निर्देशन की प्रकृति (Nature of Guidance)
निर्देशन की प्रकृति एक ऐसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो मानवीय जीवन में एक विशिष्ट सेवा के रूप में अपना योगदान देती है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत एक अधिक योग्य, निपुण अथवा सक्षम व्यक्ति अपने से कम योग्य, अकुशल अथवा असक्षम व्यक्ति को सहायता प्रदान करता है, सुझावों के रूप में, वैचारिक स्तर पर प्रदान की जाने वाली यह सहायता किसी भी क्षेत्र में प्रदान की जा सकती है। निर्देशन की यह विशेषता है कि इस प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति पर कुछ थोपने के स्थान पर उसके स्वाभाविक विकास को ही महत्व प्रदान किया जाता है तथा व्यक्ति को विकास पथ पर अग्रसारित करने में सहायता प्रदान करना ही इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इस प्रकार सुझाव परक सहायता के आधार पर व्यक्ति की सफलता की संभावनाओं में वृद्धि करना तथा व्यक्ति एवं समाज का कल्याण करने हेतु निर्देशन सेवाओं का अत्यधिक महत्व है।
दार्शनिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक तीनों प्रकार से निर्देशन का महत्व होता है। इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित आधारों अथवा सिद्धान्तों का ध्यान रखकर ही इस प्रक्रिया का संचालन किया जाता है। उदाहरणार्थ, दार्शनिक दृष्टि से व्यक्ति के समय अथवा सर्वांगीण तथा समन्वित विकास पर बल दिया जाता है तथा मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार व्यक्ति के स्वाभाविक तथा वैयक्तिक विभिन्नताओं पर आधारित विकास को महत्व प्रदान किया जाता है। निर्देशन की प्रक्रिया के माध्यम से जितने भी प्रयास किए जाते हैं, उन समस्त प्रयासों का उद्देश्य व्यक्ति का समग्र एवंसमन्वित विकास करना ही है। साथ ही निर्देशन के अन्तर्गत प्रदान की जाने वाली सुझावात्मक सहायता, वैयक्तिक विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर ही प्रदान की जाती है। यही कारण है कि इस प्रक्रिया में व्यक्ति के सहज एवं स्वाभाविक विकास को ही प्रमुखता प्रदान की जाती है।
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इस प्रकार सामाजिक आवश्यकताओं, अपेक्षाओं, मान्यताओं, मानदण्डों, मूल्यों आदि के आधार पर व्यक्ति को विकसित होने में सहायता प्रदान करना भी निर्देशन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। निर्देशन के द्वारा समायोजन की क्षमता का विकास में सहायक होना तथा सामाजिक समस्याओं एवं सामाजिक आवश्यकताओं से व्यक्ति को परिचित कराकर, समाज कल्याण की दिशा में प्रेरित करना, यह सिद्ध करता है कि निर्देशन के अन्तर्गत, समाजशास्त्रीय आधारों को भी समान रूप से महत्व प्रदान किया जाता है। अतः यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें ज्ञान की तीनों शाखाओं (दर्शन, मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र) से सम्बन्धित सैद्धान्तिक आधार पर उसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट होती हैं। इन विशेषताओं का उल्लेख निम्नलिखित हैं
- निर्देशन की उपरोक्त पद्धति व्यक्ति एवं समूह दोनों से ही सम्बन्धित होती है।
- निर्देशन का स्वरूप बहु-पक्षीय होता है।
- निर्देशन के सम्बन्ध में विविध प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए, विभिन्न विधियों एवं प्रविधियों का प्रयोग संयुक्त रूप से किया जा सकता है।
- निर्देशन का सम्बन्ध व्यक्ति के समग्र पक्षों के विकास से होता है।
- व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) एवं वस्तुनिष्ठ (Objective) दोनों ही प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग, निर्देशन के अन्तर्गत किया जा सकता है।
- निर्देशन के आधार पर व्यक्ति एवं समाज, दोनों की ही प्रगति एवं विकास हेतु प्रयास किया जाता है।
- यह समस्या केन्द्रित (Problem Centered) एवं प्रार्थी केन्द्रित (Client Centered) प्रक्रिया है।
- व्यक्ति को आत्म-निर्देशन के योग्य बनान ही इस प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य है।
- यह विभिन्न क्षेत्रों में समायोजन की क्षमता का विकास करने में सहायक है।