प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावाद को परिभाषित
प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावाद की मौलिक मान्यता यह है कि मनुष्य की अधिकांश क्रियाएँ पूरी तरह से प्रत्यक्ष और स्पष्ट नहीं होतीं। व्यक्ति अपने विचारों और क्रियाओं को कुछ विशेष प्रतीकों के द्वारा अभिव्यक्त करता है तथा व्यक्ति की परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही उनकी क्रियाओं के सही अर्थ को समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, हमारे बारे में दूसरे लोग जैसा सोचते और अनुभव करते हैं, उन्हीं के अनुसार हमारी क्रियाओं और सामाजिक सम्बन्धों का रूप निर्धारित होता है। कुले और मीड ने इसी बात को अपने सम्पूर्ण समाजशास्त्रीय विश्लेषण का आधार माना। परेटो ने भी इस बात पर जोर दिया कि सभी युगों और सभी समाजों में मनुष्य द्वारा जो क्रियाएँ की जा रही हैं उनमें से अधिकांश क्रियाओं का आधार तर्क न होकर कुछ मानवीय संवेदनाएँ होती हैं। इस अर्थ में यह क्रियाएँ अतार्किक होती हैं लेकिन फिर भी यही क्रियाएँ मानवीय व्यवहारों को प्रभावित करती हैं। इससे भी यह स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्रीय अध्ययन में वैज्ञानिक आधार के साथ मानविकी आधार को भी महत्व देना आवश्यक हैं।