सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण
आज 21वीं सदी में भी संसार में विशेषकर भारत में सीमान्तकारी महिलाओं की स्थिति कुछ बहुत अच्छी नहीं है। देश के अनेक भागों में आज भी असामनता, शोषण उत्पीड़न बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। इसलिए सम्पूर्ण देश में ऐसी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों का निर्माण करने की आवश्यकता है जिनमें मानव अधिकारों के उपयोग और उनकी वैधानिक मान्यता स्वीकृत हो और उनकी सुरक्षा हो। इनके बिना मानव अधिकारों की सभी घोषणाएँ केवल कागजी होकर रह जायेगी। वे कभी भी साकार रूप धारण नहीं कर पाएंगी।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और समाज के अन्य कमजोर वर्गों की महिलाओं का सशक्तीकरण देश में व्याप्त सामुदायिक और क्षेत्रीय स्तर पर व्याप्त विषमताओं को दूर करने के लिए आवश्यक माना गया। भारत के संविधान में इन समूहों के विकास के लिए अनेक प्रावधान और कई वचनबद्धताएँ व्यक्त की गई हैं। इन संवैधानिक वचनबद्धताओं को पूरा करने के लिए सरकार ने तीन तरफा रणनीति अपनाई है –
शिक्षा के व्यक्तिक्त विकास के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
(क) आर्थिक सशक्तीकरण
सामाजिक और आर्थिक रूप से अभावग्रस्त वर्गों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए रोजगार और आय पैदा करने वाले कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इस सम्बन्ध में निम्न उच्चतम वित्तीय संगठन स्थापित किए गए हैं।
- कृषि और सम्बन्धित क्षेत्र में उत्पादक के रूप में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका के प्रयास किए जा रहे हैं कि उनके लिए प्रशिक्षण व विस्तार कार्यक्रमों के लाभ उनकी जनसंख्या के अनुपात में सुनिश्चित किए जाय
- भारत में गरीबी रेखा के नीचे महिलाओं की संख्या अत्यधिक होने के कारण कई ऐसी योजनाएं लागू की जा रही हैं जो विशेष रूप से उनकी आवश्यकताओं को पूरा करती हो।
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी और पूर्ण सहयोग प्राप्त करने के लिए कार्यस्थल का वातावरण उनके लिए सहायक होना चाहिए, इसके लिए वहाँ पर बाल देखरेख की सुविधा, फ्रेंच तथा वृद्ध और विकलांगों के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (एन. एस. के. एफ. डी. सी.). सफाई कर्मचारियों को आप सृजन करने के लिए वित्तीय सहायता देती है।
- अनुसूचित जाति विकास निगम (एस. सी. डी. सी.), रोजगार सम्बन्धी योजनाओं, कृषि और सम्बन्धित गतिविधियों, छोटी सिंचाई योजनाओं, छोटे उद्योगों, परिवहन, व्यापार आदि को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- बृहत् सहायता प्रदान की जाय ताकि वे औद्योगिक क्षेत्र में विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, खाद्य प्रसंस्करण, कृषि और वस्त्र उद्योग में सहभागी बन सके।
- अनुसूचित जनजाति विकास निगम (एस. सी. डी. सी. एक दिशा निर्धारित करने वाली एजेन्सी के रूप में कार्य इन वर्गों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। ट्राइवल मार्केटिंग डेवलपमेंट फैडरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (ट्राइफेड), आदिवासियों द्वारा निर्मित वन्य उत्पादों और अतिरिक्त कृषि उत्पाद को बाजार प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त विकास निगम (एन एस टी एफ डी सी) इन वर्गो को प्रशिक्षण, लोन, बाजार समर्थन के द्वारा सहायता करता है।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम (एन एस एफ डी सी), विभिन्न आय सृजन करने वाली गतिविधियों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है।
(ख) सामाजिक सशक्तीकरण
शिक्षा अभावग्रस्त वर्गों के सशक्तीकरण का प्रमुख यन्त्र रही है इसलिए इन वर्गों में उत्थान के लिए शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए इस दिशा में निम्न कदम महत्वपूर्ण हैं
