भारत में समाजशास्त्रीय विचारों के विकास की व्याख्या कीजिए।

भारत में समाजशास्त्र का विकास

भारत में समाजशास्त्रीय विचारों के विकास का उदय एवं विकास भारत में अत्यन्त प्राचीन काल में हो चुका था। आज भी चाणक्य, मनु एवं भृगु आदि एक समाजशास्त्री के रूप में स्वीकार किये जाते हैं। ईसा से 300 वर्ष पूर्ण चाणक्य का अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र की एक अनुपम कृति है। इस ग्रंथ में राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक नीतियों का उल्लेख मिलता है। प्राचीन भारत में उपनिषदों, महाभारत, गीता आदि धार्मिक पुस्तकों में सामाजिक स्वरूपों और व्यवस्थाओं का विवेचन किया गया है जो वास्तविक अर्थ में समाजशास्त्रीय ही हैं। वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, मोक्ष, पुनर्जन्म, कर्म का सिद्धांत, संयुक्त परिवार आदि का उल्लेख सामाजिक ज्ञान से ही संभव था।

( 1 ) प्राचीन भारत में समाजशास्त्र का विकास प्राचीन काल से ही भारत में समाजशास्त्र की नींव पड़ चुकी थी। मनु द्वारा लिखित “मनुस्मृति” और चाणक्य रचित “अर्थशास्त्र” इसके उत्तम उदाहरण हैं। इसी प्रकार वेट, उपनिषद, धर्मसूत्र, रामायण, महाभारत, गीता, पुराण, स्मृतियाँ आदि ग्रन्थों में प्राचीन भारत के लोगों के जीवन से सम्बन्धित प्रायः सभी विषयों में विचार व्यक्त किये गये हैं। यद्यपि उन अभिव्यक्तियों में धर्म का प्रभाव व धार्मिक पृष्ठभूमि सुस्पष्ट रूप में देखने को मिलती है, तथापि आज भी इन्हीं ग्रंथों की सहायता लेकर हम उस ठोस पृष्ठभूमि की रचना करते हैं जिसके आधार पर संयुक्त परिवार प्रथा, वर्ण व आश्रम व्यवस्था, कर्म का सिद्धांत, गाँव- पंचायत, पुरुषार्थ, धर्म आदि गम्भीर विषयों पर वैज्ञानिक विश्लेषण व शोध कार्य किया जाता है।

‘भारत प्रजातियों का दावण पात्र है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए ?

( 2 ) आधुनिक भारत में समाजशास्त्र का विकास भारत में इस विज्ञान की प्रतिस्थापना सर्वप्रथम सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में हुई थी और इसके संस्थापक थे प्रो. बृजेन्द्रनाथ शील। इसके बाद बम्बई विश्वविद्यालय में प्रो. पैट्रिक गिड्डस की देखरेख में समाजशास्त्र का विषय पढ़ाना प्रारम्भ हुआ। तत्पश्चात् मुम्बई, गुजरात, पूना, चेन्नई, बड़ौदा, मैसूर, राजस्थान, जीवाजी, जोधपुर, रोहतक, उदयपुर, अजमेर, राममनोहर लोहिया (अवध), पूर्वांचल, गढ़वाल, कुमाऊँ, गोरखपुर, कानपुर, पटना, नागपुर, भागलपुर, विक्रम, उस्मानिया, कल्याणी आदि लगभग सभी भारतीय विश्वविद्यालयों की बी.ए. और एम.ए. कक्षाओं में समाजशास्त्र एक पृथक् विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। अनेक विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्रीय शोध का कार्य हो रहा है।

सम्पूर्ण भारत में 221 विश्वविद्यालय हैं। उनमें से लगभग 180 विश्वविद्यालयों में तथा 10,555 महाविद्यालयों में से 9,000 महाविद्यालयों में समाजशास्त्र का विषय पढ़ाया जाता है। इन विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त देश के तकनीकी एवं चिकित्सा संस्थानों तथा सामाजिक शोध संस्थानों में भी समाजशास्त्र ने अपना “घर” बना लिया है। उदाहरणार्थ, आई.आई.टी. कानपुर व दिल्ली तथा एच.बी.टी.आई. कानपुर में समाजशास्त्र का अध्ययन होता है।

आई.आई.टी. कानपुर तथा दिल्ली में तो समाजशास्त्र पर शोध कार्य करने की भी सुविधा उपलब्ध है। इन संस्थानों में औद्योगिक समाजशास्त्र तथा नगरीय समाजशास्त्र के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है क्योंकि इन विषयों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध इन संस्थानों में पढ़ाये जाने वाले विषयों से होता है।

केवल तकनीकी संस्थानों में ही नहीं, अपितु देश के अनेक कृषि विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में भी समाजशास्त्र को अपना योग्य स्थान प्राप्त हो चुका है। उदाहरणार्थ, पंत नगर, कानपुर, नैनी (इलाहाबाद) तथा फैजाबाद कृषि विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र का अध्ययन एक स्वतंत्र विषय के रूप में होता है। चूंकि इन विश्वविद्यालयों का आधार ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित । कृषि उद्योग है इस कारण ऐसे विश्वविद्यालयों में ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है।

• जिन भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारत में समाजशास्त्र के संवर्द्धन व विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है उन पुरुषों में प्रो. एम. एन. श्रीनिवास, प्रो. ओयाई, बी. डामले, प्रो. ए.आर. देसाई, प्रो. विक्टर डिसूजा, प्रो. एस. सी. दुबे, प्रो. एम.एस. गोरे, प्रो. टी. एन. मदान, प्रो. रामकृष्ण मुकर्जी, प्रो. पी. एन. मुकर्जी, प्रो. टी. के ओम्मेन, प्रो. बी. के. आर. वी. राव, प्रो. सच्चिदानंद, प्रो. योगेन्द्र सिंह, प्रो. सुरजीत सिन्हा, प्रो. टी. के. एन. यूनियान, प्रो. कैलाश नाथ शर्मा, प्रो. सत्येन्द्र त्रिपाठी एवं महिलाओं में श्रीमती सी. पार्वाथम्भा, सूमा चिटनिस, नीरा देसाई, रोमिला थापर, रत्ना नायडू तथा प्रमिला कपूर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। आशा की जाती है। कि इन विद्वानों के संयुक्त सहयोग व सक्रिय सहयोग से भारत में समाजशास्त्र एक उच्चतम सुप्रतिष्ठित स्थिति को प्राप्त करने में सफल होगा।

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