पारिवारिक संबंधों में बाधाएं कौन-कौन सी है? स्पष्ट कीजिए।

पारिवारिक संबंधों में बाधाएँ (Hazards in Family Relationship)

परिवार के संबंधों में बाधा पहुंचाने वाले योरोपीय देशों में तथा भारत में अलग-अलग है फिर भी दोनों में कुछ उभयनिष्ठ (Common) कारक हैं जो समान रूप से प्रभावित करते हैं,

(क) विभिन्न प्रकार के मूल्यों में टकराव (Conflict in value) परिवार को संगठित और एकीकृत करने में समान मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मूल्य कई प्रकार के होते हैं, जैसे सामाजिक मूल्य, सांस्कृतिक आध्यात्मिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, राजनैतिक मूल्य, चरित्र और नैतिकता का मूल्य तथा अन्य मानवीय मूल्य मूल्य जीवन पद्धति निर्धारित करते हैं। परिवार के सदस्यों का जब अलग-अलग आदर्श और मूल्य बनता है और उन मूल्यों पर आधारित स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीना चाहते हैं तो टकराहट होती है जिससे पारिवारिक संबंध बिखरते हैं। उदाहरण के लिए पति और पत्नी अलग-अलग विचारधारा को स्वीकार कर राजनैतिक दलों के प्रशंसक बनते हैं तो आपसी संबंध बिगड़ता है। इसी प्रकार पत्नी यदि खुले विचारों की है और पति पुरातन पंथी (Orthodox) है तो संबंध बहुत दिनों तक नहीं चलता है।

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(ख) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factor)- यदि पति-पत्नी या परिवार के संबंधों के बौद्धिक स्तर या अभिवृत्ति, अभियोग्यता, रूचि, चिंतन में बड़ा अंतर होतो टकराव निश्चित होता है। इसी प्रकार अहं (Ego) पारिवारिक संबंधों में अधिक विखराव ला रहा है। एक गरीब परिवार का लड़का जबकि दहेज और संपत्ति की लालच में किसी अमीर लड़की से विवाह करता है तो लड़की का अहं और पुरुषत्व के अहं से टकराता है और विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होती है जिसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। परिवार में अत्यधिक निरसता, कठोर अनुशासन, भावों पर आघात जैसा व्यवहार भी संबंधों को खराब करते हैं।

(ग) आर्थिक कारक (Economical Factors) घन आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन माना जाता है, जिसे परिवार के सदस्यों द्वारा अर्जित और व्यय किया जाता है। यदि परिवार में एक ही व्यक्ति कठिन परिश्रम से धन उत्पादित करता हो और अन्य सदस्य इसमें कोई • सहयोग न करते हो तो उस पर बोझ अधिक बढ़ जाता है जिससे टकराव होता है। परिवार की आवश्यकताएँ जब पूरी नहीं होती तो परिवार का प्रत्येक सदस्य असंतुष्ट रहता है, उसमें निराशा और कुंठा की भावनाएँ उत्पन्न होती है जिससे पारिवारिक संबंधों में खटास आती है।

(घ) भौतिक कारक (Physical Factors)- विज्ञान के विकास ने भौतिकतावादी या प्रयोगवादी दृष्टिकोण विकसित कर दिया है। भौतिकतावादी दृष्टिकोण के कारण संबंधों में भावात्मकता, अपनापन, सहिष्णुता, त्याग, समर्पण, सहयोग, निष्पक्षता जैसे गुणों का अभाव पाया जाता है। व्यक्ति स्वार्थ से एक दूसरे के साथ रहता है जैसे ही स्वार्थ पूर्ति हो जाती है यह अलग हो जाता है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव एवं नारी स्वतंत्रता के आंदोलनों ने अधिकारों का तो बोध करा दिया लेकिन कर्तव्यों का बोध नहीं कराया। आज तो ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं कि पत्नी संतानोत्पत्ति को अपने व्यक्तिगत जीवन में बाधा मानती है। यदि न चाहने पर बच्चे का जन्म हो जाता है तो उससे उसका स्नेह नहीं रहता है, वह उसके पालन-पोषण की जिम्मेदारी से कतराती है।

(ङ) परिवार का तौर-तरीका (Family Pattern)- प्रत्येक परिवार का अपना अलग-अलग तौर-तरीका होता है। विवाह भारतवर्ष में आज भी माता-पिता द्वारा निश्चित किये। जाते हैं- पहले परिवार का रहन-सहन, और तौर-तरीका देखा जाता है लेकिन अब लोग इस पर ध्यान न देकर नौकरी शैक्षिक योग्यता, शारीरिक सुंदरता और उपहार में मिलने वाले धन को महत्व दिया जाने लगा है, जिससे परिवेश में अंतर अधिक होता जा रहा है। दूसरे घरों से आने वाली लड़कियाँ पति के

(च) योग्यता और आयु (Abilities and Age)- भारतवर्ष में आज से पाँच दशक पहले कम आयु में विवाह होते थे, जिससे पति का परिवार उन्हें अपने परिवार के साँचे में ढाल लेता था लेकिन आज यह स्थिति नहीं रह गयी है। अब बहुतायत 25 से 30 वर्षों के लड़के लड़कियों का विवाह हो रहा है जिनमें पहले से ही स्थायी भाव बने रहते हैं उन्हें तोड़ना कठिन होता है। और इन्हीं स्थायी भावों में आत्म-सम्मान और स्वाभिमान होता है जो कभी-कभी टकराहट उत्पन्न करता है। इसी प्रकार दंपत्ति में यदि एक को अधिक योग्यता दूसरे की कम योग्यता हो तो भी टकराव होता है।

(छ) मुखिया की अभिवृत्ति (Attitude of Guardian)- परिवार के मुखिया की अभिवृत्ति भी संबंधों को प्रभावित करती है। मुखिया यदि निरपेक्ष हो, सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करे, त्यागी हो, जनतांत्रिक दृष्टिकोण रखता हो तो परिवार के संबंध अच्छे रहते हैं। परिवार में सभी उसके विचारों को स्वीकृत देते हैं लेकिन यदि पक्षपाती और स्वार्थी हुआ तो ईर्ष्या, द्वेष और घृणा उत्पन्न होती है जो पारिवारिक संबंधों के लिए घातक होती है।

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