हर्षवर्धन की महानता के कारण – कान्यकुब्ज सम्राट हर्षवर्धन केवल एक विजेता ही नहीं था बल्कि वह एक कुशल शासक भी था। यद्यपि उसके शासनकाल का अधिकांश समय युद्ध में ही व्यतीत हुआ तथापि उसने साम्राज्य की शासन व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। उसमें एक कुशल शासक के सभी गुण विद्यमान थे। हर्ष ने साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ सांस्कृतिक व आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी विशेष ध्यान दिया। हर्ष केवल कुशल शासक ही नहीं बल्कि महान लेखक, विद्यानुरागी तथा विद्वानों का आश्रयदाता भी था। हर्ष के चरित्र में समुद्रगुप्त और अशोक दोनों के ही गुणों का समन्वय था। एक ओर जहाँ समुद्रगुप्त की भाँति उसने चारों दिशाओं में विजय प्राप्त की वहीं अशोक की भाँति युद्ध, त्याग और शक्ति स्थापित करने की नीति का भी अनुशरण किया। अतः उसका मूल्यांकन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
महान विजेता- हर्ष अपने समय का एक प्रतापी, महत्वाकांक्षी और महान विजेता था। उसका साम्राज्य एक विशाल क्षेत्र पर फैला हुआ था। उसने अपनी दिग्विजय से थानेश्वर को एक महान साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया था।
कर्त्तव्यपरायण सम्राट- हर्ष एक कर्त्तव्यपरायण सम्राट था। पिता प्रभाकरवर्धन ने मरते समय यह कहा था कि, “यह पृथ्वी तुम्हारी है और तुम उसके उत्तराधिकारी बनो।’ परन्तु कर्तव्यपरायण हर्ष ने अपने बड़े भई राज्यवर्धन की अनुपस्थिति में ऐसा न किया, प्रत्युत् अपने प्राता की प्रतीक्षा करता रहा। इतना ही नहीं जब राज्यवर्धन की शशांक के शिविर में हत्या हो जाती है, तब सर्वप्रथम हर्ष ने अपने भ्रातृहंता को मारकर बदला लेना ही कर्तव्य समझा। इसके बाद भी उसने राज्य बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के कहने पर ही ग्रहण किया। इस प्रकार हर्ष एक आदर्श पुत्र, भाई और सम्राट् था, जिसका धर्म और जीवन दूसरों के सुखों के लिए ही था। अशोक की प्रातृ भक्ति संदिग्ध है, परन्तु हर्ष के प्रातृ स्नेह का साक्षी बाणकृत उसका इतिहास ही है।
महान कूटनीतिज्ञ- हर्ष केवल महान विजेता ही नहीं था, वरन् वह एक महान कूटनीतिज्ञ भी था। उसने कामरूप आदि राज्यों के नरेशों से सन्धि करके शशांक तथा पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध अपनी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि कर ली। भास्कर वर्मा तथा ध्रुवसेन से हर्ष की मित्रता उसकी कूटनीतिज्ञता का ही परिचायक है। इससे उसे अपने साम्राज्य विस्तार में बहुत सहायता मिली।
महान शासक – हर्ष केवल एक वीर और कूटनीतिज्ञ सम्राट ही नहीं था वरन् वह एक महान शासन प्रबन्धक भी था। उसने एक सुयोग्य प्रबन्धक का परिचय देते हुए अपने राज्य की स्थिति को बनाया। हर्ष का शासनकाल गुप्तकाल की शासन पद्धति पर आधारित था।
महान दानी – स्वेनसांग का कथन है कि प्रत्येक पाँचवें वर्ष वह अत्यधिक दान देता था। प्रयाग में उसका महान दान यज्ञ एक आश्चर्यजनक घटना है। उसके राज्य में अनेक सड़कों और विश्रामगृहों का निर्माण कराया गया। असहाय और निर्धन जनता को ठहरने तथा भोजन आदि की उचित व्यवस्था क गयी। उनकी चिकित्सा की भी निःशुल्क व्यवस्था थी। हर्ष ने छः अश्वमेघ यज्ञ किये थे। उसने पर्याप्त धनराधि दान में दी थी।
महान धर्म प्रचारक- हर्ष एक महान धर्म प्रचारक था। पतन की ओर अग्रसारित होते हुए बौद्ध धर्म की उसने पुनः प्रतिष्ठा दिलाई कन्नौज की धार्मिक सभा में उसने अन्य धर्मों पर बौद्ध धर्म की विजय का प्रतिपादन करके उसने बौद्ध धर्म को नया जीवन प्रदान किया उसने अनेक स्तूपों और बिहा का निर्माण कराया और जीव हिंसा का निषेध कर दिया।
