संस्था की विशेषताएँ एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

संस्था की विशेषताओं का निम्नलिखित उल्लेख किया जा सकता है

  1. निश्चित उद्देश्य- संस्था की पहली विशेषता यह है कि संस्था का एक निश्चित उद्देश्य होता है। उद्देश्य के बिना हम किसी संस्था की कल्पना नहीं कर सकते।
  2. सामूहिक स्वीकृति संस्था की दूसरी विशेषता सामूहिक स्वीकृति है प्रत्येक संस्था के पीछे समूह की स्वीकृति होती है। इसी स्वीकृति के कारण संस्था प्रभावशाली हो जाती है।
  3. एक धारणा- संस्था के लिए किसी एक धारणा या विचार का होना आवश्यक है। जबकि व्यक्ति के सामने कोई आवश्यकता या समस्या आ जाती है तो सबसे पहले उनके मस्तिष्क में एक धारणा या विचार उत्पन्न होता है। यही विचार या धारणा अनेक स्तरों से गुजरने के बाद संस्था का रूप ले लेता है।
  4. प्रतीक- प्रत्येक संस्था का एक प्रतीक होता है, यह भौतिक एवं अभौतिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है। जैसे झण्डा राजनीतिक दलों का प्रतीक होता है, विवाह संस्था का प्रतीक मंगल कलश होता है। इस प्रकार प्रत्येक संस्था का कोई प्रतीक जरूर होता है।
  5. निश्चित नियमों का ढाँचा प्रत्येक संस्था के पीछे नियमों, कार्याविधियों, आदि का एक निश्चित ढाँचा होता है जो कि संस्था को सुरक्षित बनाये रखता है एवं उसे कार्यशील रूप प्रदान करता है।
  6. सांस्कृतिक व्यवस्था की इकाई प्रत्येक सामाजिक संस्था सांस्कृतिक व्यवस्था की इकाई होती है। विचार, विश्वास, जनरीति, रूड़ियाँ, प्रथाएँ आदि विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयों के क्रमबद्ध एवं सम्मिलित रूप को ही संस्था कहा जाता है। संस्था समाज की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग होती है।

निर्देशन एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की व्याख्या कीजिए ।

संस्था के प्रमुख कार्य निम्न हैं

  1. आवश्यकता की पूर्ति – प्रत्येक संस्था किसी न किसी मानव आवश्यकता की पूर्ति के लिए ही बनती है। संस्था मनुष्यों के लिए उद्देश्य पूर्ति का साधन है, स्वयं उद्देश्य नहीं।
  2. व्यवहार का नियन्त्रण-संस्था समूह की इच्छा और आज्ञा की प्रतीक होती है। उसका विरोध करना समूह का विरोध समझा जाता है, अतः प्रत्येक व्यक्ति उसके अनुसार व्यवहार करता है। वे जवीन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य की क्रियाओं को नियन्त्रित करती हैं।
  3. एकरूपता – संस्थायें प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक निश्चित आचरण प्रदान करती हैं। हर स्थिति के लिए संस्था एक आदर्श व्यवहार निश्चित करती है। इस प्रकार समूह के सभी व्यक्तियों के व्यवहारों और क्रियाओं में एकरूपता दिखाई देती है।
  4. एकता – सामाजिक व्यवहार में एकरूपता आ जाने से समूह में एकता की भावना पैदा होती है। जब समूह के सभी सदस्य अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति एक ही प्रकार से करते हैं, तो उनमें पारस्परिक एकता का भाव स्वयमेव उत्पन्न हो जाता है।
  5. संस्कृति का हस्तान्तरण- संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्थाओं के माध्यम से ही हस्तांतरित होती है। संस्कृति के मौलिक तत्व संस्थाओं में होते हैं, अतः संस्कृति की निरन्तरता सामाजिक संस्थाओं पर ही निर्भर है।

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