निर्देशीय एवं अनिर्देशीय परामर्श से किस प्रकार से भिन्न है ?

निर्देशीय एवं अनिर्देशीय परामर्श में अन्तर

निर्देशीय एवं अनिर्देशीय परामर्श का एक ही उद्देश्य एवं ध्येय होता है परन्तु उद्देश्य प्राप्ति के अलग-अलग साधन है। एक साधन को निर्देशीय कहते हैं तो दसरे को अनिर्देशीय इसलिए अन्तर केवल साधन के रूप में है, उद्देश्य के रूप में नहीं और साधनों के रूप में भी अन्तर केवल सुविधा असुविधा की दृष्टि से है, अन्य किसी दृष्टि से नहीं। इस प्रकार इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर

(1) अनिर्देशीय परामर्श के अनुसार मानव में विकास की अगाध शक्ति निहित होती है इसी कारण व्यक्ति अपने वातावरण में समायोजन स्थापित कर पाता है परन्तु वे निहित शक्तियाँ अज्ञान एवं प्रयोगहीन होती है। निर्देशीय परामर्श इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है। यह कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपना स्वयं का अध्ययन निष्पक्ष रूप में नहीं कर सकता है। अतएव पक्षपातहीन अध्ययन के लिए ही परामर्शदाता की आवश्यकता पड़ती है।

(2) अनिर्देशीय परामर्श में भावात्मक पहलू को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है। जबकि निर्देशीय परामर्श में बौद्धिक पहलू को अधिक महत्व दिया जाता है।

अनिर्वेशीय परामर्शदाता का प्रमुख कार्य परामर्शप्रार्थी की भावात्मक अभिरुचि (Emptionmal attitude) का अध्ययन करना है। प्रार्थी अपने भाव, समस्या इत्यादि का वर्णन साहित्यिक भाषा में कर सकता है पर अनिर्देशीय परामर्शदाता इससे कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखता है।

निर्देशीय परामर्शदाता के लिए समस्या समाधान दृष्टिकोण (Problem solving attitude) अत्यन्त आवश्यक है। वह भावात्मक वातावरण से बौद्धिक वातावरण में जाने की चेष्टा करता है।

(3) समय की दृष्टि से निर्देशीय परामर्शशास्त्री कहते हैं कि यह संभव नहीं कि परामर्श को अल्प समय में प्रशिक्षित किया जा सके। अल्प समय में परामर्शदाता इतना प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर सकता है कि वह दूसरों को निर्देशन दे सके।

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परन्तु इसके विपरीत अनिर्देशन परामर्श विद्वानों के अनुसार यह संभव है। वे कहते हैं कि माना अल्प समय में कोई व्यक्ति अच्छा विश्लेषणकर्ता नहीं बन सकता है परन्तु प्रभावशील परामर्शदाता तो बन ही सकता है।

(4) निर्देशीय परामर्श परामर्शप्रार्थी की निकटस्थ एवं वर्तमान समस्याओं को ही महत्व प्रदान करता है. भूतकालीन समस्याओं से इसका कोई सम्बन्ध नहीं वह इसलिए परामर्शमार्थी के जीवन इतिहास का अध्ययन नहीं करता है।

निर्देशीय परामर्श इसके विपरीत भूतकाल का अध्ययन अनिवार्य समझता है। इसके लिए उसके गत जीवन के इतिहास का अध्ययन साधनों के माध्यम से करना चाहिए।

(5) राय एवं सुझायों के सम्बन्ध में भी दोनों में अन्तर है। निर्देशीय परामर्श के मतानुसार उचित रोग निदान के लिए राय, सुझाव एवं निर्देशीय क्रियाएँ आवश्यक हैं। रोग निदान के लिए व्यक्ति का अनुभव एवं आत्मानुभूति अत्यन्त आवश्यक है।

निर्देशीय परामर्श के अनुसार बौद्धिक चुनाव भविष्य को दृष्टि में रखकर किया जाता है तथा परामर्शदाता का यह कार्य है कि यह प्रार्थी को चुनाव निर्माण में सहायता प्रदान करे, परन्तु चुनाव केवल प्रार्थी द्वारा ही किया जाता है।

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