महान निर्माता- हर्ष कला का महान् संरक्षक था। कुछ विद्वान कहते हैं कि उसके शासनकाल में गुप्त काल की भांति कला की उन्नति हुई। उसके समय में अनेक चैत्य, विहार, मठ, स्तूप और मन्दिरों का निर्माण हुआ था। शाहबाद जिले में मुण्डेश्वरी का अष्टकोणिक मन्दिर, रायपुर जिले का राम लक्ष्मण का मन्दिर, कन्नौज का संघाराम आदि उसी काल की स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। देवी-देवताओं तथा बुद्ध की संगमरमर, स्वर्ण, तीने आदि की प्रतिमायें उस काल की मूर्तिकला की कुशलता और प्रवीणता का स्पष्ट परिचय प्रदान करती है, जिन्हें देखकर उस काल की कला के उत्कर्ष का कुछ आभास मिलता है।
महान साहित्य प्रेमी एवं विद्यानुरागी
हर्ष महान् विद्या प्रेमी था। विद्वानों की मान्यता है कि वह स्वयं उच्च कोटि का विद्वान था ‘रत्नावली’, नागानन्द’ तथा ‘प्रियदर्शिका’ उसके लिखे प्रसिद्ध नाटक है। स्वयं विद्वान होने के साथ ही साथ हर्ष विद्वानों, कवियों और साहित्यकारों का आश्रयदाता था। मुकर्जी का कथन है कि “विद्वानों के अपने उदारतापूर्ण वाहन के द्वारा हर्ष ने उस समय के महानतम् विद्वानों को अपनी सभा में आकर्षित कर लिया था।” उसके दरबार के प्रमुख साहित्यकारों का वर्णन इस प्रकार है
(1) बाणभट्ट – ‘हर्षचरित’ और ‘कादम्बरी’ उसकी ये प्रसिद्ध रचनाएं है। कादम्बरी के बारे में किसी ने कहा है कि वह एक ऐसी मीठी मदिरा है जिसके रसपान के लिए सभी साहित्य प्रेमी व्याकुल रहते हैं। कुछ का मत है कि बाण ने ‘पार्वती परिणय’ तथा ‘चण्डीशतक नामक ग्रन्थों की रचना भी की थी।
(2) मयूर – कुछ विद्वानों ने मयूर को बाण का श्वसुर या साला बतलाया है और बहनोई। कहा जाता है कि अपनी पुत्री के सौन्दर्य का वर्णन करने के कारण वह कुष्ठ रोग से पीड़ित हो कुछ ने उसका गया था। इस अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए उसने सूर्य भगवान की स्तुति में 100 श्लोकों की रचना की थी जो ‘सूर्यशतक’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(3) मातंग दिवाकर – यद्यपि मातंग दिवाकर चण्डाल या तवापि अपनी विद्वता तथा साहित्यानुराग के कारण उसकी गणना बाण, मयूर जैसे उच्च कोटि के रचनाकारों के समान की जाती है।
हर्ष के शासन प्रबन्ध पर एक लेख लिखिए।
(4) भूषणभट्ट- वह बाण का पुत्र था। वह भी उच्च कोटि का विद्वान तथा साहित्यकार था। उसने अपने पिता द्वारा संरचित अपूर्ण कादम्बरी को पूर्ण किया था।
जयसेन- जयसेन भी एक प्रकाण्ड विद्वान था। उसकी विद्वता से प्रभावित होकर हर्ष ने उसे 80 गाँवों का राजस्व दान में दिया था, परन्तु उसने नम्रतापूर्वक इसे लेने से इनकार कर दिया।
भारतीय संस्कृति का सेवक –
हर्ष ने भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के पोषण तथा प्रचार का भी प्रयास किया था। उसके शासनकाल में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विदेशों में खूब प्रचार हुआ। इस काल में तिब्बत, चीन तथा मध्य एशिया के साथ भारत का बड़ा घनिष्ठ सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित हो गया था और इन देशों में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार के दृष्टिकोण से भी हर्ष का शासनकाल बड़ा ही गौरवपूर्ण था।
निष्कर्ष – इस प्रकार महान शासक हर्षवर्धन एक महान विजेता, महान राजनीतिज्ञ, धर्मपरायण, लोकरक्षक, लोकमंगलकारी तथा मंगलकारी कार्यों को करने वाला, महान न्यायिक और विद्वान था। इसके चरित्र में समुद्रगुप्त और अशोक के गुणों का समन्वय था। निःसन्देह वह एक महान शासक था।
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