यशोवर्मन का प्रारम्भिक जीवन और उपलब्धियाँ बताइये।

यशोवर्मन का प्रारम्भिक जीवन

यशोवर्मन कौन था ? सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात् उत्तरी भारत में कोई प्रतापी राजा नहीं हुआ। लगभग 75 वर्ष बाद यशोवर्मन ने कन्नौज को गौरवान्वित करने का प्रयास किया। वाक्पति ने लिखा है कि यशोवर्मन चन्द्रवंश का मणि था। प्रायः इतिहास में इसे यशोवर्मा कहकर भी पुकारा गया है। कर्नियम के विचार से यह मौखरी वंश का या जिसका राज्य हर्ष के पूर्व कन्नौज पर था तथा भट्ट सूरिचरित्र ने वर्णन किया है कि यशोवर्मन चन्द्रगुप्त मौर्य का वंशज था। डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी इसका शासनकाल 725 ई. से 752 ई. के बीच मानते हैं। डॉ. स्मिव ने इसका शासनकाल 728 ई. से 745 ई. के मध्य माना है।.

कन्नौज नरेश यशोवर्मन एवं उसकी उपलब्धियों के विषय में उल्लेख भारतीय तथा विदेशी साहित्य में प्रचुर मात्रा में हुआ है। नालन्दा अभिलेख में यशोवर्मन के मन्त्री के पुत्र मालद द्वारा भिक्षु संघ एवं सम्राट बालादिव्य द्वारा निर्मित नालन्दा के बौद्ध मन्दिर को दिये गये दान का विवरण है।

उसके साम्राज्य विस्तार गौड़वाहों के लेखक ने यशोवर्मन की विजय यात्राओं का वर्णन किया है। अनुसार यशोवर्मन ने दक्षिणी पूर्वी मार्ग से प्रस्थान किया और कन्नौज से चलकर बीच के प्रदेशों को जीतता हुआ कानपुर, फतेहपुर और प्रयाग होता हुआ मिर्जापुर पहुंचा था। वाक्पति ने लिखा है कि उसने बंग (पूर्वी बंगाल) के राजा को पराजित किया जिसके पास सैनिका की अधिक मात्रा थी। मिर्जापुर से यशोवर्मन ने मगध की ओर प्रस्थान किया। इस समय मगध और गौड़ एक ही साम्राज्य में सम्मिलित थे। सम्भवतः मगध में गुप्त द्वितीय राज्य कर रहा था। यह यशोवर्मन के हाथों पराजित हुआ।

मगध और गौड़ पर विजय के पश्चात् यशोवर्मन ने पूर्वी बंगाल के खंग वंशीय राजा रामराज से लोहा लिया। मगध के राजा के सामन्त और कालीन उसके साथ भागे किन्तु अपने व्यवहार से लज्जित होकर यशोवर्मन से युद्ध करने के लिए तुरन्त लौट गये। भयानक युद्ध हुआ जिसमें मगध के मित्र राजाओं के रक्त से युद्धभूमि लाल हो गयी थी। जब मगध का शासक भागने लगा तो यशोवर्मन ने उसे पकड़कर उसकी हत्या कर दी।

यशोवर्मन की अन्य विजय – इसके बाद यशोवर्मन घूमता हुआ नर्मदा नदी के तट पर पहुँचा और मरू देश होते हुए थानेश्वर आया। वहाँ अपना सिक्का जमाता हुआ वह पूरब की ओर अयोध्या में बढ़ा और तत्पश्चात् मन्दारपर्वत के निवासियों को अपने अधीन कर लिया। तत्पश्चात् वह पुनः अपनी राजधानी वापस आ गया।

साहित्यक उपलब्धियाँ-

यशोवर्मन साहित्य प्रेमी सम्राट था। उसकी राजसभा में दो महाकवि थे प्रथम वाकपतिराज व द्वितीय भवभूति। वाकपतिराज ने गाड़वाहों नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की जबकि भवभूति ने महावीर चरितम, मालती माघवम् और उत्तर रामचरितम् नामक संस्कृत नाटकों की रचना की। कल्हण की राजतरंगिणी द्वारा कश्मीर के महान सम्राट ललिता दिव्य मुक्तापीड एवं कन्नौज नरेश यशोवर्मा के बीच हुए संघर्ष का बोध होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मगध में यशोवर्गपुर नामक नगर की स्थापना यशोवर्मा ने ही करवायी थी। यशोवर्मा स्वयं कवि तो था ही साथ ही काव्य प्रेमी एवं कवियों का उदार आश्रयदाता भी था। राजतरंगिणी के अनुसार, “कवि यशोवर्मा, जो स्वयं वाक्यतिराज एवं श्री भवभूति आदि कवियों से सेवित था। अपनी पराजय के पश्चात् उसके ललिता दिव्य के गुणों का प्रशस्ति का बन गया।”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top