समाजशास्त्र की प्रकृति को निर्धारित कीजिए।

समाजशास्त्र की प्रकृति को निर्धारित कैसे करेंगे आइए जानते हैं- इस बात को लेकर विचारकों में मतभेद है। कतिपय विचारक जहाँ समाजशास्त्र की प्रकृति को वैज्ञानिक मानते हैं तो वहीं कतिपय विचारक समाजशास्त्र को अवैज्ञानिक मानते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन विचारकों ने समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं माना है, वे सम्भवतः विज्ञान को संकुचित रूप में ही जानते हैं। इनके विचारों में समाजशास्त्र भौतिक शास्त्र अथवा रसायन शास्त्र की तरह नहीं है, अतः यह विज्ञान नहीं है। इस संदर्भ में बॉटोमोर का मत उचित प्रतीत होता है कि समाजविज्ञान की वैज्ञानिक प्रकृति के विरुद्ध एक तर्क यह दिया जाता है कि ये विज्ञान प्राकृतिक नियम से मिलती-जुलती कोई चीज पैदा नहीं कर पाए हैं। यह सही है कि भौतिकी एवं रसायनशास्त्र आदि समाजशास्त्र से अधिक विकसित हैं लेकिन इसके साथ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समाजशास्त्र का इतिहास, एक वैज्ञानिक अन्वेषण के रूप में, लगभग दो सौ वर्ष पुराना है और इसकी अध्ययन-पद्धति का वास्तविक विकास तो प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आरंभ होता है। इसकी तुलना में भौतिकशास्त्र का इतिहास काफी पुराना है। ऐसी स्थिति में समाजशास्त्र और प्राकृतिक विज्ञानों की परिपक्वता एक जैसी नहीं हो सकती।

विज्ञान का अर्थ- वस्तुत:, विज्ञान एक दृष्टिकोण है। किसी समस्या, परिस्थिति या तथ्य को सुव्यवस्थित ढंग से समझने के प्रयास को हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण कह सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि विज्ञान अपने-आप में एक विषय-वस्तु नहीं है, बल्कि समझने या विश्लेषण की एक विधि है। स्टुअर्ट चेज कार्ल पियर्सन आदि ने भी स्पष्ट रूप से यह कहा है कि विज्ञान का सम्बन्ध पद्धति से है, न कि विषय-वस्तु से।

बर्नाड ने विज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी छ: क्रियाओं का उल्लेख किया है परीक्षा, सत्यापन, परिभाषा, वर्गीकरण, संगठन तथा अभिविन्यास, जबकि लुंडबर्ग ने समस्या का चुनाव, उपकल्पना का निर्माण, अवलोकन, वर्गीकरण एवं निरूपण, विश्लेषण एवं व्याख्या, सामान्यीकरण, परीक्षण तथा भविष्यवाणी के चरणों का उल्लेख किया है।

समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति क्या है? इस बात का स्पष्टीकरण राबर्ट वीर स्टीड ने इस प्रकार दिया है

  • (i) समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जो सामाजिक घटनाओं, समूहों, सम्बन्ध, प्रक्रियाओं एवं सामाजिक समस्या का अध्ययन करता है।
  • (ii) समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है क्योंकि यह सामाजिक सम्बन्ध का अध्ययन करता जो कि अमूर्त है। (iii) सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र एक निरपेक्ष विज्ञान है।
  • (iv) समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का अध्ययन, विश्लेषण एवं निरूपण करता है अतः समाजशास्त्र को एक विशुद्ध विज्ञान माना जा सकता है।
  • (v) वैज्ञानिक एवं तार्किक आधारों का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का माना जाता है।

अतः उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट रूप में कहा जा सकता है कि समाशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है।

समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा की विवेचना कीजिए।

समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में आपत्तियाँ-

समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में कुछ विचारकों द्वारा आपत्तियाँ की जाती है, जिनका विवरण निम्नलिखित है

(1) घटनाओं की जटिलता एवं परिवर्तनशीलता सामाजिक घटनाएँ अमूर्त होती है। इन घटनाओं में जटिलता भी पायी जाती है, क्योंकि समाज सदैव परिवर्तनशील रहता है। अतः इनका वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं है।

(2) निष्पक्षता (वस्तुनिष्ठता) का अभाव- किसी भी शास्त्र को वैज्ञानिक होने के लिए यह आवश्यक होता है कि उसमें वस्तुनिष्ठता हो, परन्तु समाजशास्त्र में इसका अभाव दिखाई पड़ती है।

(3) घटनाओं के माप में कठिनाई- सामाजिक घटनाओं की प्रवृत्ति अमूर्त एवं गुणात्मक है, जिसके कारण उनकी माप नहीं की जा सकती है। अतः समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

(4) प्रयोगशाला का अभाव- समाजशास्त्र में कोई भी निष्कर्ष अनुमान द्वारा निकाले जाते हैं। इसके लिए उनको किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि कोई भी वैज्ञानिक निष्कर्ष प्रयोगशाला के बिना नहीं निकला जा सकता है। अनुमान द्वारा निकाले गये निष्कर्ष कई बार गलत भी साबित हो जाते हैं, जबकि प्रयोगशाला में सदैव सही निष्कर्ष प्राप्त होता है। अतः समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं माना जा सकता है।

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