प्लेटो के न्याय सम्बन्धी विचार व् प्लेटो के न्याय सिद्धान्त का वर्णन।

प्लेटो अपनी रचना ‘रिपब्लिक’ में न्याय सम्बन्धी विचारों का उल्लेख करता है। प्लेटो : न्यायप्रिय व्यक्ति की तुलना एक व्यवस्थित नगर से करता है तथा न्याय रहित व्यक्ति की तुलना एक अराजकतावादी से प्लेटो न्याय को एक कड़ी मानता है जो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को परस्पर जोड़ती है। प्लेटो ने न्याय के दो रूप बताये हैं- 1. व्यक्तिक तथा 2. सामाजिक।

अभिसमय की मान्यता के कारण को स्पष्ट कीजिये।

वैयक्तिक न्याय से प्लेटो का तात्पर्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रवृत्तियों के अनुसार ही कार्य करे, परन्तु तीनों प्रवृत्तियों ज्ञान, मान तथा वासना में संतुलन बनाये रखे एवं एक दूसरे | के कार्यों में हस्तक्षेप न करे। उदाहरण के लिए युद्ध के समय शौर्य की आवश्यकता होती है वासना की नहीं। सामाजिक न्याय का अर्थ प्लेटो परस्पर के उचित व्यवहार को समझता है। अपने कर्त्तव्य को करता हुआ व्यक्ति समाज की सुन्दर रचना कर सकता है। प्लेटो व्यक्ति को एक वृहत् राज्य के रूप में देखता है। राज्य की समस्या संस्थाओं में व्यक्ति के ज्ञान, गौरव, रुचि एवं क्षमता की झलक दिखाई देती है। समाज में ही मानव प्रकृति को हम देख सकते हैं। प्लेटो मानव की चेतना को भी राज्य चेतना समझता है। राज्य ही मानव की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। राज्य में न्याय को इसीलिए आवश्यक माना गया है।

प्लेटो का आदर्श राज्य तथा न्याय

प्लेटो के विचार से समाज में चार गुणों का होना आवश्यक है- ज्ञान, साहस, संयम तथा न्याय राज्य के लिए भी इन चार गुणों की आवश्यकता रहती है। यदि शासक वर्ग ज्ञान तथा विवेक से शासन करता है तो राज्य के बुद्धिमान होने के लक्षण हैं। यदि राज्य का सैनिक वर्ग युद्ध में साहस दिखलाता है तो यह वीरता का लक्षण है। यदि राज्य का उत्पादक वर्ग तथा सैनिक वर्ग का संघर्ष नियंत्रण स्वीकार करता है तो उनमें आत्म संयम के लक्षण पाये जाते हैं। इस प्रकार एक आदर्श राज्य में समस्त वर्ग स्नेह और संयम, संयोग का परिचय देते हैं। न्याय भी इसी को कहते हैं कि प्रत्येक मानव अपने-अपने कर्त्तव्य का सच्चाई से स्वधर्मानुसार पालन करता रहे।

प्लेटो ने आदर्श राज्य में शिक्षा को स्थान दिया। उसने कुलीनतंत्रीय शासन की बुद्धिपरता को मानते हुए साम्यवादी योजना की है। श्रम विभाजन साम्यवादी तथा आदर्श शिक्षा में किया जा सकता है। शिक्षा भी नैतिकता बढ़ाने में सहायक हो और नैतिकता ही प्लेटो का न्याय है।

अभिसमयों का संविधान में स्थान तथा महत्व बताइये । अथवा कानूनों और अभिसमयों में क्या अन्तर है?

आलोचना- प्रो. सेवाइन का कहना है कि “प्लेटो का न्याय सम्बन्धी सिद्धान्त स्थिर, आत्मपूरक, भ्रष्ट, अविश्वसनीय तथा अमनोवैज्ञानिक है।”

प्रो. सेवाइन

प्लेटो का नयाय सिद्धान्त न्याय का सिद्धान्त न होकर सद्गुणों का सिद्धान्त था। उसमें नैतिकता तथा आचार शुद्धता पर अधिक बल दिया गया है।

प्लेटो- एक व्यक्ति एक काम की विशेषता उत्पन्न करे यह न्याय का सिद्धान्त मानव की सर्वांगीण उन्नति को प्रतिबंधित करता है।

प्लेटो का न्याय मनुष्यों को केवल कर्त्तव्य का उपदेश देता है और अधिकारों का कहीं वर्णन नहीं करता है। स्वस्थ समाज के लिए अधिकारों का होना आवश्यक है। अधिकार तथा कर्तव्यों को पृथक नहीं किया जा सकता।

प्रो. सेवाइन ने इसीलिए लिखा है-

“प्लेटो के न्याय की परिभाषा किसी भी अर्थ में विधिशास्त्रीय परिभाषा नहीं है।” यह एक सार्वभौमिक न्याय की सूचक धारणा है जो कानूनी न्याय से भिन्न है। यह एक कल्पनामूलक सिद्धान्त है जो यथार्थ से दूर की बात है।

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