बाल विकास के लिए शिक्षक का व्यवहार
बालक विकास को माता-पिता के बाद विद्यालय का शिक्षक प्रभावित करता है। बालक घर का आंगन लाँघने के बाद विद्यालय पहुंचता है जहाँ अभिभावकों की भूमिका में उसका शिक्षक होता है। बालक को स्नेह, प्रेम, सहानुभूति की आवश्यकता होती है। उसके मनोभावों को समझने की आवश्यकता होती है, इस कार्य को शिक्षक अच्छी तरह से निभाता है। मांटेसरी कहती थी कि शिक्षक को बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए जिससे बालक को समझने में वह गलती न करे। शिक्षक अभिभावकों की कमी को पूरा करते हैं, इन्हें स्नेह प्रेम के माध्यम से प्रशिक्षण देता है। शिक्षक का कार्य केवल पुस्तकीय ज्ञान देना नहीं है वरन् भालके का शारीरिक, मानसिक संवेगात्मक, सामाजिक सभी क्षेत्रों में विकास करना है। शिक्षक प्रेरणा देने का, रूचियों के विकास का अच्छे चरित्र और नैतिकता का, अच्छी आदतों का तथा व्यक्तित्व के विकास का कार्य करता है। यह बालक विकास को नवीन और अद्भुत संसार से परिचय कराता है तथा उस संसार में रहने के लिए कौशलों का विकास करता है।
कौशल अधिग्रहण से आप क्या समझते है ?महत्व पर प्रकाश डालिए।
शिक्षक बालक के विकास की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। कहा जाता है कि जिसे अच्छा शिक्षक मिल जाता है उसे आत्मसाक्षात्कार करने का अवसर मिल जाता है। श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलकर विवेकानंद को ज्ञान हुआ, स्वामी विरजानंद से मिलकर दयानंद सरस्वती को परम ज्ञान हुआ। उसी प्रकार इतिहास के गर्भ में कितने ही उदाहरण हैं जो प्रमाणित करते हैं कि व्यक्ति के व्यक्तित्व के सृजन के पीछे किसी गुरु (शिक्षक) का हाथ था।