पोषणीय / सततीय विकास के उद्देश्य क्या है?

सततीय विकास के उद्देश्य – सततीय विकास का उद्देश्य विकास नीति के प्रमुख लक्ष्य के रूप में सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सततीय सुधारों का निर्माण। इसके अनुसार सततीय विकास के कई उद्देश्य होते हैं :

  1. आर्थिक वृद्धि को बढ़ाना।
  2. मूल आवश्यकताओं को पूरा करना।
  3. जीवन – स्तर उठाने के उद्देश्य के अन्तर्गत कई अधिक विशिष्ट लक्ष्य शामिल हैं, जैसे 1. लोगों के शिक्षा एवं स्वास्थ्य के अवसरों को बेहतर करना; 2. सभी व्यक्तियों को सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का अवसर देना, 3. स्वच्छ पर्यावरण को सुनिश्चित करने में मदद देना, तथा 4. अन्तर पीढ़ीगत (Interenerational) समानता को प्रेरित करना। इस प्रकार, वर्तमान पीढ़ी में लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करना भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।

आगे, सततीय विकास का उद्देश्य कालपर्यन्त सभी पर्यावरणीय एवं प्राकृतिक संसाधन परिसंपत्तियों (भौतिक, मानवीय एवं प्राकृतिक) के स्टॉक को कायम रखकर आर्थिक विकास के शुद्ध लाभों को अधिकतम करना है इस सन्दर्भ में, अर्थशास्त्री मजबूत सततीयता एवं कमजोर सततीयता की धारणाओं में भेद करते हैं। मजबूत सततीयता के लिए यह आवश्यक है कि प्राकृतिक पूंजी स्टॉक को कम नहीं होना चाहिए। दूसरी ओर, कमजोर सततीयता के लिए आवश्यक है कि भौतिक, मानवीय एवं प्राकृतिक पूँजी स्टॉक का कुल मूल्य घटना नहीं चाहिए। पियर्स एवं अन्य अर्थशास्त्री कमजोर सततीयता के पक्ष में हैं क्योंकि अन्य पूँजी स्टॉक में वृद्धि प्राकृतिक पूँजी स्टॉक में कमी के स्थान पर स्थानापत्र कर सकती है। इस प्रकार अपने कमजोर रूप में सततीय विकास प्रकट करता है कि “कालपर्यन्त विकास की परिवर्तन दर सामान्यतः कुछ चुनिन्दें समय क्षितिज में धनात्मक होती है।”

निष्कर्ष के तौर पर, सततीय विकास का उद्देश्य भविष्य की पीढ़ियों को बदतर बनाए बिना पर्यावरणीय, मानवीय एवं भौतिक पूँजी भण्डार को सुरक्षित रखने एवं बढ़ाने के लिए आर्थिक विकास को बढ़ाना है।

सतत विकास की परिभाषा:

अपनी 1987 की रिपोर्ट “हमारा साझा भविष्य” में बंटलैंड आयोग के अनुसार,

“सतल विकास विकास है कि वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है, भविष्य की पीढ़ियों की क्षमता से समझौता करने के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करने के बिना.”

बंटलैंड-

सतत विकास सिर्फ पर्यावरण के बारे में नहीं है, उससे कहीं ज्यादा व्यापक है। विभिन्न समुदायों में लोगों की विविध जरूरतों, सामाजिक सामंजस्य को पूरा करने, एक मजबूत और स्वस्थ समाज सुनिश्चित करने के लिए समान अवसर पैदा करने के बारे में यह सब सतत विकास भी हमारे डि जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किए बिना काम करने के बेहतर तरीके खोजने पर केंद्रित है।

सतत विकास में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए भविष्य की आबादी की क्षमता को खतरे में डाले बिना वर्तमान आबादी की जरूरतों को संतुष्ट करना शामिल है। इसके बारे में हर किसी की भलाई में सुधार है, जहां भी वे कर रहे है और इस मील का पत्थर सामूहिक रूप से प्राप्त करने सतत विकास भी गहरा खोदता है। इसका मतलब यह है कि हम कंपनियों का विस्तार करना चाहते हैं, लोगों को सबसे अच्छी नौकरियां हैं, हर कोई पौष्टिक खाद्य पदार्थको खरीदने के लिए जहां भी रहते हैं, गुणवत्ता और हर किसी के लिए सस्ती शिक्षा, हिंसा के बिना भाषण की स्वतंत्रता, और हमारी अर्थव्यवस्थाओं तेजी से बढ़ने के लिए। हम पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए नवोन्मेषी प्रौद्योगिकियों का विकास करना चाहते हैं।

