स्त्रियों की समस्याओं के समाधान हेतु कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं
(1) स्त्रियों को रोजगार में आरक्षण की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। यद्यपि सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जो स्त्रियों के रोजगार में सहायक हैं, फिर भी केवल एक-चौथाई स्त्रियों ही रोजगार में लगी हुई हैं। उन्हें भी अधिकतर ऐसे असंगठित उद्योगों में हैं जहाँ पर उनको उचित पारिश्रमिक नहीं दिया जाता। यास्तव में, रोजगार हेतु स्त्रियों को उसी प्रकार की आरक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है जिस प्रकार की सुविधाएँ आज अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए हैं।
(2) स्त्रियों की समस्याओं के समाधान के लिए जो गैर-सरकारी संगठन कार्यरत हैं, उन्हें पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए क्योंकि सरकार से कहीं अधिक गैर-सरकारी संगठन इन समस्याओं के समाधान हेतु कार्य कर सकते हैं।
(3) पुरुषों और स्त्रियों के विवाह, विवाह विच्छेद आदि के बारे में जो दोहरे नैतिक नियम भारतीय समाज में प्रचलित हैं उनके विरुद्ध जनमत का निर्माण किया जाना चाहिए। यह सत्य है कि भारतीय समाज पितृसत्तात्मक है, परन्तु पितृसत्ता का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि पुरुष अपने लिए जो आदर्श बनाए, स्त्रियों को उनसे वंचित कर दे। अब तक उन्हें वास्तविक समानता (आर्थिक समानता भी सम्मिलित है) नहीं मिलगी तब तक वे इन दोहरे आदर्शों का शिकार बनती रहेंगी।
(4) स्त्रियों की समस्याओं के समाधान हेतु बनाए गए अधिनियम प्रभावशाली ढंग से लागू किए गए हैं। इनमें रह गई कमियों के कारण स्त्रियों की समस्याएँ यथावत् बनी हुई हैं, अतः इन अधिनियमों को पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए। इन अधिनियमों के प्रति सामान्य जनता में चेतना विकसित करने के लिए भी विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।
(5) स्त्रियों की शिक्षा को अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए। सरकार ने स्त्रियों की शैक्षिक स्थिति में सुधार हेतु जो कदम उठाए हैं उनका पूरा लाभ उन्हें नहीं मिल पाया है। इसीलिए वे आज भी पुरुषों से शिक्षा की दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं। शिक्षा का अभाव ही उनमें पाई जाने वाली अनेक अन्य समस्याओं का कारण है। स्त्रियों को दी जाने वाली शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में सहायक हो । सरकार ने भी स्त्रियों को पुरुषों के समान बराबर की भागीदारी निभाने के लिए अनेक ठोस प्रयास किए हैं, जैसे
(1) पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण
स्त्रियों की स्वशासन की संस्थाओं में भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई है, जिससे वे स्थानीय स्तर पर स्त्रियों से सम्बन्धित समस्याओं को उठा सकें।
(2) पैतृक सम्पत्ति में समान भागीदारी
पहले पैतृक सम्पत्ति पर केवल पुरुषों का अधिकार होता था, परन्तु अब सरकार ने कानून पारित करके स्त्रियों को भी सम्पत्ति में समान भागीदार बनाया है। हिन्दू कोड बिल तथा शारदा ऐक्ट के द्वारा इस असमानता को दूर करने का प्रयास किया गया है।
(3) दहेज प्रथा पर प्रतिबन्ध
कानून के द्वारा अब देहज प्रथा पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया है तथा साथ ही इसे दण्डात्मक अपराध घोषित किया गया है। दहेज मांगने वालों तथा दहेज के कारण वधुओं के साथ अमानवीय व्यवहार करने पर सजा देने का पूरा प्रावधान है। इन प्रयासों से स्त्रियों की असमानता में कुछ कमी आई है, परन्तु वर्तमान में भी इस दिशा में सामाजिक जागृति तथा अधिक जागरुकता की आवश्यकता है।
(4) समान वेतन
सरकार द्वारा यह भी प्रावधान किया गया है कि समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान किया जाना चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष इससे भी सियों की दशा में सुधार हुआ है।
(5) स्त्रियों के लिए शिक्षा व्यवस्था
सरकार द्वारा स्त्रियों की दशा में सुधार के उद्देश्य से शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। माध्यमिक स्तर तक स्त्रियों को निःशुल्क करने शिक्षा की व्यवस्था की गई है, जिससे वे पढ़-लिखकर स्वावलम्बी हो सकें तथा असमान व्यवहार के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें। शिक्षा के कारण खियों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न हुई है। सियों के अनेक स्वैच्छिक संगठनों का निर्माण हुआ है। यूरोपीय देशों के स्त्री मुक्ति संगठनों का भारत की स्त्रियों के ऊपर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है।
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(6) अन्य सुविधाएँ समय-
समय पर सरकार ने स्त्रियों के विकास के लिए अनेक – योजनाएँ तथा कार्यक्रमों का निर्माण किया है, जिससे स्त्रियाँ अधिक-से-अधिक स्वावलम्बी बन सकें। इन प्रयासों के कारण स्त्रियों की स्थिति में व्यापक सुधार हुआ है तथा वे अब अपना स्तर पुरुषों के समान समझने लगी है।
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