हिन्दी उपन्यास के स्वरूप एवं महत्व की विवेचना।

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हिन्दी उपन्यास आधुनिक काल की देन है, इसमें वे सारी विधाएँ मौजूद हैं जो कि एक उत्कृष्ट उपन्यास की कसौटी माना जाता है।

उपन्यास का स्वरूप या प्रकृति-

उपन्यास जीवन का एक मौलिक चित्रण है। उपन्यासकार एक कवि की भाँति अपनी कृति को कल्पना और सत्य के माध्यम से कथा की आगे बढ़ाता है। अर्थात यह सम्भावनाओं का नया द्वार खोलता है। इस प्रकार वह कथानक में कल्पना और सौन्दर्य का समन्वय करता है।

उपन्यास से आप क्या समझते हैं? इसका मूल्यांकन औपन्यासिक तत्वों के आधार पर कीजिए।

वैज्ञानिक सत्य को उपन्यास में अभिव्यक्ति नहीं मिलती। अतः कोई भी उपन्यास सच्ची घटनाओं के आधार पर नहीं लिख जा सकता। उपन्यास में कल्पना को अधिक प्राश्रय मिलता है। उपन्यासकार जीवन के अनेक क्रिया-कलापों एवं व्यापारों का वर्णन करता हुआ उद्देश्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। किन्तु अपनी भावुकता से वह कथानक में सरसता का संचार करता चलता है और उपन्यास कटु एवं नीरस होने से बच जाता है। उपन्यासकार कथानक को इस प्रकार अग्रसर करता है कि पाठक की जिज्ञासा अनुभव करता है और अन्त तक रुचिपूर्वक पढ़ता जाता है।

किसी हद तक हम उपन्यास को गद्य में लिखा हुआ महाकाव्य कह सकते हैं। जिन दृश्यों एवं व्यापारों का अंकन कवि महाकाव्य में करता है, उपन्यासकार भी ऐसे ही वर्णन से अपनी कथा को वृहत् रूप देता है। दृश्यों एवं व्यापारों के सरस वर्णन से उपन्यास की रोचकता में वृद्धि होती है।

रस-

साहित्य की अन्य विधाओं की भाँति उपन्यास भी काव्य का एक अंग है। ‘वाक्यं रसात्मक काव्यम्’ के अनुसार उपन्यास में भी अनेक रसों का समावेश होता है। उपन्यासकार रसोद्रेक करता हुआ पाठक के हृदय में क्रोध, शान्ति, उत्साह, प्रेम, आदि विविध श्रेष्ठ भावों का संचार करता है। इस प्रकार रसोद्रेक से ही पाठक उपन्यास की कथा में आनन्द विभोर हो जाते हैं। पाठक उपन्यास के पात्रों के सुख में सुख और दुःख में दुःख, हर्ष, विषाद, प्रेम और क्षमा, आदि उत्कृष्ट भावों का अनुभव करता जाये।

मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के प्रधान कवि हैं इसकी पुष्टि उनके काव्य साधना एवं काव्य प्रवृत्तियों के आधार पर कीजिए?

उपन्यास का महत्व – मानव जीवन में उपन्यास का कम महत्व नहीं है। मानव-जीवन कर्म-क्षेत्र है। यहाँ प्रत्येक मनुष्य को कुछ न कुछ करना पड़ता है। निरन्तर कर्म करने से जीवन में नीरसता एवं रूखापन आ जाता है। अतः जीवन को सरस बनाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है। अनेक कथा-कहानियों से मनुष्य अपना मनोरंजन करता है। इस प्रकार जीवन को सरस बनाने में उपन्यास योगदान करता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उपन्यास मानव जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का एक आकर्षण दीपाधार है।

उपन्यास से मनोरंजन के साथ-साथ मस्तिष्क के लिए भी विचार प्राप्त होते हैं। आधुनिक उपन्यासों में मानव जीवन की लगभग समस्याओं को अभिव्यक्ति मिल रही है। जीवन की बाह्य एवं आन्तरिक आवश्यकताओं का समग्र रूप उपन्यासों में ही चित्रित हुआ मिलता है। उपन्यास साहित्य का सर्वश्रेष्ठ अंग है। मानव जीवन का जितना उत्कृष्ट चित्रण उपन्यास साहित्य में मिलता है, उतना साहित्य की अन्य विधाओं में नहीं है। यह जीवन के अधिक सन्निकट है। संसार के महान कार्य उपन्यासकारों की प्रेरणा से ही हुए हैं। रूसो, गोर्की और वाल्टेयर की रचनाओं की प्रेरणा फ्रांस और रूस की क्रांतियों में स्पष्ट होती है। आधुनिक समाज के निर्माण तथा उसमें सुधार करने में भी उपन्यास- साहित्य महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। आज मानव जीवन पूर्व की अपेक्षा अधिक संघर्षमय बन चुका है। चारों ओर अशान्ति, अनियमितता, विक्षुब्धता एवं अस्त-व्यस्तता का साम्राज्य है। ऐसे संकटकाल में उपन्यास डूबते को तिनके का सहारा बन रहा है।

आधुनिक हिंदी काव्य (राधा-मैथिलीशरण गुप्त) बी.ए. द्वतीय वर्ष सन्दर्भ सहित व्याख्या

आधुनिक युग का सबसे सशक्त साहित्य उपन्यास ही है। अतः साहित्य का सर्वप्रिय अंग बन गया है। कला का सौन्दर्य उसमें दर्शनीय है। जिन विषयों के बारे में हम वास्तविक जीवन में ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते, उन विषयों का ज्ञान उपन्यास द्वारा हमें सरलतापूर्वक हो जाता है। उपन्यास के महत्व को स्पष्ट करते हुए एक आलोचक ने लिखा है-

“श्रेष्ठ उपन्यास जीवन के अनुभव का सार होता है। उपन्यास मानव के परिधि बढ़ाता है। वह अपूर्ण को पूर्णता देने का प्रयास करता है। यह जीवन के (शून्य) को भरता है। वह अतीत के गड्ढों को भी भरता है। भविष्य का उसमें संकेत होता है और वर्तमान तो उसके पृष्ठों पर सधा ही रहता है।”

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