समाजशास्त्र के मानवीय परिप्रेक्ष्य
समाजशास्त्रीय अध्ययन के मानविकी उन्मुखन को समझने के लिए सबसे पहले ‘विशुद्ध ‘विज्ञान’ और ‘व्यावहारिक विज्ञान’ के अन्तर को समझना आवश्यक है। विशुद्ध विज्ञान का काम तथ्यों के आधार पर केवल सिद्धांतों का निर्माण करना होता है, उन्हें लागू करना नहीं। व्यावहारिक विज्ञान वह है जो विभिन्न घटनाओं के बीच कार्य-कारण के सम्बन्ध की व्याख्या करने के साथ ही उन संवेदनाओं और प्रयत्नों को भी महत्व देता है जिनकी सहायता से सामाजिक घटनाओं की वास्तविकता को समझा जा सके। इसका उद्देश्य समाज और मानव के जीवन को पहले से अधिक अच्छा और संगठित बनाना है। यही सामाजिक अध्ययन का मानविकी उन्मुखन है। इस दृष्टिकोण से अनेक समाजशास्त्रियों का विचार है कि सामाजिक घटनाओं के विश्लेषण में मानवीय दृष्टिकोण का समावेश किये बिना घटनाओं की वास्तविकता को नहीं समझा जा सकता।
समाज का अर्थ एवं परिभाषित तथा समाज की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
समाजशास्त्र के जनक ऑगस्त कॉम्ट वह पहले विचारक थे जिन्होंने समाजशास्त्रीय अध्ययन की प्रकृति वैज्ञानिक मानने के बाद भी उन्होंने समाजशास्त्र को ‘सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान‘ कहा। उन्होंने सामाजिक पुनर्निर्माण की एक योजना प्रस्तुत की। इसमें मानव को एक ऐसे सांस्कृतिक प्राणी के रूप में स्पष्ट किया गया जिसके व्यवहार अनेक मूल्यों और संवेदनाओं से प्रभावित होते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से कॉम्ट का ही समर्थन करते हुए मैक्स वेबर ने एक ओर सामाजिक क्रियाओं को समाजशास्त्र के अध्ययन की प्रमुख विषय-वस्तु माना जबकि दूसरी ओर, उन्होंने मानवीय क्रियाओं के अधिकांश भाग को वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत न करके मानविकीय आधार पर स्पष्ट करने पर जोर दिया। ऐसी मानवीय क्रियाओं को उन्होंने ‘मूल्यों पर आधारित क्रियाएँ’, ‘परम्परागत क्रियाएँ’ तथा ‘भावनात्मक क्रियाएँ’ कहा।