समाजशास्त्र विज्ञान क्यों है? तथा समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में आपत्तियाँ।

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समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति का स्पष्टीकरण राबर्ट वीर स्टीड ने इस प्रकार दिया है-

  1. समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जो सामाजिक घटनाओं, समूहों, सम्बन्धों, प्रक्रियाओं एवं सामाजिक समस्या का अध्ययन करता है।
  2. समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है क्योंकि यह सामाजिक सम्बन्ध का अध्ययन करता है, जो कि अमूर्त है।
  3. सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र एक निरपेक्ष विज्ञान है।
  4. समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का अध्ययन, विश्लेषण एवं निरूपण करता है अत: समाजशास्त्र को एक विशुद्ध विज्ञान माना जा सकता है।
  5. वैज्ञानिक एवं तार्किक आधारों का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का माना जाता है।

अतः उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट रूप में कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है।

कार्ल मार्क्स का रेखीय सिद्धान्त अथवा सामाजिक परिवर्तन का रेखीय सिद्धान्त।

समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में तीन आपत्तियाँ।

समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में कुछ विचारकों द्वारा आपत्तियों की विवरण निम्नलिखित है-

(1) घटनाओं की जटिलता एवं परिवर्तनशीलता- सामाजिक घटनाएँ अमूर्त होती हैं। इन घटनाओं में जटिलता भी पायी जाती है, क्योंकि समाज सदैव परिवर्तनशील रहता है। अतः इनका वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं है।

युवा तनाव का कारण। अथवा युवा सक्रियता या असंतोष के कारण तथा प्रकृति की पूरी जानकारी।

(2) निष्पक्षता (वस्तुनिष्ठता) का अभाव- किसी भी शास्त्र को वैज्ञानिक होने के लिए यह आवश्यक होता है कि उसमें वस्तुनिष्ठता हो, परन्तु समाजशास्त्र में इसका अभाव दिखाई पड़ता है।

(3) घटनाओं के माप में कठिनाई– सामाजिक घटनाओं की प्रवृत्ति अमूर्त एवं गुणात्मक है, जिसके कारण उनकी माप नहीं की जा सकती है। अतः समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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