साक्षात्कार के विभिन्न पदों का वर्णन कीजिए।

साक्षात्कार के विभिन्न पदों का वर्णन

साक्षात्कार के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, इसलिए साक्षात्कार एक आत्मनिष्ठ विधि माना जाता है। तथा साक्षात्कार निर्देशन कार्य विधि का एक आवश्यक अंग है जिसे परामर्श क्रिया हृदय कहा जाता है। इस प्रकार साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण विधि है।

परिभाषा (Definition)

(1 ) जॉन जी डालें के अनुसार– “साक्षात्कार एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप है।” “The Interview is a Conversation with a purpose.”– John. G. Durley

(2) गुड तथा हाट के अनुसार– “किसी उद्देश्य से किया गया गम्भीर वार्तालाप ही साक्षात्कार है।”

साक्षात्कार के तत्व- ये निम्नलिखित हैं

  1. व्यक्ति का व्यक्ति से सम्बन्ध।
  2. एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने का साधन ।
  3. साक्षात्कार में संलग्न दो व्यक्तियों में से एक को साक्षात्कार के उद्देश्य का ज्ञान रहता है।

साक्षात्कार के प्रकार साक्षात्कार

अनेक प्रकार के होते हैं जो निम्न हैं

( 1 ) नियुक्ति साक्षात्कार (Employment Interwiew)

किसी भी जीविका में नवीन नियुक्ति के लिए व्यक्ति का साक्षात्कार किया जाता है। इस साक्षात्कार का प्रमुख उद्देश्य जीविका के लिए व्यक्ति की उपयुक्तता (Fitness) निश्चित करना है। इसमें जीविका से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। ये प्रश्न साक्षात्कार करने वाले के द्वारा पूछे जाते हैं।

(2) सूचनात्मक साक्षात्कार ( Informative Interview )-

इस प्रकार के साक्षात्कार में छात्र को निष्पत्ति तथा विभिन्न परीक्षाओं में प्राप्त अंकों की व्याख्या सम्बन्धी सूचनाएं प्रदान की जाती हैं। छात्रों को भिन्न-मित्र नौकरियों, जीविकाओं तथा शिक्षण संस्थाओं के सम्बन्ध में सूचनाएँ देना सूचनात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य है।

(3) अनुसंधान साक्षात्कार (Research Interview )

साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति में रुचि न रखकर उन तथ्यों में रुचि लेता है जो तथ्य साक्षात्कार देने वाला बनता है। इस प्रकार के तथ्य बहुत व्यक्तियों से प्राप्त किये जाते हैं।

( 4 ) निदानात्मक साक्षात्कार ( Diagnostic Inerview)-

इस साक्षात्कार का उद्देश्य छात्र के घर तथा वातावरण आदि से सम्बन्धित सूचनायें प्राप्त करना है। तथ्य संकलन निदानं का महत्वपूर्ण अंग होता है।

(5 ) परामर्श साक्षात्कार ( Counselling Interview

) साक्षात्कार परामर्श प्रक्रिया का मुख्य आधार माना जाता है। इसका उद्देश्य व्यक्ति में सूझ उत्पन्न करना जो कि आत्म-बोध प्राप्त करने में सहायक होती है।

( 6 ) उपचारात्मक साक्षात्कार (Treatment Interview )

उपचारात्मक साक्षात्कार में शक्ति से इस प्रकार वार्तालाप किया जाता है कि उसको अपनी चिन्ताओं एवं परिस्थितियों से मुक्ति मिले, उसका समायोजन ठीक हो सके वह अपनी सभी चिन्ताओं, भावनाओं आदि को व्यक्त करके अपने मन के भार को दूर करता है।

(7) तथ्य संकलन साक्षात्कार (Fact-Finding Iterview

) इस साक्षात्कार में व्यक्ति या व्यक्तियों के समुदाय से मिलकर तथ्य संकलित किये जाते हैं। शिक्षक या निर्देशक भी इसी विधि द्वारा छात्रों के सम्बन्ध में तथ्य एकत्रित करते हैं। इसके तीन प्रमुख उद्देश्य हैं

