सामूहिक परामर्श प्रविधि
परामर्श की प्रक्रिया मूलरूप में वैयक्तिक होती है, इस प्रक्रिया को सदैव ही वैयक्तिक रूप में आयोजित करना सम्भव है। यही कारण है कि गत तीन दशकों में, समूह निर्देशन विधि का प्रयोग प्रारम्भ हुआ है। लेकिन निर्देशन के कुछ विशेषज्ञ समूह निर्देशन को निर्देशन अथवा परामर्श की संज्ञा देना नहीं चाहते है तथा उन्हें इसमें निर्देशन के वास्तविक स्वरूप की विकृति ही परिलक्षित होती है। डिंकमायर ने समूह निर्देशक को “विकासात्मक समूह परामर्श” कहा है। उसका यह मानना है कि छात्र के स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया की तीव्र एवं प्रभावशाली बनाने का साधन है। इस प्रकार डिंकमायर एवं काल्डवेल ने को “शैक्षिक प्रक्रिया का अंग माना है। उनके अनुसार यह प्रत्येक छात्र को एक ऐसी अन्तवैयक्तिक प्रक्रिया में सम्मिलित होने का अवसर देता है, जिसके द्वारा वह अपने सम-समूह के साथ कार्य करते हुए अपनी विकासात्मक समस्याओं से अधिक सामर्थ्य से समाधान हेतु तैयार होता है।”
‘समूह-निर्देशन एवं समूह परामर्श दोनों शब्दों का अर्थ अलग-अलग है समूह निर्देश के अन्तर्गत, अधिकांश छात्र निष्क्रिय रूप में सम्मिलित हो सकते हैं, जबकि समूह उपबोधन में स्थिति बिल्कुल भित्र होता है। इसमें समूह के छात्रों को सक्रिय सहभागिता के आधार पर परस्पर अन्तक्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करना होता है इस प्रकार समूह-निर्देशन में, समूह उपबोधन की अपेक्षा बड़ा समूह उपयुक्त होता है। उद्देश्यों की दृष्टि से दोनों समान है परन्तु कार्यपद्धति भिन्न-भिन्न है।
कोहन के अनुसार- “समूह परामर्श छोटे समूह के अन्तर्गत अन्तक्रिया पर आधारित अपेक्षाकृत अधिक गहन एवं वैयक्तिक तरीके से सम्पन्न होता है जबकि समूह-निर्देशन की क्रियाओं में अधिकांश बालक मात्र दर्शक होते है, लेकिन वे सीखने में तत्पर होते हैं। समूह परामर्श के सन्दर्भ में दो से छा छात्रों के छोटे समूह में समस्त छात्रों को सक्रिय रूप से सम्मिलित होना आवश्यक है। इसमें परस्पर सम्बन्ध परिवार के समान रहता है, जिसमें समस्त सूचनायें प्रकट नहीं होती है और व्यक्ति अपनी गम्भीर शंकाओं को भी अभिव्यक्ति करने हेतु स्वतंत्र होता है। इस मामले में व्यक्ति अपनी गहनतम शंकाओं को भी अभिव्यक्ति करने का अवसर देते हैं। इस मामले में वैयक्तिक अन्तर्भाविता अत्यन्त महत्वपूर्ण बन जाती है।”
कोहन के उपरोक्त कथन से यह स्पष्ट होता है कि समूह परामर्श की प्रक्रिया के अन्तर्गत सक्रिय सहभागिता, व्यक्तिगत अन्तर्भाविता एवं अन्तक्रिया का होना अत्यन्त आवश्यक है। इस बात का समर्थन करते हुए हित एवं लकी ने लिखा है- “समूह परामर्श के माध्यम से अत्यन्त वैयक्तिक ढंग का अधिगम अनुभव प्राप्त होते है।”
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