समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के मध्य सम्बन्धों – समाजशास्त्र एवं मानवशास्त्र दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। समाजशास्त्र के अन्तर्गत जो भी अध्ययन किया जाता है, वह मानव से ही सम्बन्धित होता है। अतः दोनों आपस में सघन भाव से सम्बद्ध है।
समाजशास्त्र का आरम्भ कैसे हुआ और समाजशास्त्र के विकास में अगस्ट कॉम्टे का क्या योगदान था ?
समानताएं
(1) मानवशास्त्री अपने अध्ययन में समाजशास्त्र के अंतर्गत दी गई अवधारणाओं एवं सिद्धांतों का उपयोग करते हैं।
(2) सामाजिक मानवशास्त्री मुख्य रूप से छोटे-छोटे समुदायों का अध्ययन करते हैं। जैसे- आदिवासी समुदाय में पाई जाने वाली सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। इन अध्ययनों की प्रक्रिया में जिन अवधारणाओं का विकास किया गया है उनका उपयोग समानता है। समाजशास्त्रियों ने भी आधुनिक और जटिल समाओं के अध्ययन में किया है।
(3) पद्धति के आधार पर भी सामाजिक मानवशास्त्र एवं समाजशास्त्र में
(4) सामाजिक मानवशास्त्र, जो कि मानवशास्त्र की एक शाखा है, के कुछ विचारकों के योगदान समाजशास्त्र के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
(5) मानवशास्त्र में मनुष्यों द्वारा निर्मित संस्कृति, सभ्यता आदि का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र में भी इसका अध्ययन किया जाता है।
(6) इन दोनों में ही मानव समूहों के अंतःसम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इस विचार के की पुष्टि हॉवेल ने भी की है।
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के मध्य सम्बन्धों
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। इनके मध्य सम्बन्धों की जानकारी
इस बात से हो जाती है कि यदि हम विभिन्न उत्पादन, वितरण या विनिमय की प्रक्रियाओं को गहराई से से जाँचते हैं तो इनके पीछे सामाजिक सम्बन्धों, रीति-रिवाजों और परंपराओं का प्रभाव पाते हैं। उत्पादन की गति कहीं तेज होती है, तो परंपरागत समाजों में यह गति धीमी होती है; क्योंकि वहाँ के लोग भाग्यवादी होते हैं। सारांश यह है कि आर्थिक और सामाजिक सम्बन्ध आपस में जुड़े हुए हैं, और समय-समय न पर एक-दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं। इनमें एकतरफा सम्बन्ध नहीं होता। दूसरी ओर, यह भी सत्य है कि प्रत्येक सामाजिक सम्बन्धों की जड़ में आर्थिक सम्बन्ध होते हैं। परिवार, जाति, वर्ग आदि में आर्थिक हितों के आधार पर सहयोग एवं संघर्ष पाया जाता है।
कुछ ऐसे सामान्य विषय है जिनका दोनों में ही अध्ययन होता है, जैसे- आर्थिक प्रगति, बेरोजगारी, उद्योगीकरण, श्रम कल्याण, जनसंख्या आदि।
वर्तमान युग मशीनीकरण का है, जो भिन्न-भिन्न उद्यागों में देखा जा सकता है। इसका प्रभाव समाज की विभिन्न संस्थाओं पर गहरे रूप से पड़ा है।
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