गबन उपन्यास के कथानक का उल्लेख कीजिए।

गबन का कथानक-

‘गबन’ प्रेमचंद जी के श्रेष्ठ सामाजिक उपन्यासों में से एक है। महाशय दीनदयाल की जालपा इकलौती बेटी है। उसका बचपन मैके में लाड़ प्यार में बीता है। उसके पिता गुड़िया-खिलौनों के बजाय कभी प्रयाग जाते तो कोई न कोई आभूषण ले आया। करते थे। माता मानकी को भी गहनों से लगाव है। अतः जालपा को गहनों के प्रति प्रेम आकर्षण विरासत में ही मिला है।

मुंशी दयानाथ कहचरी में नौकर हैं जिनका बड़ा बेटा रमानाथ है, जो दो महीने कॉलेज जाकर पढ़ाई छोड़ बैठा है। उसी के साथ जालपा की शादी तय होती है। शादी के वक्त मुंशी दयानाथ चढ़ावे में भेजने के लिए गहने बनवाते हैं, उसकी कीमत उधार रखते हैं। चढ़ावे में आए गहनों के बीच चंद्रहार न पाकर जालपा बहुत दुखी हो जाती है। सारे गहने जैसे क्षुद्र लगते हैं— चेहरे में एक आँख न होने से जैसे चेहरा विद्रूप लगेगा— जालपा को बाकी के गहने जैसे

शून्य महसूस होते हैं। वह उदास बन जाती है। जब उधार चुकता नहीं कर पाते तो सरफि को गहने लौटाने का वाचा करते हैं। नयी बहू से उसके गहने वापस माँगे भी नहीं जा सकते। अतः -रमानाव गहने चोरी होने का नाटक रचती है। खुद ही जालपा के गहने उठाकर सरर्राफ को दें आता है। लेकिन जालपा को यह बताया जाता है कि गहने चोरी हो गये। जालपा की उदासी बढ़ जाती है।

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अब जालपा की इच्छाएं पूरी करने के लिए रमानाथ को नौकरी ढूँढ़ना आवश्यक हो जाता है। म्युन्सिपल बोर्ड के हेडक्लर्क रमेश बाबू की पहचान से रमानाथ तीस रुपये माहवार की नौकरी पाता है। परंतु पत्नी की नज़रों में बने रहने के लिए वेतन बढ़ा चढ़ाकर बता देता है। अपने पिता दयानाथ की खस्ता हालत होते हुए भी जालपा से यही कहता है कि उनके नाम पर बैंक में हजारों रुपये जमा है। जालपा भी अपने ससुराल तथा पति की आर्थिक स्थिति संपन्न है, इस भ्रम में रहती है। गहने ना होने की वजह से जालपा कहीं बाहर आना जाना भी छोड़ देती है। रमानाथ उसे नये गहने बनवाने के लिए मजबूर हो जाता है। लेकिन तीस रुपये माहवार की नौकरी में वह करे भी तो क्या क्या ? अतः गहने फिर से उधार ही लाने का सिलसिला शुरू होता है।

इसी बीच जालपा और रमानाथ की पहचान हाईकोर्ट के वकील पं. इन्द्रभूषण और उनकी पत्नी रतन से होती है। उनके अमीरी तौर तरीके रमानाथ और जालपा को और महँगी खरीदारियाँ करने के लिए उधत करते हैं। जालपा भी अब नये आभूषण पहनकर मुहल्ले की स्त्रियों के साथ आये दिन सैर सपाटे के लिए निकलती है। रमानाथ भी उसे खर्चे के लिए पैसे देने से नहीं कतराता। इन सब खर्ची का परिणाम यहीं होता है कि रमानाथ के सिर पर उधार और कर्ज का बोझ बढ़ जाता है, जिससे गला छुड़ाने के लिए उसे नौकरी में गबन करना पड़ता है।

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पुलिस के डर से वह घर छोड़ कर कलकत्ता भाग जाता है। रेल के सफर में उसका परिचय देवीदीन से होता हैं, जो उसे टिकट के पैसे बड़े विश्वास से देता है। देवीदीन जो पहले डाकिया था कलकत्ते में शाक भाजी की दुकान है। बाद में रमानाथ उसी के पास ठहरता है। देवीदीन और उसकी पत्नी जग्गो उसे अपने बेटे की तरह पालते हैं। रमानाथ उनके घर कई महीने रहता है। पर एक दिन पुलिस के हाथों में आ जाता है। उस वक्त वह बहुत घबरा जाता है, उसे लगता है कि उसके किये हुए गबन के कारण पुलिस उसकी तलाश में थी और अब उसी गुनाह के लिए वह अब पकड़ा गया है। असलियत यह होती है कि रमानाथ के नाम पर किसी गवन का केस दर्ज ही नहीं होता। रमानाथ के घर से निकलते ही उसके पीछे जालपा गहने बेचकर पैसे ऑफिस में जमा कर देती है किन्तु लज्जावश रमानाथ घर से कोई संपर्क नहीं रखता और अपने बेगुनाही से अनजान ही रहता है। पुलिस उसके इस अज्ञान का फायदा उठाकर उसे एक • डकैती के केस में झूठी गवाही देने के लिए सरकारी गवाह बना देती है। केस खत्म होने तक उसे एक बंगले में पुलिस की हिरासत में ही रखते हैं।

