सर्जनात्मकता और बुद्धि
प्रश्न यह है कि क्या प्रत्येक बुद्धिमान बालक सर्जनशील होता है ? इस प्रश्न का उत्तर देने में मनोवैज्ञानिकों में मतभेद रहा है। गेजल (Gatzels) एवं जैकसन (Jeckson) ने सर्जनात्मकता तथा बुद्धि के सम्बन्ध में ज्ञात करने के लिए अध्ययन किए। इस अध्ययन में 123 बुद्धि-लब्ध वाले छात्रों को लिया गया। 500 छात्रों का परीक्षण किया गया। इस परीक्षण में सर्जनात्मक व्यक्तित्व, शैक्षिक निष्यति आदि परीक्षण बैटरी का उपयोग किया गया। इस परीक्षण में पता चला कि खेल एवं मास्य विनोद प्रतिभाशाली सर्जन के लिए आवश्यक गुण होते हैं। सर्जनशील बालक प्रत्येक वस्तु तथा घटना को नवीन रूप देने का प्रयत्न करते हैं। कार्ल संगर ने इसे
- तत्व एवं प्रत्ययों (Elements and Concepts) के साथ खेलना कहा है,
- सर्जनशीन बालक नवीन अनुभावों के लिए तत्पर होते है
- सर्जनशील बालकों में कलाकार एवं वैज्ञानिक बनने की सम्भावनाएं अधिक होती है। देखा गया है कि अधिक उच्च बुद्धि-लब्धि वाले छात्रों की सर्जजनता, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि उच्च श्रेणी के व्यवसाय से सम्बन्धित होती है।
हर्ष के शासन प्रबन्ध पर एक लेख लिखिए।
परिपक्वता एवं सर्जनात्मकता
विकास काल अर्थात् परिपक्वता का सर्जनात्मकता से पर्याप्त सम्बन्ध रहता है। टोरेन्स (Torrance) ने निष्कर्ष निकाला कि सर्जनात्मकता शैशव से लेकर किशोरावस्था तक स्थिर रूप में नहीं बढ़ती है।
सर्जनात्मक परीक्षण में कुछ बिन्दुओं पर झुकाव दिए हैं। यह झुकाव या परिवर्तन पाँच वर्ष की अवस्था में दूसरी तथा तीसरी कक्षा में होते हैं, इसके बाद ग्यारहवीं कक्षा तक यह परिवर्तन आते हैं। टोरेन्स (Torrance) ने अपने अध्ययन का आधार अन्तः सांस्कृतिक (Cross Cultural) को बनाया हैं।
टोरेन्स (Torrance) ने सेवा कालीन अध्यापकों की सर्जनात्मक शिक्षण की विधियों को बताया परन्तु उसे सफलता न मिली, अतः उसने निर्देशात्मक सामग्री का निर्माण किया। उसने ड्रामेटिक ऑडियो टेप पर सामग्री को भरा और उसका उपयोग किया इनमें चिन्तन तथा सर्जन सम्बन्धी अनेक समस्याएं थी।
बच्चों के विकास का सर्जन से वहीं सम्बन्ध है जो अधिगम तथा परिपक्वता का है। इसमें परिपक्वता का ध्यान रखते हुए इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं
- आपके पिता यह किस प्रकार जानते है कि बाग में बीज किस प्रकार लगाया जाता है ?
- डॉक्टर यह निश्चय किस प्रकार करता है कि मरीज को कौन सी दवाई देनी चाहि ?
सर्जनात्मक विकास के कुछ आयाम
सर्जनात्मक शिक्षण में छात्रों की समस्याओं के समाधान करने के अवसर दिए जाते हैं। छात्रों से यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वह नवीन आविष्कार करेंगे या सर्जनात्मक ज्ञान देंगे। शिक्षण का उद्देश्य खोज या नवीन ज्ञान की प्रक्रिया से छात्रों का परिचित करना है। इससे छात्र समस्याओं एवं धारणाओं को भली भाँति समझने लगते हैं। उन्हें उपयोग तथा अनुपयोग की जानकारी हो जाती हैं। छात्रों में करके सीखने की आदत पड़ जाती है। यह पुस्तकीय ज्ञान पूरा पूरा लाभ उठाते हैं। सर्जनात्मक शिक्षण के लिए प्रायः इन आयामों को प्रयोग में लाया जाता है।
(1 ) प्राप्यसाक्षी से सूचना ग्रहण करना
इस आयाम में एक सदस्य द्वारा छात्रों को प्रदत्त प्रदान किया जाता है। इस प्रदत्त से अधिगतम निष्कर्ष ज्ञात करने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार ऐतिहासिक तथ्यों का निरूपण इस विधि से किया जाता है इतिहास का अध्यापक प्राचीन मुद्रायें, अभिलेख आदि का उपयोग कर सकता है। भूगोल में भी इसी प्रकार के सन्दर्भ एवं स्रोत का इस्तेमाल करके छात्रों में सर्जन की अभिलाषा उत्पन्न कर सकता है।
( 2 ) वर्तमान समस्याओं का समाधान
सर्जनात्मकता के शिक्षण के लिए वर्तमान समस्याएं और उनके हल भी लिए। जा सकते है। सामाजिक अध्ययन के शिक्षण के लिए यह विधि अधिक उपयोगी होती है। छात्र असन्तोष, सार्वजनिक सम्पत्ति को हानि पहुँचाना, अशिक्षा आदि समस्याओं को समाधान भी प्राप्त कर सकते हैं।
(3 ) भावी परिणाम की कल्पना
सर्जनात्मक शिक्षण के लिए भावी परिणाम की कल्पना एक अच्छी विधि है। किसी भी समस्या पर परिणामों की कल्पना से छात्रों को भावी जीवन में चिन्तन एवं निर्णय लेने की शक्ति का विकास होता है। जूले बर्न ने उन्नीसवीं शताब्दी (1865) में एक पुस्तक फ्राम अर्थ टू मैन’ लिखी। उसने जिस कल्पना का वर्णन किया, वह कितनी सटीक उतरी है। इसी प्रकार छात्रों में यदि मैं हेडमास्टर होता, यदि में प्रधानमंत्री होता तो क्या करता ? आदि कल्पनापूर्ण विवरण लिखकर सर्जनात्मक विकसित की जा सकती है।