सामाजिक समस्याओं के प्रकारों की विवेचना। तथा भारतीय समाज की प्रमुख सामाजिक समस्यायें।

वर्तमान समय में भारत में अनेक सामाजिक समस्याओं का जाल बिछा है यद्यपि भारत एक स्वतंत्र गणराज्य है जिसने धर्म-निरपेक्ष, प्रजातंत्र एवं प्रगतिशील मूल्यों (Progressive Values) को स्वीकार किया है, किंतु यहां निर्धनता पायी जाती है, गरीब अमीर के मध्य एक बहुत बड़ी खाई दिखलाई पड़ती है।

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यहाँ धर्म, भाषा, प्रजाति, जाति एवं क्षेत्रीयता तथा भाषा के आधार पर अनेक भेद-भाव पाये जाते है। व्यक्ति-व्यक्ति में सामाजिक एवं आर्थिक आधार पर ऊंच-नीच का एक संस्तरण पाया जाता हैं जातिवाद, अस्पृश्यता, भाषावाद, प्रांतीयता, साम्प्रदायिकता तथा युवाविक्षोभ, बेकारी आदि समस्याएं यहां मौजूद है। यहां बाल अपराधी एवं प्रौढ़ अपराधी और श्वेत वसन अपराधी भी पाये जाते हैं जो समाज के सम्मुख समस्या उत्पन्न करते हैं। यहां जनसंख्या की बढ़ोत्तरी भी तेजी के साथ होती जा रही है। निरक्षरता, निम्न जीवन-स्तर, शराबखोरी, जुआ, वेश्यावृत्ति और राजनीतिक एवं प्रशासनिक भ्रष्टाचार की समस्याओं का भी देशवासियों को सामना करना पड़ रहा हैं। ये सभी समस्याएं देश की प्रगति एवं एकीकरण में बाधक हैं। आगे हम भारतीय समाज में पायी जाने वाली कुछ प्रमुख सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डाल रहे हैं-

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(1) साम्प्रदायिकता की समस्या (Problem of Communalism)

साम्प्रदायिकता समाज-रूपी शरीर में जहर घोल रही है। साम्प्रदायिकता अंग्रेजों की फूट डालो राज करो (Divide and Rule) की नीति का परिणाम है। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों को एक दूसरे से पृथक रखने एक दूसरे को विरोध करने और ईर्ष्या और विद्वेष फैलाने का काफी प्रयत्न किया। उनके प्रयत्नों का परिणाम देश के विभाजन के रूप में निकला।

(2) जातिवाद की समस्या (Problem of Casteism)

विभिन्न जातियों में ऊंच नीच का संस्तरण पाया जाता है और उतार चढ़ाव की एक प्रणाली पायी जाती है। फलस्वरूप एक जाति दूसरी जाति से सामाजिक दूरी (Social Distance) बनाये रखने का प्रयास करती है। आज जाति प्रथा के कारण समाज छोटे-छोटे समूहों में बंट गया है और लोगों की निष्ठा एवं भक्ति अपनी-अपनी जाति तक ही सीमित हो गयी है।

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(3) अपराध एवं श्वेतदास अपराध की समस्या (Prolem of Crime and White-collar Crime)

पिछले दस वर्षों में अपराधों की संख्या दुगुनी से अधिक हो गयी है। अपराधों की संख्या में यह वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि भारतीय समाज में सामाजिक विघटन बढ़ता जा रहा है। अब पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी अपराध कार्य करने लगी है। वर्तमान में व्यक्ति एवं सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों के अतिरिक्त अपहरण, चोरी डकैती, मारपीट, धोखाधड़ी, राहजनी एवं बलात्कार संबंधी अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं।

(4) निर्धनता की समस्या (Problem of Poverty)

