अन्त: समूहऔर वाह्य समूह का वर्गीकरण
(1) अन्तः समूह-
हम उन समूहों को अन्तःसमूह कहते हैं जिनके सदस्य आपस में अपने को ‘हम’ शब्द द्वारा सम्बोधित करते हैं। समूह के कार्यों को हमारे कार्य, समूह के दृष्टिकोण तथा उद्देश्य को हमारे दृष्टिकोण तथा हमारा उद्देश्य द्वारा शब्दों को स्पष्ट करते हैं। अन्तः समूह के सभी सदस्य यह विश्वास करते हैं कि समूह के कल्याण में ही उनका कल्याण है। अंतःसमूह का कोई निश्चित आकार नहीं बतलाया जा सकता। अंतः समूह की भावना के कारण हम अपनी संस्कृति को सर्वोच्च मानते हैं, अपनी प्रथाओं, परम्पराओं, भाषा धर्म व लोकाचारों को सबसे सुन्दर समझते हैं। हम जिस समूह से बहुत समीपता और अपनापन महसूस करते हैं, वही हमारे लिए अन्तः समूह होता है।
(2) वाह्य समूह-
वाह्य समूह वह है जिसके प्रति हमारी भावनाएँ और मनोवृत्तियाँ भेदभाव से परिपूर्ण होती है। ऐसे समूहों के सदस्यों को हम कम आदरपूर्ण और भद्दे शब्दों से भी कभी-कभी सम्बोधित करते हैं। जब हम किसी विशेष कारण के बिना ही कुछ व्यक्तियों से सामाजिक दूरी का अनुभव करते हैं तब ऐसे व्यक्तियों के ही समूह को हम वाह्य समूह कहते हैं।
स्वतन्त्र भारत में जनजातीय कल्याण योजना का वर्णन कीजिए।
समनर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Falkways’ में मानवीय सम्बन्धों की समीपता एवं दूरी को आधार मानते हुए सभी समूहों को दो भागों में विभाजित किया है-अन्तःसमूह और वाह्य समूह।
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