- प्रारम्भिक शिक्षा के लिए कई प्रोत्साहन जैसे फीस माफी, निःशुल्क पुस्तकें, मध्याहन भोजन, छात्रवृत्ति दिए जाते हैं। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, नवोदय विद्यालय, राष्ट्रीय प्रतिभा खोज योजना आदि के द्वारा अनुसूचित जनजातियों को लाभान्वित करने का प्रयास किया गया है।
- विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए इन वर्गों के छात्रों को निःशुल्क कोचिंग दी जाती है। या तैयारी कराई जाती है।
- मैट्रिक के पश्चात् उससे आगे की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए छात्रवृत्ति गरीब व कूड़ाकड़कर उठाने जैसे निम्न श्रेणी के कार्यों में लगे वर्गों के बच्चों को शिक्षा देने के लिए दी जाती है। मैरिट योजना को बढ़ावा देने के लिए निदानात्मक कोचिंग दी जाती है। राजीव गांधी राष्ट्रीय छात्रवृत्ति अनुसूचित जाति के छात्रों को उच्च शिक्षा और अनुसंधान करने के उद्देश्य से दी जाती है।
- उच्च प्राथमिक स्तर के बाद सभी लड़के लड़कियों को हॉस्टल की सुविधा ।
- इस दिशा में कुछ सुरक्षात्मक विधि निर्माण भी हुआ है। इस दिशा में नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1995 अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न निषेध) अधिनियम, 1989 तथा अनुसूचित जनजाति तथा अन्य वनवासी (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम, 2006 आदि महत्वपूर्ण है।
- स्वास्थ्य के प्रति सम्पूर्ण दृष्टिकोण जिसमें पोषण व स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल कर जीवन के हर स्तर पर महिलाओं और लड़कियों की आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जा सके।
- महिलाओं के विरुद्ध हर प्रकार की शारीरिक व मानसिक हिंसा के उन्मूलन को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है, चाहे वह घरेलू अथवा सामाजिक स्तर पर हो या फिर परम्पराओं और रीति-रिवाजों के कारण उपजी हिंसा हो।
- भारत का संविधान हर प्रकार के शोषण और सामाजिक अन्याय से गारण्टी देता है। सुरक्षा की
- महिलाओं में रोजगार व्यवसायिक और तकनीकी हुनर का विकास करने के उद्देश्य से महिलाओं व बालिकाओं की शिक्षा तक पहुँच, शिक्षा के क्षेत्र में भेदभाव की समाप्ति, शिक्षा का सार्वभौमीकरण, निरक्षरता उन्मूलन तथा लैंगिक सम्वेदी शिक्षा प्रणाली की दिशा में कई प्रयास किए जा रहे हैं ताकि शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाकर अधिगम को जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया बनाया जा सके।
- महिलाओं के लिए कुपोषण और बीमारियों जैसे खतरों का सामना करने के उद्देश्य से जीवन के हर पड़ाव पर उनकी पोषण स्म्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है।
(ग) राजनीतिक सशक्तीकरण
भारत में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय से ही महिलाएँ चुनाव लड़ने व मतदान करने के अधिकार का उपभोग कर रही हैं। उन्हें सरकार के हर स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार प्राप्त है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन (1993) इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इसके द्वारा ग्रामीण और शहरी स्थानीय शासन में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान कर राजनीतिक व्यवस्था व संरचना में उनकी भागीदारी को बढ़ा दिया है तथा राजनीतिक सत्ता तक उनको समान पहुँच प्रदान कर दी है। इससे सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा मिला है। महिला के लिए लोकसभा तथा विधानसभाओं में सीटें आरक्षित करने सम्बन्धी विधेयक संसद में विचाराधीन पड़ा है।
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