हिन्दू स्त्रियों की निम्न स्थिति के कारण
वैदिक काल में उन्हें जो सम्मान, जो आदर, जो श्रद्धा प्राप्त थी. यह आगे चलकर समाप्त हो गयी। इसके अनेक कारण थे जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित है।
(1) कुलीन विवाह – कुलीन विवाह का तात्पर्य यह है कि लड़के अपने नीचे के कुलों में विवाह कर सकते हैं और लड़की का विवाह बराबर या उच्च कुल में करना होता है। उच्च कुल में अपनी लड़की ब्याहने के चक्कर में माता-पिता को अनेक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसमें काफी प्रतिस्पर्द्धा चलती है जिससे बहुत से परिवार एकदम से उजड़ जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लोग लड़कियों के जन्म को ही अपशकुन मानने लगते हैं। इसके अतिरिक्त, उच्च कुल में विवाह होने से लड़की जीवनपर्यन्त अपने को हीन महसूस करती रहती है। ससुराल में उसे उसकी निम्न कुल और हीन अवस्था का एहसास बराबर कराया जाता रहता है।
(2) पितृसत्तात्मक परिवार – हिन्दू स्त्रियों की हीन अवस्था का एक कारण परिवारों का पितृसत्तात्मक स्वरूप का होना रहा है। आर्य संस्कृति तो एकदम ही पितृसत्तात्मक रही है जिसके कारण स्त्रियों पर पुरुषों का स्वामित्व होना एक साधारण बात थी। पितृसत्तात्मक स्वरूप का तात्पर्य यह है कि पुत्र की वंशावलि पिता के नाम पर चलती है और विवाह के पश्चात् श्री अपने पति के घर जाकर रहती है और उसी के नाम तथा वंश से आगे जानी जाती है। इसके अतिरिक्त परिवार के अन्य मामलों अथवा सम्पति सम्बन्धी मामलों की पूरी जिम्मेदारी पुरुषों की होती है। यही परिवार से सम्बन्धित सभी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और सामुदायिक कार्यों को सम्पादित करता है। अतः इनका दमित और सहनशील प्रकृति का हो जाना स्वाभाविक है जो कि उनकी हीनावस्था का ही परिचायक है।
(3) बाल-विवाह – भारतीय स्त्रियों की निम्न अवस्था होने का एक कारण बाल-विवाह भी है। भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही बाल-विवाह का प्रावधान है। बाल विवाह का सबसे बड़ा दुष्परिणाम वह होता है कि लड़कियों के व्यक्तित्व वा पूर्ण विकास नहीं हो पाता। दूसरे शीघ्र विवाह होने से वे जल्दी ही माँ बन जाती हैं और उनके ऊपर पारिवारिक दायित्व बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप वे न तो शिक्षा ग्रहण कर पाती है और न अपने व्यक्तित्व का विकास ही कर पाती हैं। यही नहीं बाल विवाह से विधवाओं की भी संख्या वृद्धि हुई है जो कि भारतीय समाज में स्वयं ही बहुत हीन जीवन व्यतीत करने के लिए प्रसिद्ध रही हैं। इन सब कारणों से वे कुछ बोल नहीं पाती। चुपचाप पुरुषों का जुल्म सहते हुए अपना जीवन समाप्त कर देती हैं।
(4) आर्थिक पराधीनता – मानवशास्त्रियों का मत है कि जिस समाज में स्त्रियों के हाथ में आर्थिक अधिकार नहीं होते उस समाज में उनकी स्थिति निम्न होती है। इस कथन की सत्यता में भारतीय समाज को प्रस्तुत किया जा सकता है। इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि प्राचीन काल से ही भारत में स्त्रियाँ आर्थिक मामलों में पुरुषों के अधीन रही हैं। उन्हें खिलाने-पिलाने से लेकर उनकी हर आवश्यकताओं की पूर्ति की जिम्मेदारी पुरुष के ऊपर थी। इसलिए पुरुषों को “भर्ती” कहा जाता रहा है। इसके अतिरिक्त, उस समय नौकरी अथवा स्वतन्त्र रूप से अन्य कोई जीविकोपार्जन करने का सियों के लिए कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। इन सब कारणों से पुरुषों का उन पर पूर्ण अधिकार और आधिपत्य रहता था। स्त्रियाँ भी अपने को पति का सेवक मात्र समझती थी और उनकी पूजा करती थीं।
