हर्ष का शासन प्रबन्ध।

0
14

हर्ष का शासन प्रबन्ध- हर्ष के शासन का स्वरूप निम्न था

राजा – शासन में राजा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। मन्त्रीगण शासन में सहायता के लिए अनेक मन्त्रीगण होते थे। हर्ष का प्रधान सचिव भाण्डी था जबकि सिंहनाद उसका सेनापति था।

सेना- शासन तन्त्र में सेना का सर्वाधिक महत्व था। साम्राज्य की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली सेना रखी जाती थी। हर्ष के पास एक विशाल सेना थी जिसमें हाथी, घोड़े, और ऊंट पर्याप्त संख्या में थे।

प्रान्तीय प्रशासन – हर्ष का साम्राज्य अनेक प्रान्तों में विभक्त था। प्रान्तों को मुक्ति कहा जाता है। प्रत्येक भुक्ति विषयों (जिलों में तथा विषय पार्थकों (तहसीलों) में विभक्त होते थे। ग्राम साम्राज्य की सबसे छोटी इकाई होते थे। प्रान्तीय शासक उपरिक ‘महाराज’ कहलाता था विषय के शासक को विषयपति कहा जाता था।

ग्राम शासक ग्राम का प्रधान ‘ग्रमिक’ कहलाता था ग्राम की देखभाल के लिए ‘महतर’ नामक अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी।

गुप्तचर विभाग- हर्ष के काल में गुप्तचर विभाग का बहुत महत्व था। इस विभाग के गुप्तचर साम्राज्य भर में भ्रमण कर इसकी जानकारी प्रान्तीय शासक अथवा सम्राट को देते थे।

दण्ड विधान- हर्ष के शासनकाल में दण्ड का विधान अत्यन्त कठोर था। साधारण अपराध के लिए जुर्माना किया जाता था जबकि गम्भीर अपराध के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था थी।

हर्षवर्धन के इतिहास निर्माण में चीनी यात्रियों के विवरण दीजिए।

कर व्यवस्था- भूमिकर आय का सर्वप्रमुख साधन था। चुंगी और बिक्री कर भी लिए जाने की व्यवस्था थी। नदियों और घाटों पर भी कर लिया जाता था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here