जेण्डर (लिंग) बनाम जीव-विज्ञान
जेण्डर (लिंग) बनाम जीव-विज्ञान परिवार एवं समाज में लिंगों (पुरुषों अथवा स्त्रियों) के बीच स्थित शारीरिक एवं जैविक अन्तर सार्वभौमिक है। वस्तुतः इस अन्तर का आधार प्रमुखतया जननांगों की बनावट में निहित है। यही नहीं स्त्री पुरुष में लम्बाई-चौड़ाई, आकार-प्रकार, वक्षस्थलों में अन्तर, शरीर में बालों की मित्रता आदि अन्तर भी प्रत्यक्ष रूप में देखें जा सकते हैं। इन दोनों में ये अन्तर प्रायः सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक माने गये हैं। समाज द्वारा इन्हीं सब अन्तरों का लाभ उठाकर एवं जोड़-तोड़ की प्रक्रिया अपनाकर नारी का शोषण किया जाता है, जिसकी परिणति स्त्रियों में असमानता की भावना असुरक्षा की भावना एवं शक्ति को पुरुष तक ही केन्द्रित करने की वृत्तियों के रूप में समाज में सर्वत्र दिखाई देती है।
लैंगिक गुणसूत्रों की भूमिका
स्त्री की जैविक संरचना दो आधारभूत कोशों से होती है, वहीं पुरुष की एक कोश से जिसके परिणाम रोजमर्रा की ज़िन्दगी में देखे जा सकते हैं। मनुष्य के शरीर की कोशिकाओं में तेईस जोड़ गुणसूत्रों के साथ ही एक जोड़ी ‘XXX’ जो इनके जैसी ही दिखती है, लिंग का निर्धारण करती है, यह सीलिंग को सुनिश्चित करती है। पुरुष के गुणों में ‘XY गुणसूत्रों की एक जोड़ी होती है, ‘Y’ गुणसू की एक ऋणात्मक क्रिया है। जब ‘Y’ वाला शुक्राणु एक अंडाणु को निषेचित करता है तो वह मादापन की उस मात्रा को कम कर देता है जिसके कारण मादा भ्रूण बनता है। अपने नरत्व के साथ तब भ्रूण को कई ऐसी दुर्बलताएँ उत्तराधिकार में मिलती हैं जो यौन-सम्बन्ध कही जाती हैं, क्योंकि वे सिर्फ ‘Y’ गुणसूत्र पर मिलने वाले जीनों के कारण होती है। हाइपर ट्राई कॉसिस जैसे विचित्र विकार जिनमें बालों की बहुतायत और छाल जैसी चमड़ी होती है। वास्तव में, ‘X’ गुणसूत्र के एक ऐसे उत्परिवर्तनीय जीन का परिणाम है जिसे ‘Y’ गुणसूत्र दबा नहीं पाता। इसी कारण मनुष्य जाति के नरों में करीब 30 रोग ऐसे पाए जाते है। जो स्त्री में शायद ही कभी मिलते हैं। महिलाओं में दोनों ‘X’ गुणसूत्र होने के कारण स्त्रियों के विकास के लिए एक ही तरह के जीन की दो प्रतियाँ हो जाती हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। पुरुषों का सेक्स हारमोन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के बजाए उनके लिए रोग का खतरा बढ़ाता है। इसका कारण लन्दन स्थित इम्पीरियल कॉलेज स्कूल ऑफ मेडीसिन के शोधकर्ता महिलाओं में संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं यानी टी कोशिकाओं का उत्पादन अधिक होना मानते हैं। 1969 में अपराध शास्त्रियों ने ‘Y’ गुणसूत्र के बारे में नई टिप्पणी की है। उन्होंने पाया है कि हिंसक अपराधों के दोषी कैदियों में ‘XYY गुणसूत्र वाले पुरुषों का अनुपात बहुत ज्यादा था। इन लोगों में मिलने वाला एक फालतू ‘Y’ गुणसूत्र मानसिक क्षमता में कमी से जुड़ा होता है।
(क) केश व हड्डियों की प्रकृति
स्त्री और पुरुष के भेद में स्त्री के छोटे आकार के हल्के ढांचे की बात की जाती है एवं माना जाता है कि उसकी हड्डीया पुरुष की तुलना में बच्चों जैसी होती हैं। स्त्री के विकास में यह वर्णन किसी दोष को इंगित करने की अपेक्षा ज्यादा लचीलेपन और स्थिति के अनुरूप ढलने की क्षमता के रूप में विकासात्मक बढ़ने को प्रदिर्शत करता है।