  1. अन्य विधियों द्वारा संग्रहीत किये गये तथ्यों में न्यूनता पूर्ति (Supplement). करना। कुछ तथ्य अन्य विधियों द्वारा प्राप्त नहीं हो पाते हैं। साक्षात्कार में उन सूचनाओं को एकत्रित करने का प्रयत्न किया जाता है जो मनोवैज्ञानिक जाँचों द्वारा प्राप्त नहीं हो पाती है।
  2. पहले से संकलित की गयी सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए तथ्य-संकलन साक्षात्कार किया जाता है।
  3. तथ्य-संकलन साक्षात्कार का तीसरा उद्देश्य शारीरिक रूप का अवलोकन करना है। बहुत से छारों में अनेक शारीरिक दोष पाये जाते हैं जिनका शन मनोवैज्ञानिक जाँचों से नहीं हो सकता है। इसके साथ ही साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का बातचीत करने तथा आवरण करने के ढंग का ज्ञान होता है। साक्षात्कार के भाग

साक्षात्कार के तीन मुख्य भाग होते हैं

  1. प्रारम्भ (Opening),
  2. मध्य (The body),
  3. अन्त (The closing) 1

साक्षात्कार का आरम्भ (Opening of Interview)

साक्षात्कार के इस भाग में साक्षात्कार करने वाले तथा प्रार्थी के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करना सम्मिलित है। साक्षात्कार की सफलता इन मधुर सम्बन्धों पर ही निर्भर रहती है। साक्षात्कार प्रारम्भ करने के लिए निम्नलिखित सुझावों के अनुसार कार्य आरम्भ करना चाहिए।

(अ) आत्मीयता स्थापित करना (To Establish Rapport )-

साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के साथ एकात्मकता स्थापित करनी चाहिए। एकात्मकता स्थापन हेतु डेविस तथा रॉबिन्सन ने निम्न सुझाव दिये हैं

  • (i) सहानुभूति (Sympathy ) साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को कुछ शब्दों या अन्य किसी विधि द्वारा साक्षात्कार देने वाले के साथ सहानुभूति प्रकट करनी चाहिए।
  • (i) विश्वास (Assurance) साक्षात्कारकर्ता को चाहिए कि यह साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति में विश्वास पैदा करे तथा साथ ही उसको प्रोत्साहित करे कि उसकी समस्या का समाधान अवश्य होगा
  • (iii) स्वीकृति (Approval)- साक्षात्कारकर्ता या तो साक्षात्कार देने वाले के सी अपनी सहमति प्रकट करता है या उसके कृत्यों (Action) को स्वीकृति प्रदान करता है। यह स्वीकृति व्यक्ति को उत्साहित करने के लिए दी जाती है जिससे वह स्वयं भी भावनाओं को स्वतन्त्रतापूर्वक निस्सांकोच होकर प्रकट कर सके।
  • (iv) विनोद (Humour )-तनाव दूर करने के लिए हास्य का भी प्रयोग करना चाहिए।
  • (v) व्यक्तिगत सन्दर्भ (Personal Reference)-अपनी बातों को स्पष्ट करने के लिए साक्षात्कारकर्ता को अपने अनुभवों के उदाहरण देने चाहिए।
  • (vi) प्रश्न पूछना – व्यक्ति को अपनी समस्याओं के सम्बन्ध में अधिक विचार करने की प्रेरणा देने के लिए साक्षात्कारकर्ता को कुछ प्रश्न पूछने चाहिए।
  • (vii) भय ( Threat ) कभी-कभी साक्षात्कारकर्ता को यह भय दिखाना चाहिए कि अगर साक्षात्कार देने वाला सही सूचनाएँ नहीं देता है तो इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।
  • (viii) आश्चर्य (Surprise)- साक्षात्कार देने वाले के कथन या क्रिया पर कभी-कभी साक्षात्कार लेने वाले को आश्रये भी प्रकट करना चाहिए। इस प्रकार व्यक्ति अपने कथन या व्यवहार में सुधार कर लेता है।

(ब) प्रारम्भ में व्यवस्थित रचना पर कम ध्यान-

साक्षात्कार के प्रारम्भ में कोई भी व्यवस्थित रचना नहीं होनी चाहिए। प्रारम्भिक अवस्थाओं में साक्षात्कार स्वच्छन्द होना चाहिए। साक्षात्कारकर्ता को अपने उद्देश्य तक सीधे पहुँचने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।

