शिक्षा एवं संस्कृति में क्या सम्बन्ध है? इन दोनों में से कौन दूसरे पर अधिक आश्रित

शिक्षा एवं संस्कृति में सम्बन्ध

(1) संस्कृति का अर्थ

संस्कृति का अर्थ भिन्न-भिन्न अनुशासनों में मित्र-भित्र रूपों में लिया गया है। इतना ही नहीं अपितु किसी एक अनुशासन में भी इसके मूल तत्वों के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। अतः हमें सर्वप्रथम संस्कृति के सम्प्रत्यय को समझने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार ‘संस्कृति’ शब्द आंग्ल भाषा के ‘कल्चर’ (Culture) शब्द का हिन्दी रूपान्तर हैं कल्वर’ (Culture) शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के कलदुरा (Cultura) नामक शब्द से हुई है। जर्मन भाषा के ‘कलदुर (Kultur) शब्द का भी वही अर्थ होता है जो लैटिन भाषा के कलदुरा से लगाया जाता है। और कलदुर शब्द का यही अर्थ होता है जो हम संस्कृति शब्द से समझते हैं। संस्कृति का क्या अर्थ है? बच्चा इस व्यापक विश्व में पशुवत प्रवेश करता है। पशु होने के नाते उसमें कुछ आवश्यकताएँ निहित हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह हाथ पैर हिलाता दुता और येता है उसको दूध पिलाती है उसे नहलानी घुलाती और कपड़े पहनाती है। शनैः शनैः यह बड़ा होता जाता है।

शिक्षा और संस्कृति

सर्वप्रथम वह अपनी माँ को पहचानने लगता है और बोली सीखने लगता है। जब बच्चा कुछ और बढ़ा हो जाता है तो उसे जूते पहनाये जाते हैं, खिलौने खेलने के लिए दिये जाते हैं, बोलना बताना सिखाया जाता है। जब बच्चा 4-5 वर्ष का हो जाता है। तो उसे स्कूल भेजा जाता है, स्कूल में उसे भाषा, कला, हिसाब इत्यादि की शिक्षा मिलती है। घर में बाबा और दादी उसे रामायण और महाभारत की कहानी सुनाते हैं और यह बनाते हैं कि गुरूजनों और अतिथियों से किस प्रकार नमस्कार करना चाहिए किस प्रकार उनका आदर सत्कार करना चाहिए। जब बालक काफी बड़ा हो जाता है तो उसे विज्ञान, कला और दर्शन से प्राप्त ज्ञान सिखाया जाता है। इस प्रकार वह इन सब चीजों के बीच अपने ‘व्यक्तित्व’ (Personality) को विकसित कर लेता है। क्या आप बता सकते हैं कि ये समस्त चीजें क्या है? आप क्या बता सकते हैं कि यह ‘पर्यावरण’ (Envirnment) जो हमारे व्यवहार को परिचालित तथा नियन्त्रित करता है, क्या है? इन सब प्रश्नों का एक मात्र उत्तर आप यह देंगे कि यह हमारी ‘सामाजिक विरासत’ (Social Heritage) है जो हमें हमारे समाज ने प्रदान की है इसी सामाजिक विरासत को ‘संस्कृति’ (Culture) कहते हैं। इसके अन्तर्गत मनुष्य निर्मित उस सम्पूर्ण व्यवस्था का समावेश होता है जिसके अन्तर्गत रीति रिवाज, रूड़ियां परम्पराएँ, संस्थाएँ, सामाजिक संगठन, भाषा, धर्म, कला, विज्ञान, कानून, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था, मशीनों और उन सब उपकरणों का समावेश होता है, जो मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक है। यह संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती है और प्रत्येक पीढ़ी इनको परिवर्तित तथा परिवर्द्धित करती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं- मानव निर्मित उस सम्पूर्ण व्यवस्था को या मानव अर्जित उस सम्पूर्ण ज्ञान को जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहता तथा जिसको प्रत्येक पीढ़ी परिवर्तित तथा परिवर्तित करती है संस्कृति या सामाजिक विरासत (Culture or Social Heritage) कहते हैं।

((2) संस्कृति की परिभाषा ( Definitinof Culture)

(1) ई. बी. टायलर- “संस्कृति वह मिश्रित पूर्ण व्यवस्था है, जिसमें वह समस्त ज्ञान विश्वास, कला, नैतिकता के सिद्धान्त, विधि विधान, प्रथाएँ एवं अन्य समस्त योग्यताएँ तथा आदतें सम्मिलित हैं जिन्हें व्यक्ति समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।” “Culture is that complex whole which includes knowledge, belief, art, morals, law, custom and other capabilities and habits acquired by man as member of the society.”

