शिक्षा के जीविकोपार्जन के उद्देश्यों से आप क्या समझते हैं? विवेचन कीजिए।

शिक्षा का जीविकोपार्जन का उद्देश्य अथवा व्यावसायिक उद्देश्य

शिक्षा का जीविकोपार्जन का उद्देश्य अथवा व्यावसायिक उद्देश्य जीविकोपार्जन के उद्देश्य का अभिप्राय है कि व्यक्ति को शिक्षा के द्वारा इतना समर्थ बनाया जाये कि वह अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके तथा अपने जीवन का निर्वाह स्वयं का सके। परन्तु हमें इस बात का ध्यान भी रखना चाहिये कि हम बालक को जिस भी व्यवसाय । लिये प्रशिक्षित कर रहे हैं, बालक उसके योग्य है, अथवा नहीं और उसकी रुचि उस व्यवसाय में है या नहीं। वास्तव में बालक की योग्यता, रुचि, क्षमता अथवा अभिवृत्ति को ध्यान में रखकर है उसे व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये। इसके साथ ही किसी भी व्यावसायिक शिक्षा को ग्रहण करने के पश्चात् बालक को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर अवश्य होना चाहिये। वास्तव में एक अच्छी शिक्षा नहीं कही जा सकती है जो न सिर्फ बालक के व्यक्तित्व का विकास करती है वरन् उसे इसे योग्य भी बनाती है कि वह समाज की सम्पन्नता में अपना कुछ योगदान दे सके। यही कारण है कि विद्वानों ने जीवकोपार्जन हेतु शिक्षा को लक्ष्य बनाकर बालक को आगे बढ़ाने का सतत प्रयास किया है।

मेरे विचार से शिक्षा प्रक्रिया के प्रारम्भ होने के समय से ही अर्थात् आदिकाल से लेकर वर्तमान समय तक सभी लोगों ने जीविकोपार्जन के उद्देश्य को स्वीकार किया है। बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यानी मनीषियों ने भी जीविकोपार्जन के उद्देश्य के सम्बन्ध में अपनी सकारात्मक राय व्यक्त की। है। दर्शन की प्रसिद्ध विचारधारा यथार्थवाद भी यह मानता है कि शिक्षा में प्रथम स्थान व्यावसायिक उद्देश्यों को दिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों और विचारकों ने भी व्यावसायिक उद्देश्यों का समर्थन किया है, जो इस प्रकार है

(1) स्पेन्सर महोदय की रिपोर्ट- “किसी भी व्यवसाय के लिये तैयार करना हमारी शिक्षा का प्रमुख अंग है।”

( 2 ) जान डीवी के अनुसार – “यदि एक व्यक्ति अपनी जीविका नहीं कमा सकता है तो इस बात का गम्भीर भय है कि वह अपने चरित्र का पतन करे, और दूसरों को हानि पहुँचाये।”

(3) डॉ० ज़ाकिर हुसैन के अनुसार- “राज्य का सर्वप्रथम उदद्देश्य होगा कि वह अपने नागरिकों को किसी लाभदायक कार्य के लिये समाज के किसी निश्चित कार्य के निमित्त शिक्षित करे।”

(4) महात्मा गाँधी के अनुसार – “सच्ची शिक्षा को बालक के लिये बेरोजगारी के विपरीत एक बीमे के रूप में होना चाहिये।” सर्वप्रथम व्यावसायिक शिक्षा के विकास के लिये भारतवर्ष में गाँधी जी तथा जाकिर हुसैन द्वारा बेसिक शिक्षा योजना पद्धति पर बहुत अधिक बल दिया गया था। साधारणतः इस शिक्षा का प्रयोजन भी बालक को किसी व्यवसाय के लिये तैयार करना था, और प्रारम्भ से ही उसमें हस्तकलाओं के प्रति आस्था उत्पन्न करना था। वास्तव में यह शिक्षा इस कारण भी अनिवार्य है। चूँकि यह बालक को गलत कार्य व अनैतिक कार्य करने से रोकती है। जब व्यक्ति की आर्थिक आवश्यकतायें पूरी नहीं हो पाती है तो सम्भावना यह होती है कि वह गलत कार्य करने की दिशा में मुड़ जाये। इस कारण अप्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक शिक्षा का उद्देश्य हमें सही रास्ते पर लाने का प्रयास करना है। साथ ही समाज समस्त मार्ग के अनुपालन करने की शिक्षा देता है। इस प्रमुख उद्देश्य के पक्ष और विपक्ष में विद्वानों की क्या-क्या विचारधारायें हैं उनका वर्णन नीचे किया गया है।

शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयामों की आवश्यकता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।

जीविकोपार्जन अथवा व्यावसायिक उद्देश्य के पक्ष में तर्क

  1. वर्तमान युग में वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी के सिद्धान्तों को समझने हेतु भी व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। वास्तव में आज के युग में ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग पर अधिक बल दिया जा रहा है। साथ ही साथ इस शिक्षा के द्वारा ज्ञान प्रक्रिया को समझने तथा उसका व्यावहारिक प्रयोग करने में सहायता मिलती है।
  2. कोई भी व्यक्ति जब धनोपार्जन करने लगता है तो उसे प्रतिष्ठा, सुख व शान्ति की प्राप्ति होने लगती है
  3. व्यावसायिक शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा को उपयोगी बनाता है। उसे सजावट या आभूषण की वस्तु बनने तक सीमित नहीं कर देता है।
  4. इसमें व्यक्ति की रुचि, क्षमता व योग्यता को ध्यान में रखा जाता है तथा उसे उस व्यवसाय के लिये प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके लिये वह उपयुक्त होता है।
  5. यह व्यक्ति को सामाजिक व आर्थिक कुशलता प्रदान करता है जिससे व्यक्ति राष्ट्रीय आय में बढ़ोत्तरी करता है तथा राष्ट्र को भौतिक सम्पन्नता एवं प्रगति प्रदान करता है।
  6. यह बेरोजगारी की समस्या का समाधान करता है तथा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है जिससे वह दूसरों के ऊपर आश्रित न रह सके।
  7. चूँकि इसमें व्यक्ति को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है अतः निष्कर्ष रूप में व्यावसायिक दृष्टि से हम कुशल व योग्य व्यक्तियों को क्रमशः तैयार करते जाते हैं।
  8. इस शिक्षा के द्वारा मनुष्य श्रम के महत्व को समझने लगता। है। परन्तु कुछ शिक्षाशास्त्रियों का विचार है कि शिक्षा के व्यावसायिक उद्देश्य को शिक्षा में बहुत अधिक महत्व देने से मानव व पशु में कोई अन्तर नहीं रह जाता है। जिस प्रकार एक पशु के जीवन का लक्ष्य सिर्फ भोजन करना है वही लक्ष्य मानव के जीवन का भी हो जाएगा। इसके अतिरिक्त और भी कई ऐसे कारण हैं जिनके फलस्वरूप शिक्षाविद् शिक्षा के इस उद्देश्य की आलोचना करते हैं। आलोचनापूर्ण नकारात्मक बिन्दु निम्न प्रकार हैं

विपक्ष में तर्क

  1. इसमें मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की बात की गई है यह बहुत ही संकुचित है। इसमें मानव के मानसिक, आध्यात्मिक व चारित्रिक विकास की बात नहीं की गई है।
  2. ” वह शिक्षा उदार नहीं है जिसका उद्देश्य मात्र धनोपार्जन करना है या शारीरिक शक्ति की अभिवृद्धि करना है तथा जो हमें बुद्धि और न्याय से परे ले जाये।” -प्लेटो
  3. “व्यावसायिक प्रशिक्षण मानव के दृष्टिकोण को संकुचित करता है।” बी.डी. भाटिय
  4. यह मनुष्य को स्वार्थपूर्ण बना देता है तथा उसमें अवांछनीय प्रतिस्पर्द्धात्मक दरिस्टिकोड उत्पन्न करता है।
  5. इस उद्देश्य के समर्थकों का विचार है कि धन मनुष्य को सुख व शान्ति देता है जबकि वास्तवीक शान्ति आन्तरिक होती है या मनुष्य की आत्मा की शान्ति ही सच्ची शान्ति है।
  6. इसमें शिक्षा साधन न बनकर साध्य बन जाती है। जबकि प्रत्येक शिक्षाशास्त्रीकी विचारधारा है कि यह एक लक्ष्य प्राप्ति का साधन है। शिक्षा को साध्य बनाना उसके महत्व को कम करना है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top