भारत में भाषायी विविधता का वर्णन कीजिए।

भारत में भाषायी विविधता का वर्णन

भारत में भाषायी विविधता भारत एक महान देश है। अनेकता में एकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। यहाँ विभिन भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते हैं। यहाँ लगभग 179 भाषाएँ एवं 544 बोलियाँ प्रचलन में है। विद्वानों का मत है कि भारत में 1,650 भाषाएँ एवं बोलियाँ पाई जाती हैं। प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र या उपक्षेत्र को अपनी एक भाषा या बोली है। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में भाषा की विविधता को प्रकट करने वाली एक कहावत प्रचलित है- ‘पाँच कोस में बदले पानी, दस कोस में बानी। ‘ प्रत्येक दस कोस के बाद भाषा

में बदलाव आ जाता है। भाषा के साथ संस्कृति एवं धर्म भी जुड़े हुए हैं, विभिन्न धर्मावलम्बी अपनी-अपनी अलग-अलग भाषा मानते हैं, जैसे हिन्दू संस्कृत एवं हिन्दी भाषा को मुसलमान अरबी एवं उर्दू को, सिख गुरुमुखी को और बौद्ध प्राकृत एवं पाली भाषा को इसके अतिरिक्त भारतीय भाषाओं को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है, जो निम्नलिखित है

(1) पहले भाषा परिवार में हिन्दी, उर्दू, बंगला, असमिया, उड़िया, पंजाबी, सिन्धी, मराठी, गुजरातो, राजस्थानी, बिहारी एवं हिमाली आदि भाषाएँ शामिल की गई है। इस भाषा परिवार को इण्डो-आर्यन भाषा परिवार के नाम से सम्बोधित किया गया है।

(2) दूसरे भाषा परिवार में तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम एवं गोंडी भाषाएँ शामिल की गई है, जिसे द्रविड़ भाषा परिवार के नाम से सम्बोधित किया गया है।

(3) इस भाषा परिवार में मुण्डारी, संथाली, खासी, हो, खरिया, बिरहोर, भूमिज कोखा, कोरकू एवं जुआंग आदि भाषाएँ शामिल की गई हैं, जिसे आस्ट्रिक भाषा परिवार के नाम से सम्बोधित किया गया है। इन प्रमुख भाषाओं के अतिरिक्त चीन तिब्बती परिवार की भाषाएँ, यथा- मणिपुरी, नेवाड़ी, एवं नागा भाषा का प्रयोग भी किया जाता है। भारतीय संविधान में 18 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है, वे है- असमिया, बंगला, गुजराती, हिन्दी, कन्ह, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल, तेलगू, उर्दू, कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली। इनमें से प्रत्येक की अपनी एक लिपि है। इनमें हिन्दी का सर्वप्रथम स्थान है।

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भारत में बोली जाने वाली प्रमुखा भाषाओं का वर्णन इस प्रकार है

(1) हिन्दी – हिन्दी संविधान में भारत की मातृभाषा स्वीकार की गई है। वह इण्डो-आर्यन परिवार की प्रमुख भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। हिन्दी भाषा का प्रयोग भारत में लगभग 33 72 करोड़ लोग करते हैं। यह जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 39.85 प्रतिशत भाग है। उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार तथा झारखण्ड प्रान्तों में हिन्दी का प्रचलन प्रमुख रूप से पाया जाता है, इसलिए इसे हिन्दी भाषी क्षेत्र भी कहते हैं। हिन्दी के हमें कई रूप देखने को मिलते हैं जिनमें से दो रूप प्रमुख है। उत्तरी भारत के पश्चिमी भागों में हिन्दी के हिन्दुस्तानी ब्रज भाषा, खड़ी बोली, कन्नौजी, बुन्देली और बॉगरन रूप देखने को मिलते हैं जबकि पूर्वी भागों में अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी बोलियाँ मुख्य है। हिन्दी को ही राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है।

(2) संस्कृत- संस्कृत भाषा को देववाणी भी कहा जाता है। भारत के प्राचीन धर्मग्रन्थों एवं वेदों की रचना इस भाषा में की गई संस्कृत हो कई भाषाओं की जननी है तथा बंगाली, तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, मराठी, हिन्दी एवं अन्य कई भाषाओं पर संस्कृत का गहरा प्रभाव पाया जाता है। यद्यपि इसके बोलने वालों की संख्या नगण्य है फिर भी इससे हमारा मानसिक लगाव है तथा संविधान में इसे प्रमुख भाषा का दर्जा दिया गया है।

