समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।

समाजशास्त्र की विषय-वस्तु-विषय-वस्तु का तात्पर्य वे निश्चित विषय हैं जिनके विषय में सामाजशास्त्रीय अध्ययन किये जाते हैं। इस संदर्भ में विभिन्न विद्वानों का मत निम्नवत् है-

समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।
समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।

दुर्खीम के विचार-

दुर्खीम का विचार है कि समाजशास्त्र की विषय-वस्तु में उन सभी विशेषताओं का समावेश है जिन्हें हम सामाजिक तथ्य कहते हैं। सामाजिक तथ्य कार्य करने अथवा व्यवहार करने का वह ढंग है जिसमें व्यक्ति पर एक बाहरी दबाव डालने की क्षमता होती है। इस प्रकार सामाजिक तथ्यों की दृष्टि से दुर्खीम ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया है-

सामाजिक समस्याओं के प्रकारों की विवेचना। तथा भारतीय समाज की प्रमुख सामाजिक समस्यायें।

  1. सामाजिक स्वरूपशास्त्र – इसमें मानव जीवन के भौगोलिक आधार और सामाजिक संगठन के प्रकारों का अध्ययन किया जाता है। जैसे-जनसंख्या का घनत्व, संख्या और स्थानीय वितरण।
  2. सामाजिक दैहिकी- अध्ययन की सुगमता हेतु इसे अनेक उपविभागों में विभाजित किया गया है। जैसे धर्म का समाजशास्त्र, विधि या कानून का समाजशास्त्र भाषा का समाजशास्त्र परिवार का समाजशास्त्र आदि।
  3. सामान्य समाजशास्त्र – यह समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को स्पष्ट करने वाली एक महत्वपूर्ण शाखा है। इसका कार्य सामाजिक तथ्यों के सामान्य स्वरूप को ज्ञात करना तथा उन सामान्य नियमों की खोज करना है जो अन्य सामाजिक विज्ञानों के लिए भी महत्वपूर्ण है।

गिन्सबर्ग के विचार-

गिन्सबर्ग ने समाजशास्त्र के अध्ययन में सम्मिलित किये जाने वाले सभी विषयों को चार प्रमुख भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया है-

  1. सामाजिक रचनाकार- इसमें दो प्रकार के अध्ययन आते हैं-(क) जनसंख्या की मात्रा और गुण का विश्लेषण, जहाँ तक कि वह सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक समूहों के गुणों पर प्रभाव डालती है, (ख) सामाजिक ढाँचे का अध्ययन या सामाजिक समूहों एवं संस्थाओं के मुख्य समूहों का वर्णन और वर्गीकरण।
  2. सामाजिक नियंत्रण-समाज के सदस्यों के सामाजिक व्यवहारों को नियंत्रित एवं व्यवस्थित रखने वाले कुछ विषयों का इस विभाग के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। समाज के सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित एवं व्यवस्थित करने वाले विषयों में धर्म, कानून, प्रथा, परम्परा, जनरीति, रूढ़ियाँ, फैशन आदि प्रमुख हैं।
  3. सामाजिक प्रक्रियाएँ- यह समाजशास्त्र की एक अन्य शाखा है। इसके अन्तर्गत उन सभी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है जो एक प्रक्रिया के रूप में विभिन्न व्यक्तियों के बीच और विभिन्न समूहों के बीच पाये जाते हैं जैसे-सहयोग, संघर्ष, प्रभुत्व, अनुकरण, प्रतिस्पर्धा तथा स्वाधीनता आदि।
  4. सामाजिक व्याधिकी– इसमें समाज को विघटित करने वाली या सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों या दशाओं का अध्ययन किया जाता है। उदाहरणार्थ- अपराध, बाल-अपराध, निर्धनता, बेकारी, व्यक्तिगत विघटन, सामूहिक विघटन आदि।

सामाजिक समस्याओं के निवारण के उपाय की विवेचना कीजिए।

सोरोकिन के विचार-

सोरोकिन ने समाजशास्त्र की विषय सामग्री के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें बतालाई है-

  1. समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं के विभिन्न वर्गों के सम्बन्ध तथा सहसम्बन्धों का अध्ययन करता है। जैसे-आर्थिक, पारिवारिक व आचार सम्बन्धी, राजनैतिक, आर्थिक आदि।
  2. सामाजिक और गैर-सामाजिक घटनाओं के पारस्परिक सम्बन्धों तथा सहसम्बन्धों का अध्ययन। उदाहरणार्थ, प्राणिशास्त्रीय और भौगोलिक घटनाओं का सामाजिक जीवन से सम्बन्ध का अध्ययन।
  3. समाज की सभी सामाजिक घटनाओं की सामान्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाना चाहिए।

इस प्रकार सोरोकिन ने समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान मानते हुए समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना की है। इतना ही नहीं सोरोकिन ने इस सम्बन्ध में यह भी लिखा है कि “समाजशास्त्र समस्त प्रकमार की समाजिक घटनाओं की सामान्य विशेषताओं और उनके पारस्परिक सम्बन्धों और सहसम्बन्धों का विज्ञान रहा है और या तो वैसा ही रहेगा अथवा समाजशास्त्र का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति क्या है? समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में आपत्तियों का वर्णन कीजिए।

केरन्स के विचार –

केरन्स समाजशास्त्र की अध्ययन-वस्तु में निम्नांकित विषयों को सम्मिलित करने के पक्ष में है-मानवीय क्रिया, सामाजिक नियंत्रण, सामाजिक संगठन, सामाजिक संस्थायें, सामाजिक संहितायें, सामाजिक परिवार।

कार्ल मैनहाइम के विचार-

मैनहाइम ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया है-

  1. व्यवस्थित तथा सामान्य समाजशास्त्र – व्यवस्थित तथा सामान्य समाजशास्त्र व्यक्तियों द्वारा समाज में मिल-जुलकर रहने से सम्बन्धित कारकों का अध्ययन करता है, यह कारक चाहे किसी भी प्रकार के समाज से सम्बन्धित है।
  2. ऐतिहासिक समाजशास्त्र – यह दो भागों में विभाजित है- (क) तुलनात्मक समाजशास्त्र तथा (ख) सामाजिक गात्यमकता।

उपर्युक्त विचारकों के अतिरिक्त जार्ज सिमैल ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु में केवल सामाजिक प्रक्रियाओं के अध्ययन को ही सम्मिलित किया है। यूटर एवं हार्ट ने सामाजिक विरासत, व्यक्तित्व एवं उसके विकास तथा सामाजिक प्रक्रियाओं को समाजशास्त्र की विषय-वस्तु बताया है।

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