पर्यावरणीय समस्या

देश की पर्यावरणीय समस्याएँ विकास की अवस्था, आर्थिक ढाँचा, प्रयोग में उत्पादन तकनीके और उसकी वातावरणीय नीतियों पर निर्भर करती है। उदाहरणार्थ, कम विकसित देश आर्थिक विकास के अभाव के कारण अपर्याप्त सफाई प्रबन्ध एवं स्वच्छ पीने के पानी की समस्याओं का सामना करते हैं, जबके विकसित देशों में औद्योगीकरण के कारण वायु एवं जल प्रदूषण की समस्याएँ होती हैं।

कम विकसित देशों की निम्न पर्यावरणीय समस्याएँ होती हैं:

1.वायु प्रदूषण (Air Pollution)- शहरीकरण, आर्थिक विकास और औद्योगिक वृद्धि का परिणाम होता है जिससे वातावरणीय प्रदूषण उत्पन्न होता है। बड़े शहरों में बढ़ते यातायात, वायु प्रदूषण का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके अन्य कारण पुरानी मोटरगाड़ियों की तकनीक एवं यातायात प्रबन्धन प्रणाली का अभाव है।

औद्योगिक प्रदूषण की समस्या उन क्षेत्रों में सर्वाधिक है जहाँ तेल शोधक कारखाने, कैमिकल, लौह तथा इस्पात, गैरधातु उत्पाद, लुगदी एवं कागज तथा कपड़ा उद्योग केन्द्रित हैं। ढलाईखाना कैमिकल विनिर्माण और ईंट निर्माण जैसे लघु उद्योग भी पर्याप्त प्रदूषण फैलाते हैं। वायु प्रदूषण का अन्य महत्वपूर्ण स्रोत तापीय विद्युत उत्पादन प्लांट हैं।

जो लोग छोटे शहरों झुग्गियों और कम हवादार घरों में रहते हैं तथा खाना बनाने के लिए घरेलू चूल्हों, लकड़ी और कोयला का प्रयोग करते हैं, वे भी वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं। घर के भीतर धुआँदार हवा मुख्य रूप से औरत एवं बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। मोटरगाड़ियों को शोर, डीजल जेनरेटर सेट, निर्माण क्रियाएँ, लाउडस्पीकरों आदि के नगर में शोर, वातावरणीय प्रदूषण के अन्य स्रोत हैं।

2.जल प्रदूषण (Water Pollution ) – जल प्रदूषण भी आर्थिक वृद्धि का परिणाम है। जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत घरेलू मलजल बहाना, ऑर्गेनिक प्रदूषक भरे औद्योगिक कचड़े, कैमिकलों के अपशिष्ट (Wastes) व्यापक धातु तथा खादान क्रियाएँ हैं। जल प्रदूषण करने वाले उद्योगों में प्रमुख हैं तेल शोधक कारखाने, उर्वरक, कीटनाशक, पदार्थ, कैमिकल, चमड़े का लुग्दी एवं कागज तथा धात का प्लेट बनाने वाले उद्योग मलजल कचड़े एवं औद्योगिक अपशिष्ट झीलों, नहरों, नदियों, समुद्री क्षेत्रों और भूमिगत जल स्रोतों में प्रवाहित होते हैं। चूँकि वे असाधित होते हैं, अतः वे मछली तथा अन्य जल प्राणियों तथा व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री वनस्पति और जीवजन्तुओं जैसे जलीय संसाधनों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं। प्रदूषित एवं असाधित जल के कारण डायरिया, यकृत शोध, गैसीय आन्न्रशोध, ट्रैकोमा जैसी जल से होने वाली बीमारियाँ हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त, लोगों को सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध कराने से नगर निगमों की लागत बढ़ जाती है। जल की कमी होने से असुविधाएँ उत्पन्न होती हैं। तथा आर्थिक क्रियाएँ धीमी हो जाती हैं।

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