(3) उर्दू-उर्दू भाषा अरबी, फारसी एवं हिन्दी तीनों के मिश्रण से बनी है। उर्दू भाषा का प्रचलन मुस्लिम शासकों के दौरान भारत में हुआ और अंग्रेजी शासन काल में यह भाषा पनपती रही। यद्यपि इसका प्रचलन सर्वप्रथम दक्षिण भारत में हुआ किन्तु वर्तमान में इसका प्रयोग उत्तरी भारत में ही पाया जाता है। उर्दू कोई विदेशी भाषा न होकर हिन्दुस्तानी भाषा की ही एक शाखा मानी जाती है।

(4) बिहारी –बिहारी भाषा का प्रचलन बिहार राज्य में पाया जाता है। इसकी उत्पत्ति मागधी भाषा के अपभ्रंशों के कारण हुई इसमें भोजपुरी, मैथिली तथा मगही तीन बोलियाँ प्रमुख है। भोजपुरी उत्तरी भारत की एक प्रमुख भाषा है। मैथिली भाषा का प्रयोग उत्तरी बिहार में किया जाता है तथा दक्षिणी बिहार में मागधी भाषा बोली जाती है। उत्तर प्रदेश में बनारस के आस-पास भी भोजपुरी भाषा का प्रयोग किया जाता है।

(5) पंजाबी- पंजाबी भाषा का प्रयोग पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के उत्तरी भागों में पाया जाता है। इसके बोलने वालों की संख्या 2-3 करोड़ अर्थात् 2.76 प्रतिशत है। इस भाषा को भी पूर्वी एवं पश्चिमी क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। पश्चिमी पंजाबी भाषा पर संस्कृत का प्रभाव है और उसे ‘लण्ड’ अव’सुण्डा दी बोली’ अर्थात् पश्चिम की भाषा कहा जाता था। इसे ‘ हिन्दुको’ भी कहा जाता था। • पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी है।

(6) गुजराती- गुजरात एवं काठियावाड़ में इस भाषा का प्रचलन है। लगभग 4 करोड़ (4. (81 प्रतिशत) लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं। इस भाषा पर हिन्दी और राजस्थानों का प्रभाव देखने को मिलता है। विगत कुछ वर्षों में गुजराती साहित्य का बहुत विकास हुआ है।

(7) राजस्थानी- राजस्थानी भाषा का प्रयोग राजस्थान में पाया जाता है। यद्यपि यह हिन्दी हो एक उप-शाखा है परन्तु पिछले कुछ वर्षों से इसे एक पृथक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने स चल रहा है। राजस्थानी भाषा में मालवी, जयपुर, मारवाड़ी और मेवाती बोलियों का मिश्रण पत्र जाता है। जयपुर के आस- पास जयपुरी बोली का, जोधपुर के आस पास मारवाड़ी बोली का प्रयोग कि जाता है। राजस्थानी की कुछ बोलियों पर ब्रजभाषा एवं पश्चिमी हिन्दी का प्रभाव पाया जाता है।

(8) मलयालम -लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व मलयालम भाषा प्राचीन तमिल भाषा को एक उप-शाखा के रूप में विकसित हुई इस भाषा का प्रचलन क्षेत्र केरल प्रान्त है। मलयालम बोलने का लगभग 3 करोड़ (3.59 प्रतिशत) लोग हैं। इस भाषा पर संस्कृत का पूरा-पूरा प्रभाव है। वर्तमान इस भाषा में साहित्य सृजन का कार्य हो रहा है।

(9) सिन्धी- सिन्धी भाषा का प्रयोग अविभाजित भारत के सिन्ध प्रान्त के निवासी करते । जो अब पाकिस्तान में हैं। भारत विभाजन के समय सिन्ध से भारत आने वाले इस भाषा का प्रयोग कर है। वर्तमान में इसका प्रयोग करने वालों की संख्या 21 लाख अर्थात् 0.25 प्रतिशत है। सिन्धी को भ संविधान में प्रमुख भाषा के रूप में मान्यता दी गई है और आकाशवाणी से भी इसके कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इस भाषा के अन्तर्गत छ बोलियाँ है- सिरकी, विकोली, थरेली, लासी, लाड़ी और कच्छी

