध्ययन करने के लिये अत्यन्त उपयोगी है। विदेशी विवरण में इसका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है।

( 2 ) ह्वेनसांग की जीवनीः इसकी रचना हुएनसांग के मित्र ‘छी-ली’ ने की थी। बील ह इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया गया। इससे भी हर्षकालीन इतिहास से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण ज्ञान होती है।

( 3 ) इत्सिंग का वृत्तान्तः इत्सिंग नामक एक अन्य चीनी यात्री का विवरण भी हर्षका इतिहास के अध्ययन के लिये उपयोगी है। इसका अंग्रेजी अनुवाद जापानी बौद्ध विद्वान् तक्कुसु ने रेकार्ड ऑफ द बुद्धिस्ट रिलिजन’ नाम से किया है। इन सभी विदेशी वृत्तान्त से हर्ष कालीन इतिहा जानने में बहुत सहायता मिलती है।

(ग) पुरातात्विक सामग्री (स्रोत):

पुरातात्विक साधन भी हर्षवर्धन के इतिहास जानने महत्वपूर्ण स्रोत है। प्रमुख पुरातात्विक स्रोत निम्नवत् हैं

मधुबन का लेखः उत्तर प्रदेश जिले की घोषी तहसील में से यह लेख मिला है जो हर्ष संक जिले की घोषी तहसील में से यह लेख मिला है जो हर्ष संक 25 अर्थात 631 ईस्वी का है। इसमें द्वारा श्रावस्ती भुक्ति के सोमकुण्डा नामक ग्राम को दान में है का विवरण है।

ऐहोल का लेखः पुलकेशिन द्वितीय का यह लेख भी हर्ष कालीन इतिहास की महत्वपूर्ण सामा है। इस लेख की तिथि 633-34 ईस्वी है। इसमें हर्ष तथा पुलकेशिन के बीच होने वाले युद्ध का वर्ण मिलता है। इस लेख की रचना पुलकेशिन् के दरबारी कवि रविकीर्ति ने की थी।

बांसखेड़ा का ताम्रपत्रः यह ताम्रपत्र 1894 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में स्थि बंसखेड़ा नामक स्थान से मिला है जिसमें हर्ष संवत् 22 अर्थात् 628 ईस्वी का तिथि अंकित है। इस पता लगता है कि हर्ष ने अहिछत्र मुक्ति के अंगदीया विषय में सर्कटसागर नामक ग्राम को बालचन्द्र त भट्टस्वामी नाम के दो भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मणों को दान दिया था। इससे हर्षकालीन शासन के अने प्रदेशों तथा पदाधिकारियों के नाम ज्ञात होते हैं। इस ताम्रपत्र से राज्यवर्धन द्वारा मालवा के शासक देवगु पर विजय तथा अन्ततः गौड़नरेश शशांक द्वारा उसकी हत्या की जानकारी भी प्राप्त होती है।

‘भारत प्रजातियों का दावण पात्र है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए ?

हर्षकालीन मुहरें:

हर्षकालीन मुहरें भी उसके इतिहास निर्माण की महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत कर हैं। हर्ष की दो मुहरें नालन्दा तथा सोनपत से प्राप्त होती है। पहली मिट्टी तथा दूसरी ताँबे की है। इन प लेख खुदे हुये हैं जिनमें महाराज्य राज्यवर्द्धन प्रथम के समय से लेकर हर्षवर्द्धन तक की वंशावली मिल है। सोनपत मुहर में ही हमें हर्ष का पूरा नाम ‘हर्षवर्द्धन प्राप्त होता है। के. डी. वाजपेयी ने हर्ष का एक स्वर्ण सिक्का प्रकाशित किया। इसके मुख भार पर ‘परमभट्टारकमहाराजाधिराज श्री हर्षदेव’ अंकित तथा पृष्ठ भाग पर ‘उमामाहेश्वर’ की आकृति है। अतः मुहरे भी हर्ष के इतिहास जानने की एक मुख सामग्री है। इस प्रकार हर्षकालीन इतिहास जानने की प्रचुर सामग्री उपलब्ध होती है जिनमें साहित्यिक पुरातात्विक व विदेशी यात्रियों के विवरण सम्मिलित हैं।

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