जालपा रमानाथ को खोजती हुई कलकत्ते आती है। अपनी सहेली रतन से पता चलने पर जालपा रमानाथ को ढूंढ़ निकालती है। इसके लिए वह रमानाथ के शतरंज खेलने के शौक का बड़ी खूबी से उपयोग करती है। जब उसे रमानाथ के सरकारी गवाह बनने की खबर मिलती है, वह उसकी खूब भर्त्सना करती है तथा उसके नाम पर कोई गवन नहीं है इसकी जानकारी भी देती है। पुलिस की हिरासत में रहे रामनाथ से संपर्क करना आसान नहीं रहता। इस काम में भी देवीहीन उसकी मदद करता है। जालपा देवीदीन के ही घर में रहती है। देवीदीन जग्गो के साथ उनकी बेटी बनकर रहती है। रमानाथ न्यायालय में पुलिस के खिलाफ जाकर सच्ची गवाही देने का धैर्य नहीं जुटा पाता अतः उसकी झूठी गवाही पर बौदह बेगुनाह व्यक्तियों को सजा मिलती है. जिनमें एक को तो फाँसी की सजा सुनायी जाती है। रमानाथ की इस कायरता पर जालपा बहुत क्रोधित होती है और उससे अपने संबंध तोड़ देती है। फाँसी की सजा हुए दिनेश के घर की जिम्मेदारी वह उठाने लगती है। बहुत कष्ट उठाती है। पुलिस के लिए काम करने वाली जोहरा नाम की वेश्या से जालपा की पूरी जानकारी रमानाथ को मिलती है, जिससे उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है। वह न्यायाधीश से मिलकर अपनी झूठी गवाही का बयान देता है। पुलिस कर्मियों के गलत हथकंडे भी स्पष्ट हो जाते हैं। मुकदमा फिर से चलता है और न्याय सच्चाई को मिलता है। सभी निरपराधियों को छोड़ा जाता है किन्तु झूठी गवाही देने का केस रमानाथ पर होता है। न्यायालय में जालपा की गवाही का विशेष असर होता है और रमानाथ भी बरी हो जाता है।

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जोहरा जो विशेष सहायता रमानाथ और जालपा को करती है, अंत में अपना कुमार्गी छोड़कर उनके साथ हो लेती है। देवीदीन और रमानाथ प्रयाग के समीप जमीन लेकर खेतीबाड़ी करते हैं, गाय, भैंसे पालते हैं। उनके साथ रमानाथ के माता-पिता भी रहते हैं। जालपा की सहेली रतन और जोहरा भी है। रतन की दीर्घ बीमारी से मृत्यु हो जाती है। रतन की बीमारी में जोहरा उसकी बहुत सेवा करती है। जोहरा गंगानदी में एक दुर्घटना में डूबकर मर जाती है। उसकी स्मृति के सहारे जालपा और रमानाथ अपना आगे का जीवन व्यतीत करते हैं।

गबन उपन्यास पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध दो खंडों में विभाजित है। पूर्वार्द्ध में रमानाथ के घर की पारिवारिक समस्या को चित्रित करके रमानाथ द्वारा दफ्तर में गबन करने तक की कथा का समावेश है। जालपा का आभूषण प्रेम उसके साथ रमानाथ जालपा की प्रदर्शन भावना मिथ्या गौरव की प्रवृत्ति, कर्जखोरी, समाज मान्यता के ढकोसले आदि तत्कालीन सामाजिक समस्याओं का वर्णन इसमें आता है। परंतु उत्तरार्द्ध की शुरुआत रमानाथ के इलाहाबाद से कलकत्ता पहुँचने से होती है। कथा में एक दिलचस्प मोड़ आता है। प्रेमचंद जी रमानाथ की कहानी लिखते-लिखते उसका रुख राजनीतिक बन जाता है। क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही देने के लिए उसे मजबूर किया जाता है। यह सब घटना- पूर्वार्द्ध से उत्तरार्द्ध का जोड़ इतना स्वाभाविक कुशलतापूर्वक बना दिया गया है कि जोड़ का पता ही नहीं चलता।

दरअसल बात यह है कि प्रेमचंद जी एक सहृदय कलम सिपाही रहे। समाज में स्थित चेतना का एहसास प्रेमचंद जी को इतना जबरदस्त था कि उनकी साहित्यिक कृतियाँ उस चेतना से संबंधित घटना दसल-अंदाज न कर सकीं। 20 मार्च 1229 के आस-पास ब्रिटिश द्वारा कइयों की जो धर-पकड़ हुई उन पर झूठे मुकदमे चलाए गए, क्रांतिकारियों की सरगर्मियाँ बढ़ी इन सभी बातों ने प्रेमचंद जी को प्रभावित किया।

‘गबन’ उपन्यास की कथावस्तु में दिखाई देने वाला सुंदर जोड़ इसी कारण ‘बेजोड़ बनकर संभवनीय तथा विश्वासा है बना है।

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