(10) उड़िया- उड़िया भाषा का प्रयोग प्रमुखतः उड़ीसा प्रान्त में होता है। इसे बोलने वालों की संख्य 2.8 करोड़ अर्थात् 3.22 प्रतिशत है। यह एक परम्परावादी भाषा है जिसका व्याकरण और उच्चारण अधिक विकसित नहीं है। इस भाषा में बंगला और असमिया शब्दों का मिश्रण होने के साथ-साथ मगधी-भाषा अपभ्रंश शब्द भी पाए जाते हैं। जिस क्षेत्र में यह भाषा बोली जाती है, उसे उत्कल भी कहते हैं।

(11) असमिया –असमिया भाषा का प्रयोग असम प्रान्त में किया जाता है। इसके बालेने वालों की संख्या 1.30 करोड़ अर्थात् 1.55 प्रतिशत है। बंगाल और असम चूँकि पड़ोसी प्रान्त है, अत असमी और बंगाली भाषाएँ परस्पर एक-दूसरे से बहुत मिलती-जुलती है, यहाँ तक कि असमी भाष के कई लेखक बंगाली हो हैं। किन्तु वर्तमान में असम के लोग अपनी भाषा को बंगालो से पृथक भाषा के रूप में स्वीकार करते हैं। इन दोनों भाषाओं के उच्चारण एवं व्याकरण में भी पर्याप्त भेद हैं। ऐसा माना जाता है कि असमिया भाषा के साहित्य का विकास वहाँ के राजाओं ने किया। संविधान में असमिया भाषा को बंगला से पृथक स्थान दिया गया है।

(12) तेलगू- तेलुगू भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा है। इसका प्रचलन उत्तरी तमिलनाडु दक्षिणी हैदराबाद, आन्ध्र एवं मैसूर के कुछ भागों में पाया जाता है। इसके बोलने वालों की संख्या 6 60 करोड़ (7.80 प्रतिशत) है। आन्ध्र प्रदेश में ही इस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग होता है। इस भाषा को’ पूर्व की इटैलियन’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। इस भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुताय है। वर्तमान में तेलुगू भाषा का साहित्य बहुत समृद्ध हुआ है।

(13) तमिल- भाषा प्रचलन प्रमुख रूप से तमिलनाडु एवं दक्षिणी भारत के कुछ प्रान्तों में पाया जाता है। इसके बोलने वालों को संख्या 5.3 करोड़ (6-26 प्रतिशत) है। इस भाषा में हमें प्राचीन द्रविड़ भाषा के शब्द भी देखने को मिलते हैं। यह द्रविड़ संस्कृति की प्रतीक मानी जाती है। वैष्णव, शैव और शाक्त भक्तों ने अपने भक्ति साहित्य की रचना तमिल भाषा में करके इसे समृद्ध बनाने का प्रयास किया है।

(14) मराठी- मराठी भाषा का प्रयोग प्रमुखतः महाराष्ट्र प्रान्त, मध्य प्रदेश एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में होता है। इस भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या 6.2 करोड़ अर्थात 7.38 प्रतिशत है। यह एक समृद्ध भाषा है। इसमें दो बोलियाँ- कॉकड़ी तथा हलबी प्रमुख है। कोकणी बोली महाराष्ट्र एवं गोवा में बोली जाती है, जबकि हलबी का प्रयोग छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में अधिक होता है।

(15) बंगला- बंगला भाषा प्रमुख रूप से बंगाल में बोली जाती है। इस भाषा का प्रयोग करने वाले लोगों को संख्या 6.95 करोड़ अर्थात् 8.22 प्रतिशत है। इस भाषा में संस्कृत एवं मागधी भाषा के अपभ्रंश शब्दों की बहुलता पाई जाती है। भाषा की दृष्टि से यह बहुत हो मधुर एवं सरस भाषा है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनो महान रचना’ गीतांजलि’ बंगला भाषा में ही लिखी है। इस भाषा को विकसित करने एवं समृद्ध बनाने में शरत् चन्द्र राय, बंकिम चन्द्र चटर्जी, राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर आदि का विशेष योगदान रहा है।

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