महिला उत्पीड़न के निराकरण वर्तमान भारत में महिला उत्पीड़न की समस्या किसी भी दूसरी सामाजिक समस्या से कहीं अधिक गम्भीर है। अतः इसके इसके यथोचित निराकरण के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित सुझाव विचारणीय हैं
(1) महिलाओं में शिक्षा के अधिक-से-अधिक प्रसार की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में उन्हें शिक्षा के गुणों से अवगत कराकर शिक्षित किया जाए, ताकि रोजगार के अवसर वे प्राप्त कर सकें। उन्हें सरकारी नौकरियों और प्रतिष्ठानों में उचित प्रतिनिधित्व देने की प्रभावपूर्ण व्यवस्था की जानी चाहिए। इनकी अज्ञानता व अन्धविश्वास को दूर करने का हर सम्भव प्रयास होना चाहिए।
(2) महिला उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं के लिए सबसे अधिक आवश्यकता आश्रय की है। महिलाएँ जो तानाशाह सास-ससुर और शराबी व दुराचारी पतियों के साथ रह रही हैं, स्थाई रूप से अपना घर छोड़ देंगी, यदि उनके पास कोई आश्रय उपलब्ध है स्वयंसेवी संगठनों को, जो महिलाओं को ऐसे आवास मुहैया कराते हैं, उन्हें अपनी परियोजनाओं का प्रचार करना चाहिए।
(3) महिला उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए सस्ती और कम औपचारिक अदालतों की स्थापना होनी चाहिए जो घरेलू हिंसा में सहभागी बनते हैं, उनके बारे में पुलिस द्वारा जल्द कार्यवाही की जाए तथा पुलिस तंत्र पीड़ित महिलाओं के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करे।
(4) ऐसे संगठनों का विकास हो जो महिलाओं को निःशुल्क कानूनी सहायता दें। इससे निर्धन महिलाएं उनके पास आकर सहायता मांग सके। ऐसा देखा गया है कि आर्थिक कठिनाइयों के कारण महिलाएं पुरुषों की मनमानी का विरोध नहीं कर पाती।
(5) महिला उत्पीड़न का बुनियादी आधार नैतिक मूल्यों का हास है जब पुरुष व महिला दोनों ही परिवार, समाज व राष्ट्र के विकास के दो अंग हैं, तो फिर महिलाओं के प्रति हिंसा कहां तक न्यायोचित है, इसे समझने की आवश्यकता है। अतः घरेलू हिंसा से जुड़े लोगों में नैतिक मूल्यों को स्थापित करना होगा। अनैतिक मूल्यों के विरुद्ध आन्दोलन करना होगा।
(6) स्वयंसेवी संगठनों को सशक्त बनाना और उनकी संख्या बढ़ाना आवश्यक है। एक अकेली महिला की बात को कोई महत्व नहीं देता। यदि महिलाओं का एक समूह एकत्र होता है। व महिला के दुःख के विरुद्ध आवाज उठाता है, तो वे अपने विचारों को दृढतापूर्वक व्यक्त कर सकती हैं और प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं।
प्राथमिक समूह की अवधारणा पर टिप्पणी लिखिए।
(7) महिलाओं के सन्दर्भ में माता-पिता के विचारों में परिवर्तन की जरूरत है। एक प्रायः पूरी के विवाह के बाद माता-पिता अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण मानते हैं, भले ही उनकी पुत्री कितनी भी यातना से पीड़ित हो। दूसरी पुरी के साथ उनके ससुराल वाले दुर्व्यवहार करते हैं, तब भी उन्हें अपने पति के घर में रहने के लिए बाध्य क्यों करते हैं? ऐसी परिस्थिति में कुछ समय के लिए माता-पिता को अपनी पुरी अपने पास बुला लेना चाहिए।
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