-E. B. Tylor

(2) मैकाइवर एवं पेज “संस्कृति हमारे दैनिक व्यवहार में कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन और आनन्द में पाए जाने वाले रहन-सहन और विचार के तरीकों में हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।” ” Culture is the expression of our nature in our modes of living and of thinking in our everyday intercourse, in art, literature, in religion, in recreation and enjoyment.”

Maciver and Page

(3) मैलिन्यास्की “संस्कृति के अन्दर वे पदार्थ, औजार और शारीरिक एवं मानसिक आदतें सम्मिलित रहती हैं, जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करती है।” “Culture consists of the body of commodities and instruments and well as a customs and body or mental habits which work directly of indirectly for the satisfaction of human needs.” -Malimowski

(4) जे. एफ. क्यूबर- “संस्कृति सीखे हुए व्यवहार तथा सीखे हुए व्यवहारों के लिए ऐसे उत्पादों (जिसमें मनोवृत्तियाँ, ज्ञान तथा पार्थिव वस्तुएँ सम्मिलित है) का सतत परिवर्तनशाली प्रतिमान है, जिनका समाज के सदस्यों द्वारा प्रयोग और हस्तान्तरण होते हैं।” “Culture is the continually changing patterns of learned behaviour and the products of learned behaviour (including attitudes, knowledges and material objects) which are shared by and transmitted among the members of society.” -J.F. Cuber

(5) राल्फ लिंटन “संस्कृति सीखे हुए व्यवहारों और व्यवहार परिणामों की वह व्याख्या है, जिसके निर्माणकारी तत्व किसी विशिष्ट समाज के सदस्यों द्वारा प्रयुक्त तथा संचालित होते हैं। “A culture is the configuration of learned behaviour and results of behaviour whose components elements are shared and transmitted by the members of a particular society”

Ralph Linton

संस्कृति की विशेषताएं

उपर्युक्त पतिसंस्कृति के अर्थ एवं परिभाषा से निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है.

  1. संस्कृति सीखे हुए गुण हैं।
  2. चारी होती है।
  3. संस्कृति सामाजिक होती है।
  4. संस्कृति का रूप परिवर्तनशील होता है।
  5. संस्कृति में भौतिक एवं अभौतिक दोनो प्रकार के तत्व सम्मिलित हैं।
  6. संस्कृति होती है।
  7. संस्कृति उपयोगी होती है।
  8. संस्कृती होती है।
  9. संस्कृति आदायक होती है।

संस्कृति के तत्व

मुख्य रूप से संस्कृति के तत्वों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. भौतिक संस्कृति (Material Culture) : भौतिक संस्कृति के अन्तर्गत उन समस्त भौतिक तत्वों अथवा वस्तुओं का समावेश है जिनका निर्माण मनुष्यों ने किया है जैसे रेलगाड़ी, मोटर, हवाई जहाज, पेन्सिल, मकान, रेडियो, डेस्क, लोटा थाली आदि।
  2. अभौतिक संस्कृति (Non-material Culture) : अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत समाज में पाई जाने वाली समस्त जनरीतियों, रूढ़ियों, प्रथाओं, विश्वासों, आदशों, धर्मों, कलाओं इत्यादि का समावेश होता है।

शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध

प्राचीन काल से शिक्षा एवं संस्कृति का अत्यधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है। ब्रामेल्ड के शब्दों में, ‘संस्कृति की सामग्री से ही शिक्षा का प्रत्यक्ष रूप से निर्माण होता है और यही सामग्री, शिक्षा को न केवल स्वयं के उपकरण वरन् उसके अस्तित्व का कारण भी प्रदान करती है।” इसी प्रकार शिक्षा भी संस्कृति का परिवर्द्धित एवं परिमार्जित कर उसका अस्तित्व एवं निरन्तरता बनाये रखती है। शिक्षा एवं संस्कृति के इस अटूट एवं गहरे सम्बन्ध की पुष्टि में हम निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं

