सामान्य शिक्षा को उदार शिक्षा भी कहते हैं। इस शिक्षा में बालक का सामान्य स्तर तक विकास करने का प्रयास किया जाता है जिससे बालक को व्यवहार कुशल व सामाजिक बनाया जा सके। 5 शिक्षाशास्त्रियों का विचार है कि सामान्य शिक्षा को मानव को अनिवार्य रूप से ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि सामान्य शिक्षा मनुष्य को पशुवत व्यवहार से ऊँचा उठाने में सहयोग देती है। इस शिक्षा का उद्देश्य बालक को सामान्य जीवन को अच्छे ढंग से जीने हेतु तैयार करना है।
विशिष्ट शिक्षा वह है जो किसी विशेष उद्देश्य हेतु संचालित की जाती है। इस शिक्षा में इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है कि शिक्षा बालक की रुचियों योग्यताओं व क्षमताओं के अनुकूल हो। चूंकि यह शिक्षा बालक को किसी विशेष क्षेत्र अथवा व्यवसाय हेतु तैयार करती है। इस शिक्षा के द्वारा बालक को इस प्रकार के अवसर दिये जाते हैं कि यह अपनी सृजनात्मकता का विकास कर सके और अपने जीवन लक्ष्य तक पहुँच सके। इस दिशा में इस बात का भी प्रयास किया जाता है कि बालक समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहयोग दे सकें और इसके लिए उसे विभिन्न क्षेत्रों में विकसितकिया जाता है।
व्यक्तिगत शिक्षा उस शिक्षा को कहते हैं जो बालक की रुचियों, आश्यकताओं व क्षमताओं के अनुकूल होती है। साथ ही इस शिक्षा में विद्यार्थियों की संख्या पर भी नियन्त्रण रखा जाता है। एक समय में एक हो अध्यापक एक ही छात्र को शिक्षा देता है। इस प्रकार की शिक्षा पर बल मनोवैज्ञानिक विचारधारा पर आधारित है चूंकि मनोवैज्ञानिक शिक्षा में व्यक्तिगत भिन्नता की बात पर बल देते हैं। व्यक्तिगत शिक्षा प्राप्त करते समय बालक को स्वतन्त्र वातावरण प्रदान किया जाता है जिससे उसे ज्ञान को प्राप्त करने में सुविधा होती है।