सामाजिक दृष्टि से भारत में शिक्षा के उद्देश्य बताइए।

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सामाजिक दृष्टि से भारत में शिक्षा के उद्देश्य

सामाजिक दृष्टि से भारत के कुछ शिक्षा शास्त्रियों का कहना है कि शिक्षा के उद्देश्य से बालकों में सामाजिक भावना का विकास तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है ये शिक्षाशास्वी समाज को व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। अतः वैयक्तिक उद्देश्य का विरोध ही सामाजिक उद्देश्य है। उनका मानना है कि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है वह अकेला नहीं रह सकता समाज से पृथक उसका कोई अस्तित्व नहीं है। रेमण्ट के शब्दों में “निरसमाज व्यक्ति कोरी कल्पना है।”

वह समाज में पैदा होता है समाज में ही रहता है और समाज में ही अपना जीविकोपार्जन चलाता है। समाज के द्वारा उसकी योग्यता में वृद्धि होती है। बिना समाज के उसका जीना कहिन है। समाज से दूर रहकर वह अपना विकास भी नहीं कर सकता। इसी कारण प्राचीन काल से ही मनुष्य समूह अथवा समाज बनाकर रहता आया है। प्राचीन काल से समाज वैयक्तिक जीवन, धन तथा स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। समाज की उन्नति से मनुष्य मात्र को लाभ होता है और समाज की हानि से उसको क्षति पहुंचती है। समाज से मनुष्य को अधिकार प्राप्त है और वह उन अधिकारों का समुचित उपयोग करता है।

सामाजिक जेण्डर (लिंग) से क्या आशय है ?

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