(ख) अन्तःस्रावी तन्त्र एवं हार्मोनों की भूमिका
गुणसूत्रों के अतिरिक्त विभिन्न शारीरिक लक्षणों के विकास में पूरा अन्तःस्रावी तन्त्र व विभिन हार्मोनों की अन्तःक्रिया भी शामिल होती है। लम्बे समय तक यह स्वीकार किया जाता रहा है कि टेस्टोस्टीरॉन और एड्रोजेन पुरुष लौगिक गुणों की वृद्धि करता है एवं एस्ट्रोजेन स्त्री लैंगिक गुणों की टेस्टोस्टीरॉन जहाँ पुरुषों में मेरकुलाइन बाँडी, मोटी आवाज, बालों का आधिक्य व शारीरिक कठोरता का कारक होता है, ऐस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रोन श्री में चमकीली त्वचा मासिक धर्म और अंडाशय की सक्रियता में सहायक होता है। स्त्रियों का सेक्स, हॉर्मोन एस्ट्रोजेन धमनियों को कड़ा
होने से रोकने वाला और दिल की बीमारियों की सम्भावना को कम करने वाला होता है। यह मस्तिष्क की भी रक्षा करता है।
लैंगिक हार्मोन की शारीरिक व मानसिक क्षमता के व्यवहार के बीच सम्बन्ध अभी सिद्ध नहीं हो पाया है। महिलाओं के रक्त में शरीर की रक्षा प्रणालियों को मजबूत बनाने वाली इम्यूनोग्लारेबिन की मात्रा ज्यादा होती है जबकि पुरुषों के रक्त में हीमोग्लोबिन की यह सत्य है कि पुरुष का शरीर स्त्री के शरीर की तुलना में अधिक गठीला होता है। वे 10 फीसदी अधिक लम्बे, 20 फीसदी अधिक भारी व 30 प्रतिशत अधिक ताकतवर होते हैं। लेकिन स्त्री के शरीर की कुछ खूबियों इन विषमताओं को सन्तुलित करती हैं। स्त्रियों का शरीर थकान को ज्यादा बर्दाशत कर पाता है, वे बिना थके लम्बे समय तक काम कर सकती है। विश्व में जी-तोड़ शारीरिक श्रम करने वाली स्त्रियाँ यह साबित करती हैं कि पुरुषों के मुकाबले मांसपेशियों की कमी उन्हें किसी भी तरह पुरुषों से कमजोर नहीं बनाती आदि मानव के सन्दर्भ में पुरुष । के शक्तिशाली होने के कारण शिकार करने का काम सम्भालना पड़ा, परन्तु स्त्री भी जंगली जानवरों के भय से मुक्त कहाँ थी। यदि पुरुष का कार्य जोखिम भरा और वीरतापूर्ण था तो स्त्री भी निरापद कहाँ थी वैसे ही वह अपने बच्चों के साथ अकेले उठाती थी।
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(ग) मस्तिष्क का आकार
वैज्ञानिक खोजो ने सिद्ध किया है कि स्त्रियों का मस्तिष्क उनके शरीर के आकार के अनुरूप ही छोटा होता है लेकिन उनमें तन्त्रिकाओं का घनत्व पुरुषों की अपेक्षा कहीं ज्यादा होता है। 1966 में इलीनर मैक्कबी ने पचास वर्षों के परीक्षणों को अपनी पुस्तक ‘द डेवलमेन्ट ऑफ सेक्स डिफरेन्सेज’ में लड़के और लड़कियों के सम्पूर्ण बुद्धि परीक्षणों में ग्यारह परिणाम समान पाए, तीन में लड़कियों और तीन में लड़के आगे थे बड़ी उम्र की लड़कियों के परीक्षणों में अधिक निडरता पाई गई। पुरुष का स्त्री से ज्यादा बुद्धिमान होने का कारण, अगर उसकी बुद्धिमानी बेहतर शिक्षा के कारण है, तो खुद को श्रेष्ठ मानना ऐसा ही है जैसे दोनों हाथ बंधे पुरुष को पीटकर साहसी होने का दावा करना। हम लिंगों की हीनता और श्रेष्ठता की बात नहीं कह सकते, सिर्फ अभिरुचियों और व्यक्तित्व में विशिष्ट अन्तरों की बात की जा सकती है। बहुत हद तक यह अन्तर-सांस्कृतिक और अनुभावात्मक घटकों का परिणाम है। सभी मनोवैज्ञानिक अभिलक्षणों में ऐसा परस्पर व्याप्त है कि हमें सियों और पुरुषों के बारे में समूह की रूद्र छवियों के रूप में नहीं व्यक्तियों के तौर पर सोचना होगा।
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