गहड़वाल शासक प्रतिहार साम्राज्य के पतन के पश्चात् कन्नौज तथा बनारस में जिस वंश का शासन स्थापित हुआ उसे गहड़वाल वंश कहा जाता है। इस वंश की उत्पत्ति के विषय में कोई निश्चित सूचना किसी भी साक्ष्य से नहीं मिलती है। कुछ लेख इसे ‘क्षत्रिय’ कहते हैं। कुछ विद्वान इस वंश का सम्बन्ध राष्ट्रकूटों से जोड़ते हैं किन्तु यह काल्पनिक है क्योंकि स्वयं इस वंश के सारनाव से प्राप्त लेख में राष्ट्रकूट तथा गहड़वाल दोनों का पृथक-पृथक उल्लेख मिलता है। वास्तविकता जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि इस वंश के शासक हिन्दू धर्म और संस्कृति के पोषक थे तथा पूर्वमध्यकाल में इनकी गणना चन्द्रदेव से की जाती है।
चन्द्रदेव प्रतिहार साम्राज्य के विघटन से फैली हुई अव्यवस्था का लाभ उठाकर 1090 ई. के लगभग चन्द्रदेव नामक व्यक्ति ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। उसके पूर्वजों में महीचन्द्र तथा यशोविग्रह के नाम मिलते हैं। इनमें यशोविग्रह इस वंश का प्रमुख पुरुष या जो कलचुरि शासन में कोई अधिकारी था। उसका पुत्र महीचन्द्र, चन्द्रदेव का पिता था। उसकी उपाधि ‘नृप’ की मिलती है जिससे सूचित होता है कि वह एक सामन्त शासक था जो सम्भवतः कलचुरियों के अधीन था।
गहड़वाल वंश की स्वतन्त्रता का जनक चन्द्रदेव ही था। कन्नौज से उसके चार अभिलेख मिलते हैं। जो दानपत्र के रूप में हैं। इनसे पता चलता है कि उसने वाराणसी, अयोध्या तथा दिल्ली आदि स्थानों पर भी अपना अधिकार दृढ़ कर लिया। अभिलेखों में उसे परमभट्टारक महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियों से सम्बोधित किया गया है।
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उसके पुत्र मदनपाल तथा पौर गोविन्दचन्द्र का बसही से लेख मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि “की मृत्यु हो जाने तथा कर्ण के यशमात्र शेष बच जाने के बाद विपत्तिग्रस्त पृथ्वी ने चन्द्रदेव राजा को अपना रक्षक चुना।’ इस विवरण से स्पष्ट है कि चन्द्रदेव ने कर्ण की मृत्यु (1073 ई.) के बाद ही कन्नौज पर अधिकार किया था। पृथ्वी के विपत्ति में पड़ने का कारण सम्भवतः तुर्क आक्रमण था । आक्रमणकारी लूटपाट करते हुए आगरा तक आ पहुँचे तथा उन्हें रोकने वाली कोई प्रबल शक्ति दोआन में नहीं रही। इसी आक्रमण से भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी जिसका लाभ चन्द्रदेव को मिला तथा उसने काशी, कन्नौज, कोशल और इन्द्रप्रस्थ के ऊपर अधिकार जमा लिया इस विजय की प्रक्रिया में उनसे कई शक्तियों से युद्ध करने पड़े होंगे उसके चन्द्रावती लेख (1093 ई.) में बताया गया है कि उसने नरपति, गजपति, गिरिपति एवं त्रिशंकुपति को जीता था। इनमें प्रथम दो कलचुरि राजाओं की उपाधियाँ थीं। इस आधार पर ऐसा निष्कर्ष निकाला जाता है कि चन्द्रदेव ने कलचुरि नरेश वश कर्म को पराजित कर अन्तर्वेदी (गंगा-यमुना का दोआब ) का प्रदेश जीत लिया था काशी, कन्नौज, कोशल तथा इन्द्रप्रस्थ पर अधिकार कर लिया। इन्द्रप्रस्थ दिल्ली तथा उसका समीपवर्ती प्रदेश था। यहाँ सम्भवतः तोमरवंशी राजाओं का शासन था जिन्होंने चन्द्रदेव की अधीनता स्वीकार की होगी।
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