मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय शासकों के प्रतिरोध पर प्रकाश डालिए।

मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय शासकों के प्रतिरोध

भारत पर प्रथम मुस्लिम आक्रमण अरबों द्वारा किया गया। यह आक्रमण सिन्ध पर मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सन् 711-712 ई. मे किया गया। इस समय राजा दाहिर सिन्ध का शासक था। इस युद्ध मे राजा दाहिर मारा गया। भारत के इतिहास में यह एक साधारण दुर्घटना मात्र थी। परन्तु इसक सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि भारतीय और अरब एक दूसरे को समझने लगे और दोनों एक दूसरे की संस्कृति और सभ्यता से प्रभावित हुए। कासिम के बाद गजनी के शासन सुबुक्तगीन ने 989 ई. में पंजाब राज्य पर आक्रमण कर लूट पाट किया। सुबुक्तगीन के बाद उसके पुत्र महमुद गजनवी ने 100.1 से 1027 ई. तक भारत पर आक्रमण कियो, जिसमें 1001 में पंजाब, 1006 में मुल्तान, 1005 में भटिण्डा, 1009 में अलवर 21014 मे थानेश्वर तथा 1025 ई. में सोमनाथ मन्दिर पर हुए आक्रमण प्रसिद्ध है महमूद गजनवी के बाद गोर वंश के मुहम्मद गोरी ने 1175 से 1205 ई. के मध्य कई आक्रमण किये, जिसमें 1192 ई. के तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद भारत में वह मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना करने में सफल हुआ।

चन्देल शासक और तुर्क आक्रमण-

चन्देल शासको ने विदेशी तुर्कों के आक्रमण का जबरदस्त प्रतिराध किया और उनके सामने आसानी से हार स्वीकार नहीं की। तुर्क चंन्देल संघर्ष का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

धंग और सुबुक्तगी

धंग और सुबुक्तगीन से सीधे बुद्ध का कोई वर्णन नहीं मिलता परन्तु जयपाल द्वारा निर्मित संघ में धंग ने भी सहायता प्रदान की थी। अतः धंग भी मुसलमानों की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए प्रयत्नशील या यद्यपि रंग की सेना को सुबुक्तगीन ने परास्त कर दिया था।

गण्ड और महमूद-

गण्ड के समय भी महमूद गजनवी ने चन्देत राज्य पर आक्रमण किया था। गण्ड ने महमूद का सामना करने के लिए एक संघ का निर्माण किया। संघ की सम्मिलित सेना आनन्द पाल के नेतृत्व में महमुद की सेना से भिड़ी लेकिन सफलता महमूद को प्राप्त हुई।

महमूद का चन्देलो पर पुनः आक्रमण-

प्रतिहार राजा राज्यपाल ने महमूद गजनवी के समक्ष समर्पण कर दिया। गण्ड ने अपने पुत्र विद्याधर को राज्यपाल को सजा देने के लिए भेजा। राज्यपाल मार डाला गया और त्रिलोचनपाल को कन्नौज का शासक घोषित किया गया। इस घटना से महमूद को बहुत क्रोध आया और उसने 1019 ई. में गण्ड के राज्य पर आक्रमण कर दिया। महमूद की विशाल सेना को देखकर गण्ड घबरा गया और युद्ध स्थल से भाग गया।

विद्याधर और महमूद

गण्ड के बाद विद्याधर चन्देलों का राजा बना उसे भी महमूद के आक्रमण का सामना करना पड़ा। लेकिन महमूद और विद्याधर में संघर्ष के बाद एक सन्धि हो गयी और इस प्रकार महमूद विद्याधर को पूरी तरह परास्त न कर सका।

अतः तत्कालीन भारतीय शासको में केवल चन्देल शासक ही थे जिन्होने तुर्कों का वीरता पूर्वक मुकाबला किया और आसानी से तुर्कों से हार नहीं मानी।

पृथ्वीराज तृतीय और गोरी

पृथ्वीराज चौहान का शरीर बलिष्ठ सुन्दर और व्यक्तित्व . आकर्षक था। वह अपने समय का श्रेष्ठ तीरज था। मुस्लिम लेखकों ने भी उसकी शक्ति की प्रशंसा की है। परन्तु पृथ्वीराज चौहान में दूरदर्शिता का अभाव था। गोरी के गुजरात आक्रमण के बाद भी उसने राजूत राजाओं का संघ बनाने का प्रयास नहीं किया, इसके विपरीत संकट के समय उसने चालुक्य नरेश की कोई मदद नहीं की। परमर्दिदेव के उपर आक्रमण और संयोगिता का अपहरण करके उसने अपने समकालीन दो शक्तिशाली राजपूत राजवंशों से शत्रुता मोल ले ली जिसके कारण उसे तराइन के युद्ध में इनसे कोई मदद नहीं मिल सकी।

तराइन का प्रथम युद्ध-

तराइन का प्रथम युद्ध सन् 1191 ई. में दिल्ली के समीप आधुनिक हरियाणा के करनाल जिले में स्थित तराइन के मैदान में चाहमान शासक पृथ्वीराज तृतीय और मुहम्मद गोरी की सेनाओं के मध्य हुआ। पृथ्वीराज तृतीय ने अपने सामन्त गोविन्दराज के साथ एक बड़ी सेनी सहित तुर्कों पर आक्रमण किया । राजपूत सेना ने चारों ओर से तुर्कों पर इतनी भीषण चोटें की कि वह शीघ्र ही मैदान छोड़कर तितर-बितर होकर भाग गये। गोरी ने गोविन्दराज पर माले से आक्रमण करके उसके दो दांत तोड़ दियें, तो गोविन्दराज ने भी अपने बरछे से उसपर प्रहार करके उसे इतना घायल कर डाला कि गोरी मैदान छोड़कर भाग गया। इस प्रकार तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई।

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तराइन का दूसरा युद्ध-

पृथ्वीराज से पराजित होने के बाद भी गोरी ने हिम्मत नहीं हारी और एक वर्ष के बाद ही वह तराइन के मैदान मे पुनः आ डटा । मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज के पास सन्देश भेजा कि वह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले अथवा युद्ध के लिए तैयार रहे। पृथ्वीराज ने इस्लाम स्वीकार करने से इन्कार कर दिया । मुहम्मद गोरी ने कूटनीति से काम लेते हुए सोयी हुई राजपूत सेना पर आक्रमण कर दिया । इस अचानक आक्रमण से राजपूत सेना सम्भल नहीं पायी और शीघ्र ही परास्त हो गयी। इस युद्ध में लगभग एक लाख राजपूत मारे गये और पृथ्वीराज को बन्दी बना लिया गया जिसे बाद में मृत्युदण्ड दे दिया गया। इस प्रकार तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात् भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई।

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