(1) संस्कृति की निरन्तरता में सहायता

शिक्षा जाति की संस्कृति या सांस्कृतिक परम्परा की निरन्तरता में उल्लेखनीय योग देती है और उसका अन्त नहीं होने देती है। अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया की आदिम जातियों की संस्कृति केवल इसीलिए नष्ट हो गयी क्योंकि उनमें शिक्षा का पूर्ण अभाव था। अपनी-अपनी संस्कृति की रक्षा करने के लिए प्रगतिशील देशों ने विद्यालयों की स्थापना करके उनमें शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की है और उन पर संस्कृति की निरन्तरता का दायित्व सौंपा गया है। इस प्रकार शिक्षा संस्कृति की निरन्तरता में सहायक सिद्ध होती है।

(2) संस्कृति के हस्तान्तरण में सहायता

समाज का सदस्य होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति अपनी संस्कृति को सीखता है और अगली पीढ़ी को भी सीखने का अवसर देता है। इस कार्य में शिक्षा संस्कृति की अपूर्व सहायता करती है। यों तो व्यक्ति अजात रूप में संस्कृति की बहुत-सी बातें सीखता है किन्तु उसे अनेक बातों की शिक्षा अध्यापक द्वारा विद्यालय में सीखने को मिलती है। इस प्रकार शिक्षा द्वारा संस्कृति का हस्तान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को होता रहता है। इस संदर्भ में श्री ओटावे (Ottaway) ने ठीक ही लिखा है, “शिखा का एक कार्य समाज के सांस्कृतिक मूल्यों एवं व्यवहार के प्रतिमानों को उसके तरुण एवं समर्थ सदस्यों को हस्तान्तरित करना है।’

(3) संस्कृति के परिवर्तन एवं परिवर्द्धन में सहायता

शिक्षा संस्कृति को परिवर्तित परिमार्जित एवं परिवर्तित भी करती है। कोई भी संस्कृति क्यों न हो सबमें कुछ ऐसी प्रथाओं, परम्पराओं, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों आदि का विकास हो जाता है। जिनसे समाज को मुक्त करना आवश्यक हो जाता है। शिक्षा इस कार्य में महान योगदान देती है यह संस्कृति के अवधित मूल्यों, आदर्शों आदि का स्वजाति कार्य है, जिसके कारण संस्कृति का एक नवीन रूप हमारे सामने प्रकट होता है।

(4) व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास में सहायता

हम विद्यालयों में जिन विषयों का अध्ययन करते हैं उनमें संचित ज्ञान हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। उदाहरण के लिए शिक्षा हमें इतिहास का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करके हमें बार-बार देश के महान पुरुषों एवं वीरों की महानता की झलक देती है और इस प्रकार हमें अपना सांस्कृतिक विकास का अवसर प्रदान करती है। अतः ‘राधाकृष्णन आयोग’ का परमर्श है-“महानता की स्वाभाविक शतक सांस्कृतिक विकास की निधि है। जिनमें स्वयं महानता नहीं है उन्हें (इतिहास का अध्ययन करके) महान् व्यक्तियों की संगति में रहना चाहिए।”

(5) व्यक्तित्व के विकास में सहायक

शिक्षा संस्कृति के सहयोग से बालक के व्यक्ति का विकास करती है। संस्कृति से शिक्षा को ऐसे उपकरण प्राप्त होते हैं जिनका प्रयोग वह बालक के मानसिक, संवेगात्मक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए करती है। इस संदर्भ में ओटावे (Ottaway) ने ठीक ही लिखा है, “जिस संस्कृति में व्यक्तित्व का विकास होता है, उसके द्वारा उसका आंशिक निर्माण किया जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित होने के कारण शिक्षा संस्कृति पर आश्रित रहती है।”

प्रजातंत्र में शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।प्रजातंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है।

(6) शिक्षा में संस्कृति का समावेश

शिक्षा के अन्तर्गत कला एवं मानव अभिव्यक्तियों के अन्य सांस्कृति स्वरूपों का समावेश रहता है। यदि शिक्षा का अर्थ बालक की प्रसुप्त शक्तियों का जागृत करके बाहर लाना है तो ऐसा होना आवश्यक है।

इस प्रकार किसी समाज की शिक्षा मुख्य रूप से उसके दर्शन, स्वरूप, राज्यतन्त्र, अर्थतन्त्र, मनोवैज्ञानिक तथ्यों और वैज्ञानिक आविष्कारों पर निर्भर करती है और समाज का स्वरूप और धर्म एवं दर्शन उसकी संस्कृति के अंग होते हैं।

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