(5) ब्राह्मणवाद वैसे तो ब्राह्मणवाद भारत में अनेक बुराइयों का कारण रहा है लेकिन स्त्रियों की बुरी स्थिति के लिए प्रमुख रूप से यह उत्तरदायी रहा है। उपनिषद काल के बाद ब्राह्मणों के एकदम अधीन कर दिया गया है। पुरुष ही उनके लिए देवता थे, स्वर्ग थे, मोक्ष के द्वार थे, गुरु थे। शंख में निर्देश दिया कि सी व्रत, उपवास या बहुविध धर्म-कर्मों से नहीं अपितु पति के पूजन से स्वर्ग प्राप्त करती है। शास्त्रकारों ने भी लिखा है कि पति सेवा के द्वारा ही स्त्रियों को मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसका परिणाम यह हुआ कि स्त्रियों की प्रगति का मार्ग एकदम सीमित और संकुचित हो गया। उनकी स्थिति कूपमंडूकों की तरह हो गयी ।
(6) अन्तर्विवाह – हिन्दू धर्मशास्त्र में अपनी ही जाति में विवाह करने का विधान है जिसके कारण स्त्रियों की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है। यह अपनी मनपसन्द की शादी नहीं कर सकतीं। विवाह की उसकी सम्मति लेने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। इन स्थितियों के कारण सियों की दशा और भी बिगड़ गयी।
(7) संयुक्त परिवार – श्री के. एम. पणिक्कर ने स्त्रियों की दशा गिराने में संयुक्त परिवार को बहुत ज्यादा उत्तरदायी ठहराया है। संयुक्त परिवार की सुदृढ़ता और उसकी निरन्तरता बनाये रखने के लिए स्त्रियों को दबाकर घोर अनुशासन में रखना आवश्यक था। लोगों को डर था कि यदि उन्हें दबाकर न रखा गया तो हो सकता है बहुत-सी स्त्रियाँ अविवाहित जीवन ही बिताना चाहें और यदि वे ऐसा करती हैं तो हिन्दू परिवार में सम्पति पाने का उनका अधिकार हो जायेगा जबकि इस तरह हिन्दू संयुक्त परिवार में उन्हें सम्पत्ति पाने का कोई हक नहीं था। इसी भयवश स्त्रियों की कम उम्र में शादी भी कर दी जाती थी ताकि वे अविभाजित परिवार की सदस्य न रह जायें। परिवार की अटूटता बनाये रखने के लिए यह जरूरी समझा गया कि विवाह के एक आवश्यक तत्व के रूप में स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से परिवार या पुरुषों पर पूरी तरह आश्रित हो। इसीलिए परिवार की सुदृढ़ता या पति की सम्प्रभुता बनाये रखने के लिए ही त्रियों को शिक्षा भी नहीं दी जाती थी ताकि वे कूपमंडूक ही बनी रहे। उनमें बौद्धिक प्रकाश न फैलने पाये। इस तरह हम देखते हैं कि संयुक्त परिवार का संगठन और ढांचा ही ऐसा बनाया गया था कि स्रियों की दशा स्वयमेव शोचनीय बनी रहे।
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(8) अशिक्षा भारतीय समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों का कारण अशिक्षा रहा है। फिर, स्त्रियों के मामले में तो यह बहुत ही घोर कारण रहा है। भारतीय स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने की कभी छूट ही नहीं थी जिसकी वजह से न तो उनका मानसिक विकास हो पाया है और न जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण। उन्हें तो जन्म से सिर्फ पति को भगवान मानने की शिक्षा दी जाती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि स्त्रियों में अपने अधिकारों के प्रति कोई जागरूकता नहीं आ पायी ये हमेशा रूढ़ियों, अन्धविश्वासों के बन्धन में जकड़ कर रखी गयी। इनके विरुद्ध आवाज उठाने की उन्हें कोई छूट नहीं दी गयी।
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