निर्धनता व्यक्ति के नैतिक पतन, समाज-विरोधी व्यवहार और अपराधी कार्य के लिए उत्तरदायी है। आखिर भूखे मरते तथा अभावों में अपने बच्चों को बिलखते देखकर कौन कर्तव्य पथ से नहीं हट सकता। निर्धनता कई बार व्यक्ति को चोरी एवं जालसाजी करने तथा तस्करी और राहजनी करने को बाध्य तक कर देती है। निर्धनता उस समय और भी गंभीर विघटनकारी समस्या बन जाती है जब गरीब अमीर के बीच आर्थिक असमानता की एक बहुत बड़ी खाई पायी जाती हो। निर्धनता अनेक समस्याओं का एक प्रमुख कारण है।

(5) अस्पृश्यता की समस्या (Problem of Unouchability)

इस देश के दस करोड़ से भी अधिक लोगों को अस्पृश्य मानकर इन्हें छूना यहाँ तक कि इनकी परछाई पड़ना मात्र तक अपवित्रता लाने वाली समझा गया। समाज के इतने बड़े वर्ग को शोषण का शिकार होना पड़ा अनेक प्रकार की निर्योग्यताओं (Disabilities) से पीड़ित रहना पड़ा। इन्हें हमेशा अभावमय अवस्था में तिरस्कृत प्रकार का जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया। समाज के इतने बड़े वर्ग के उपेक्षित रहते हुए किसी भी समाज को संगठित समाज मानना एक प्रकार से वास्तविकता की अनदेखी करना है।

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(6) बाल अपराध की समस्या (Problem of Juvenile Delinquency)

भारत में बाल अपराधियों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही है। न केवल लड़को में बल्कि लड़कियों में भी अपराधी प्रवृत्ति तेज होती जा रही है। औद्योगिक केंद्रों की गंदी बस्तियों में स्थान के अभाव में बालक साधारणतः गलियों में घूमते रहते हैं, चौराहों पर खेलते रहते है तथा अभावों के बीच पलने के कारण छोटे-छोटे आर्थिक प्रलोभनों की ओर आकर्षित होते रहते है। ऐसे बालक स्कूलों से भागते हैं, आवारागर्दी करते हैं, जेब काटने का कार्य सीख लेते है, जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं और गली-मोहल्लों में लड़कियों को छेड़ते हैं।

(7) क्षेत्रवाद की समस्या (Problem of Regionalism)

क्षेत्रीयता या क्षेत्रवाद भी सामाजिक विघटन की स्थिति का परिचायक है क्षेत्रवाद वह संकुचित मनोवृत्ति है जो लोगों को अपने ही क्षेत्र या प्रांत विशेष के हित के दृष्टिकोण से सोचने एवं कार्य करने को प्रेरित करती है। इस संकीर्ण मनोवृत्ति के कारण लोगों की निष्ठा एवं भक्ति संपूर्ण देश के प्रति न होकर प्रांत क्षेत्र व किसी भाषाई क्षेत्र तक सीमित हो जाती है। क्षेत्रवाद स्थानीयतावाद, अलगाववाद एवं पृथकतावाद को पनपाता है। क्षेत्रवाद की मनोवृत्ति के कारण ही एक भौगोलिक एवं भाषाई क्षेत्र के लोग राष्ट्रहित की चिंता नहीं करते हुए देश के अन्य प्रदेशों से अपने को पृथक एवं स्वतंत्र समझते हैं।

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(8) बेकारी की समस्या (Problem of Unemployment )

बेकारी की समस्या सामाजिक विघटन की दशा को ही व्यक्त करती है। भारत में प्रतिवर्ष 70 से 80 लाख व्यक्ति नौकरी की तलाश में श्रमिक बाजार में प्रवेश करते हैं। बेकारी वैयक्तिक पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन की गंभीर अवस्था को व्यक्त करती है। आज बेकारी युवा तनाव, युवा सक्रियता अथवा छात्र असंतोष या अनुशासनहीनता का प्रमुख कारण है। बेकार व्यक्ति पेट की भूख को शांत करने और अपने बाल-बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनैतिक काम तक कर सकता है, अपराध तक कर सकता है।

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