समाजशास्त्र की परिभाषा
समाजशास्त्र की परिभाषा को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग मतों का प्रतिपादन किया है। गिडिंग्स महोदय ने समाजशास्त्र को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज को ध्यान में रखकर उसका क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या है।’ जिंसबर्ग महोदय के अनुसार, “समाजशास्त्र यह विज्ञान है जो कि मानवीय अन्तः क्रियाओं के कारकों, मानव जीवन को विभिन्न आवश्यकताओं तथा परिणामों और सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है।” दुर्खीम महोदय ने समाजशास्त्र को सामूहिक प्रतिनिधियों का विज्ञान कहा है।
मैक्स बेबर ने समाजशास्त्र को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “समाजशास्त्र वह शास्त्र है जो कि सामाजिक क्रियाओं की आलोचनात्मक व्याख्या करने का प्रयास करता है। मैक्स बेबर यहाँ सामाजिक क्रियाओं के अध्ययन को समाजशास्त्र का मुख्य अध्ययन विषय मानते हैं।
समाज में क्षेत्रीय विविधताओं की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
यहाँ वास्तविकता यह है कि समाजशास्त्र को किसी एक विशेष परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता है परन्तु संक्षेप में हम कह सकते हैं कि “समाजशास्त्र यह विज्ञान है, जो मनुष्यों के अन्तर्सम्बन्धों एवं अन्तः क्रियाओं की व्याख्या करता है, उनसे उत्पन्न समस्याओं का अध्ययन एवं समस्या का समाधान ढूढ़ने का प्रयत्न करता है।”