(स) अनुमोदन

अनुमोदन से तात्पर्य है कि साक्षात्कारकर्ता, साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को बातचीत की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। वह उसके कथन पर कोई निर्णय नहीं देता है। उसमें विश्वास पैदा होता है कि यह जो कुछ कहेगा, वह स्वीकार किया जायेगा।

(द) बातचीत का समान समय-

साक्षात्कार के बातचीत के लिए दोनों को ही समान समय मिलना चाहिए। साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को अगर बोलने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जायेगा तो साक्षात्कार बहुत कम उपयोगी होगा।

साक्षात्कार का मध्य भाग (The body of Interview )

साक्षात्कार का मध्य भाग महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके द्वारा ही इच्छित सूचनाएं एकत्रित की जाती हैं। मध्य भाग को अधिक उपयोगी बनाने के लिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान देना चाहिए

  • (1) प्रेरक प्रश्नों का निर्माण प्रश्न इस प्रकार के हो जो साक्षात्कार देने वाले को प्रेरणा दें। प्रश्नों द्वारा ही व्यक्ति को बात करने की प्रेरणा प्राप्त हो। बहुत से प्रश्न ‘हाँ’ या ‘नहीं’ उत्तार वाले होते हैं, ये प्रश्न साक्षात्कार देने वाले को बात करने की या अधिक बोलने की स्वतन्त्रता नहीं देते हैं। ऐसे प्रश्नों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • (ii) निस्तब्धता का रचनात्मक उपयोग निस्तब्धता का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। अगर साक्षात्कार देने वाला चुप हो जाता है तो इसका अर्थ है कि उसके मस्तिष्क में विचार द्वन्द्व चल रहा है। साक्षात्कारकर्ता की चुप्पी का कारण साक्षात्कार की प्रगति के बारे में चिन्तन हो सकता है।
  • (III) सीमित सूचनाएँ-साक्षात्कार को एक बार के साक्षात्कार में ही छात्र के बारे में सब कुछ ज्ञात करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। सीमित सूचनाएँ ही एक बार के साक्षात्कार में संग्रह करनी चाहिए।
  • (iv) साक्षात्कार देने वाले की भावना तथा अभिवृत्ति समझने का प्रयत्न साक्षात्कार देते समय व्यक्ति अपनी प्रतिगामी या नकारात्मक भावनाओं को प्रदर्शित करता है। परामर्शदाता को चाहिए कि वह उसकी भावनाओं को समझे, उनको स्वीकार करे स्वीकृति का आभास भाव-भंगिमा, हाँ, अच्छा आदि के द्वारा दे सकता है।
  • (v) साक्षात्कार पर नियंत्रण- अगर साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति वार्तालाप पर नियंत्रण नहीं रखता है तो वह निश्चित सूचनाओं को प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा। नियंत्रण से तात्पर्य है कि वार्तालाप के समय नाममात्र की स्वतन्त्रता दी जाती है और वार्तालाप के मध्य में ही प्रत्यक्ष प्रश्न पूछकर वह साक्षात्कार देने वाले को विषय पर लाता है।

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन महत्वपूर्ण घटना है। स्पष्ट कीजिए।

साक्षात्कार की समाप्ति (The Closing of Interview )

साक्षात्कार की समाप्ति करना भी कठिन कार्य है। साक्षात्कार की समाप्ति दो रूपों में होती है

  1. साक्षात्कार की समाप्ति इस प्रकार करना कि छात्र को सन्तोष हो।
  2. साक्षात्कार इस प्रकार समाप्त किया जाए कि दूसरे साक्षात्कार को प्रारम्भ करने में कम समय लगे।

साक्षात्कार के समय साक्षात्कारकर्ता रूचि के कारण साक्षात्कार को इतना लम्बा कर देता है। कि उसकी समाप्ति करना उसके लिए दुष्कर हो जाता है। उसको चाहिए कि साक्षात्कार के समय यह ध्यान रखे कि साक्षात्कार का अन्त किस प्रकार करना है। अगर पुना उसी व्यक्ति का साक्षात्कार लेना है तो इन शब्दों के साथ साक्षात्कार समाप्त हो जाता है।।

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