समाज में व्याप्त समस्याएँ ही समाज का प्रमुख अंग है। सामाजिक समस्यायें सामान्य स्थापित एवं प्रचलित मूल्यों के अस्तित्व में संकट एवं उथल-पुथल उत्पन्न करने वाली स्थितियाँ है। समाजशास्त्र में सामाजिक समस्याओं का अध्ययन दीर्घकाल से किया जा रहा है। समाजशास्त्र में जब हम सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित शोधकार्य करते है तब हमें केवल विभिन्न समस्याओं के विषय में व्यावहारिक जानकारी ही नहीं मिलती वरन उन कारणों की जानकारी भी मिलती है जो समस्याओं के लिये उत्तरदायी होते है। बोटोमोर ने लिखा है, “उन्नीसवीं शताब्दी से संबंधित समाजशास्त्रीय सर्वेक्षण कर जो सूचनायें दी गई, उनकी सहायता से इंग्लैण्ड में सरकार की सामाजिक नीति में एक व्यापक परिवर्तन हुआ।” सामाजिक समस्याओं के समाधान में समाजशास्त्र की उपयोगिता को समझने के पूर्व सामाजिक समस्या के विषय में जानना बहुत आवश्यक है।
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सामाजिक समस्या अर्थ एवं परिभाषा
सामाजिक समस्यायें सामाजिक जीवन में उत्पन्न होने वाली अवांछनीय स्थितियाँ है। सामाजिक समस्यायें समाज में सामंजस्य, सुदृढ़ता एवं सामाजिक मूल्यों के लिये खतरा होती है।
रैब तथा सेल्जनिक के अनुसार, “सामाजिक समस्या का तात्पर्य मानवीय संबंधों में न पड़ने वाली उस बाधा से है जो गंभीर रूप से समाज को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है तथा 5 एक बड़ी संख्या में लोगों को अपने उचित लक्ष्यों को पाने से रोकती है। ”
रिचर्ड मेयर्स के अनुसार, “सामाजिक समस्या को बहुत से व्यक्तियों को प्रभावित करने वाली एक ऐसी दशा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो उनके सामाजिक प्रतिमानों के विरुद्ध है। “
ग्रीन के अनुसार, “सामाजिक समस्या अनेक ऐसी दशाओं की संपूर्णता है जिन्हें समाज में नैतिक आधार पर अधिकांश व्यक्तियों द्वारा अनुचित समझा जाता है।”
प्रस्तुत परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक समस्यायें वे स्थितियाँ है जो समाज में में स्थापित मूल्यों के विपरीत होती है। वे संस्थाओं के प्रभाव को कम करती है तथा लोगों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधायें उत्पन्न करती है।
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सामाजिक समस्या के तत्त्व या लक्षण
सामाजिक समस्या के प्रमुख तत्त्व या लक्षण निम्नानुसार है-
- यह एक कष्टप्रद स्थिति है जो व्यक्ति एवं समाज के विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
- इनसे आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
- यह सामाजिक कल्याण के लिये खतरा होती है।
- इनके निराकरण के लिये लोग सचेत होकर सामूहिक रूप से प्रयत्न करते है।
समाजशास्त्र का एक प्रमुख कार्य सामाजिक समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन कर उनके वास्तविक स्वरूप को जानना, उनके उत्पन्न होने के कारणों को समझना तथा निराकरण हेतु ठोस उपाय खोजना।
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सामाजिक समस्याओं के क्षेत्र में कुछ समाजशास्त्रीय निष्कर्ष-
विभिन्न समाजशास्त्रीय अध्ययनों से यह प्रकट हो चुका है कि समाजशास्त्रीय आधार पर एकत्रित की गई सूचनाओं की सहायता से सामाजिक समस्याओं का समाधान करने में महत्वपूर्ण सफलताओं प्राप्त की गई है। निम्नलिखित उदारणों से यह स्वतः ही स्पष्ट होता है-
(1) इमाइल दुर्खीम- दुर्खीम ने आत्महत्या का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विश्लेषण किया और बताया कि, आत्महत्या का कारण वैयक्तिक न होकर सामाजिक है। वे सामाजिक दशायें ही है जो व्यक्ति को आत्महत्या के लिये बाध्य करती हैं।
(2) बारबरा वूटन- इन्होंने अपराध तथा बाल अपराध जैसी समस्याओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि, जब तक हम इनके वास्तविक कारणों को जान नही लेते तब तक इनका व्यावहारिक समाधान नहीं किया जा सकता है। उन्होंने अपनी पुस्तक सोशल साईन्सेज एण्ड सोशल पैथोलॉजी में अपराध और बाल अपराध की दशाओं का उल्लेख किया है। उनमें कुछ इस प्रकार है-
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- अपराधी परिवार का आकार,
- परिवार में किसी सदस्य का अपराधी व्यवहार में लिप्त होना,
- बदनाम क्लबों की सदस्यता,
- रोजगार की प्रकृति,
- निर्धनता,
- माँ का नौकरी करना,
- स्कूल से भागने की प्रवृत्ति,
- विघटित परिवार,
- स्वास्थ्य का स्तर,
- शिक्षा का स्तर आदि
(3) हरमन मानहीम- इन्होंने अपने अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट किया कि अमेरिका में बढ़ते हुए अपराधों का कारण बाहरी देशों के आकार बसने वाले लोग नहीं है बल्कि अमेरिका में जन्म लेने वाले गोरे लोग ही इसके लिये जिम्मेदार है। इनका बाहरी लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार ही उन दशाओं का निर्माण करता है जो अपराधों के लिये उत्तरदायी है।
(4) सदरलैण्ड- इन्होंने अमेरिका के बड़े और शक्तिशाली व्यापारिक घरानों का अध्ययन किया। अध्ययन के निष्कर्षो के रूप में उन्होंने बताया कि गंभीर और संगठित अपराधों में उनकी प्रमुख भूमिका होती है। लेकिन अपराध करने के बाद भी अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव से पकड़े नहीं जाते और उन्हें दण्ड भी नहीं मिलता। समाज में “सफेद पोश अपराध’ (White Collar Crime) पर लोगों का ध्यान इसी के बाद आकृष्ट हुआ।
(5) चार्ल्स बूथ और राऊंट्री- इन्होंने 19वीं सदी के अंत में औद्योगिक समाज और गरीबी के बीच पाये जाने वाले संबंधों की व्यवस्था की। इसमें श्रम कल्याण के क्षेत्र में जागरूकता उत्पन्न हुई और अनेक श्रमिक समस्याओं के खिलाफ कानूनों का निर्माण किया गया।
भारतीय समाज के संदर्भ में सभी सामाजिक समस्याओं का उल्लेख करना यहाँ संभव नहीं है। फिर भी जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रीयता, निर्धनता, अपराध, बाल अपराध, भ्रष्टाचार, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, बेरोजगारी, स्त्रियों का शोषण, पारिवारिक तनाव आदि अनेकानेक समस्यायें भारतीय समाज में पायी जाती है। इन समस्याओं के निराकरण के लिये समाजशास्त्रीय अध्ययन अत्यंत आवश्यक है।
प्रस्तुत विवेचन से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र और सामाजिक समस्याओं का घनिष्ठ संबंध हैं। सामाजिक समस्याओं का समाधान केवल आर्थिक, राजनैतिक अथवा कानून के आधार पर नही किया जा सकता। इन समस्याओं के समाधान हेतु उनका समाशास्त्रीय अध्ययन महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक समस्याओं के समाधान में समाजशास्त्रीय अध्ययनों की एक उपयोगी भूमिका है।
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