समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति क्या है? समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में आपत्तियों का वर्णन कीजिए।

समाजशास्त्र की प्रकृति-समाजशास्त्र की उत्पत्ति के बाद से ही समाजशास्त्रियों में इसकी प्रकृति के विषय में मतभेद रहा है। कुछ समाजशास्त्री इसकी प्रकृति को वैज्ञानिक तो कुछ अवैज्ञानिक मानते हैं। ऐसा लगता है कि जिन विचारकों ने समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं माना है, वे सम्भवतः विज्ञान को संकुचित रूप में ही जानते हैं। इनके विचारों में समाजशास्त्र भौतिक शास्त्र अथवा रसायन शास्त्र की तरह नहीं है, अतः यह विज्ञान नहीं है।

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समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में आपत्तियाँ

समाजशास्त्र को विज्ञान मानने में कुछ विचारकों द्वारा आपत्तियाँ की जाती हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है-

(1) घटनाओं की जटिलता एवं परिवर्तनशीलता-सामाजिक घटनाएँ अमूर्त होती हैं। इन घटनाओं में जटिलता भी पायी जाती है, क्योंकि समाज सदैव परिवर्तनशील रहता है। अतः इनका वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं है।

(2) निष्पक्षता (वस्तुनिष्ठता) का अभाव-किसी भी शास्त्र को वैज्ञानिक होने के लिए यह आवश्यक होता है कि उसमें वस्तुनिष्ठता हो, परन्तु समाजशास्त्र में इसका अभाव दिखाई पड़ता है।

(3) घटनाओं के माप में कठिनाई-सामाजिक घटनाओं की प्रवृत्ति अमूर्त एवं गुणात्मक है, जिसके कारण उनकी माप नहीं की जा सकती है। अतः समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

(4) प्रयोगशाला का अभाव-समाजशास्त्र में कोई भी निष्कर्ष अनुमान द्वारा निकाले जाते हैं। इसके लिए उनको किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि कोई भी वैज्ञानिक निष्कर्ष प्रयोगशाला के बिना नहीं निकाला जा सकता है। अनुमान द्वारा निकाले गये निष्कर्ष कई बार गलत भी साबित हो जाते हैं, जबकि प्रयोगशाला में सदैव सही निष्कर्ष प्राप्त होता है। अतः समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं माना जा सकता है।

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समाजशास्त्र विज्ञान है अथवा नहीं

समाजशास्त्र विज्ञान है या नहीं, इस संदर्भ में यह जानना अति आवश्यक है कि विज्ञान से हम क्या समझते हैं? वस्तुत: विज्ञान एक दृष्टिकोण है। किसी समस्या, परिस्थिति या तथ्य को सुव्यवस्थित तरीके से समझने के प्रयास को हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण कह सकते हैं।

इससे यह स्पष्ट होता है कि विज्ञान अपने-आप में एक विषय वस्तु नहीं है, बल्कि समझने या विश्लेषण की एक विधि है। स्टुअर्ट चेज, कार्ल पियर्सन आदि ने भी स्पष्ट रूप से यह कहा है कि विज्ञान का सम्बन्ध पद्धति से है, न कि विषय-वस्तु से।

बर्नार्ड ने विज्ञान को परिभाषित करते हुए छह प्रक्रियाओं का उल्लेख किया है- परीक्षा, सत्यापन, परिभाषा, वर्गीकरण, संगठन तथा अभिविन्यास।

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इस प्रक्रिया में भविष्यवाणी करना और व्यावहारिक जीवन में उसका उपयोग सम्मिलित है। बर्नार्ड द्वारा दी गई इस प्रक्रिया से भी स्पष्ट होता है कि वैज्ञानिकता का सम्बन्ध पद्धति से है, न कि विषय वस्तु से। .

लुंडबर्ग के अनुसार, वैज्ञानिक पद्धति को उपयोग में लाने के लिए निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है-

  1. समस्या का चुनाव
  2. उपकल्पना का निर्माण
  3. अवलोकन करना
  4. वर्गीकरण एवं निरूपण
  5. विश्लेषण एवं व्याख्या
  6. सामान्यीकरण
  7. जाँच या परीक्षण
  8. भविष्यवाणी

अब हम उन तत्वों की चर्चा करेंगें, जो विज्ञान में पाये जाते हैं-

(1) अवलोकन-विज्ञान में अवलोकन का बहुत अधिक महत्व है। गुडे एवं हैट ने लिखा है कि विज्ञान अवलोकन से आरंभ होता है और पुनः उसकी पुष्टि के लिए उसे अवलोकन पर ही आना पड़ता है।

(2) सत्यापन एवं वर्गीकरण-अवलोकन के माध्यम से प्राप्त तथ्यों की सत्यता की परीक्षा की जाती है। अर्थात्, प्राप्त तथ्यों या निष्कर्षों की प्रामाणिकता का पता लगाया जाता है।

(3) सामान्यीकरण-इसके अन्तर्गत तथ्यों के आधार पर किसी सामान्य नियम का जानने की चेष्टा की जाती है। कुछ इकाइयों के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष को समग्र पर लागू करने की चेष्टा की जाती है।

(4) भविष्यवाणी-वैज्ञानिक अध्ययन में भविष्य की घटनाओं का सफलतापूर्वक अनुमान लगाया जाता है। वैज्ञानिक अध्ययन में जो तथ्य हमारे हाथ लगते हैं, उनके आधार पर हम यह अनुमान लगाते हैं कि किन-किन स्थितियों में अमुक घटना घट सकती है।

(5) वैज्ञानिक प्रवृत्ति-अध्ययनकर्ता की प्रवृत्ति भी वैज्ञानिक होनी चाहिए। कम-से-कम समाजविज्ञान में यह तत्व महत्वपूर्ण हो जाता है। अधिकांश स्थितियों में यह देखा जाता है कि अध्ययनकर्ता अपनी तटस्थता रख नहीं पाता और अपने पूर्वाग्रहों से प्रभावित होता रहता है। वैज्ञानिक शोध में अध्ययनकर्ता के व्यक्तित्व का बहुत अधिक महत्व है।

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जब हम एक ओर समाजशास्त्रीय अध्ययन और दूसरी ओर विज्ञान के आवश्यक तत्वों की ओर ध्यान देते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है कि समाजशास्त्रीय अध्ययनों में इन तत्वों का समावेश है। हाँ, इतना अवश्य है कि सभी तत्वों का समावेश समान अंशों में न हो।

इस संदर्भ में जॉनसन के विचारों का उल्लेख भी आवश्यक प्रतीत होता है। उसने चार बिन्दुओं के अंतर्गत इस बात को सिद्ध करने का प्रयास किया है कि समाजशास्त्र एक विज्ञान है। ये चार बिन्दु निम्नलिखित हैं-

  1. समाजशास्त्र अनुभवात्मक है,
  2. समाजशास्त्र सिद्धांतबद्ध है,
  3. समाजशास्त्र एक संचयी ज्ञान है,
  4. समाजशास्त्र मूल्य-निरपेक्ष है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र में वैज्ञानिकता है। यह सही है कि समाजशास्त्रीय अन्वेषणों में सार्वभौम सिद्धान्तों का निर्माण अब भी संभव नहीं है। यह एक कठिन कार्य है। परन्तु इस सीमा के बावजूद समाजशास्त्र को विज्ञान की श्रेणी से नहीं हटाया जा सकता। निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि समाजशास्त्र में वैज्ञानिकता है, अतः यह एक विज्ञान है।

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