समाजशास्त्र एवं सामान्य बोध पर एक टिप्पणी लिखिए।

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समाजशास्त्र एवं सामान्य बोधः

समाजशास्त्र एवं सामान्य बोध समाज का व्यवस्थित और वैज्ञानिक अध्ययन है। इसके विपरीत, सामान्य लोग अपने समाज का जो अर्थ समझते हैं अथवा तरह तरह के समूहों, व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों या व्यवहारों के बारे में उनकी जो जानकारी होती है, वह केवल सामान्य समझ पर आधारित जानकारी होती है जिसका समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कुछ विशेष लेना-देना नहीं होता। अपने समाज के बारे में सामान्य लोगों की जो जानकारी या धारणाएँ होती हैं, वह व्यक्तियों का केवल एक ‘सामान्य बोध’ होता है। वास्तविकता यह है कि अपने सामान्य जीवन में हम जिन लोगों के बीच में रहते हैं, साधारणतया उन्हीं के व्यक्तिगत अनुभवों या कुछ सुनी-सुनाई बातों के आधार पर हमारे मन में तरह-तरह की धारणाएं बन जाती हैं। उदाहरण के लिए गाँव के लोगों की यह आम धारणा होती है कि नगर के लोग बहुत स्वार्थी और चालाक होते हैं। दूसरी ओर नगर के लोग ग्रामीणों को बहुत सरल और एक-दूसरे की सहायता करने वाले लोगों के रूप में देखते हैं। इसी तरह एक सामान्य धारणा यह है कि निर्धन व्यक्ति अधिक अन्धविश्वासी होते हैं जबकि सम्पन्न लोगों के प्रति आम धारणा यह है कि उनके व्यवहार अधिक तार्किक होते हैं।

यदि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस तरह की धारणाओं का सच होना हमेशा जरूरी नहीं होता। गाँवों में बढ़ती हुई शिक्षा और राजनीतिक सहभागिता के कारण यह सम्भव है कि गाँव और नगर के निवासियों की मानसिकता में अधिक अन्तर न रह गया हो। इसी तरह आज आर्थिक रूप से सम्पन्न वर्ग में जिस तरह मानसिक तनाव बढ़ रहे हैं, उसके कारण धार्मिक आयोजनों में उनकी सहभागिता बढ़ने के साथ ही उनमें भी तरह-तरह के काल्पनिक विश्वास बढ़ते जा रहे हैं। आम धारणा है कि हिन्दुओं की अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी है। इसके विपरीत, जब हम लोगों की भोजन सम्बन्धी रुचियों का आनुभाविक आधार पर अध्ययन करते हैं तो स्पष्ट होता है कि हिन्दुओं में आज बहुत

बड़ी संख्या उन लोगों की है जो किसी-न-किसी रूप में मांसहारी हैं। एक आम धारणा अथवा समझ यह भी है कि वर्तमान समाज में नैतिकता का बहुत तेजी से पतन हो रहा है। दूसरी ओर जब हम नैतिकता के विभिन्न मानदण्डों के आधार पर इसका मूल्यांकन करते हैं तब कोई ऐसा निष्कर्ष सामने आ सकता है कि मानवीय मूल्यों, समाज सेवा के प्रति बढ़ती हुई चेतना तथा नागरिक कर्तव्यों में होने वाली वृद्धि के आधार पर वर्तमान समाजों को पहले की अधिक नैतिक कहा जा सकता है। तुलना में

समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित सामान्य बोध पर निर्भर नहीं होता बल्कि व्यवस्थित रूप से यह जानने में हमारी सहायता करता है कि विभिन्न व्यक्ति किन आधारों पर एक-दूसरे से सम्बन्धों की स्थापना करते हैं तथा लोगों की मनोवृत्तियों और व्यवहारों को प्रभावित करने वाली वास्तविक दशाएँ क्या हैं। समाजशास्त्र पर आधारित ज्ञान के आधार पर सामान्य बोध से सम्बन्धित कुछ मान्यताएँ सही भी हो सकती हैं लेकिन समाजशास्त्रीय अध्ययन हों। के द्वारा उन्हें तभी स्वीकार किया जाता है जब वे यथार्थ अनुभव और तर्क पर आधारित

एन्थोनी गिडेन्स ने अपनी पुस्तक ‘Introduction of Sociology’ (समाजशास्त्र का परिचय) में विभिन्न प्रकार की सामाजिक दशाओं से सम्बन्धित सामान्य बोध के अनेक ऐसे उदाहरण दिए हैं जिनसे यह समझना आसान हो जाता है कि लोगों का सामान्य बोध किस तरह समाजशास्त्रीय बोध से भिन्न होता है। लोगों की एक सामान्य धारणा यह है कि विभिन्न समूहों की आर्थिक असमानताएँ उनके स्वास्थ्य के स्तर को प्रभावित नहीं करतीं। दूसरी ओर समाजशास्त्रीय अध्ययन यह स्पष्ट करते हैं कि किसी समूह के लोगों की सामाजिक दशाओं का उनके स्वास्थ्य के स्तर से गहरा सम्बन्ध मलिन बस्तियों की सामाजिक दशाएँ व्यक्ति के स्वास्थ्य के स्तर को उसकी आर्थिक स्थिति की तुलना में कहीं अधिक प्रभावित करती हैं।

गिडेन्स के अनुसार एक सामान्य समझ यह है कि दुनिया के सभी समाजों में रोमांस पर आधारित व्यवहार मनुष्य की एक सहज प्रवृत्ति है। इसके बाद भी ऐसा बोध सभी समाजों के लिए सही होना जरूरी नहीं है। इसका उद्राहरण भारत सहित संसार के अनेक वे देश हैं जहाँ विवाद सम्बन्धों का निर्धारण परिवार द्वारा किया जाता है तथा जिस दशा को हम रोमांस की सहज प्रवृत्ति कहते हैं, वह पति-पत्नी के बीच तक ही सीमित रहती है।

भारत में कुछ समय पहले तक यह आम समझ थी एक स्वस्थ पारिवारिक जीवन के लिए संयुक्त परिवार व्यवस्था अनिवार्य है। वर्तमान दशाओं में जब संयुक्त परिवारों की जगह एकांकी परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी तो इस सामान्य समझ का कोई समाजशास्त्रीय महत्व नहीं रहा। गिडेन्स ने आत्महत्या जैसे व्यवहार का उदाहरण देते हुए लिखा है कि लोगों की सामान्य धारणा यह होती है कि व्यक्ति जीवन की असफलताओं और व्यक्तिगत कष्टों के कारण ही आत्महत्या करता है। इस तरह की दशाएँ दुनिया के सभी समाजों में होने के कारण सभी जगह आत्महत्या करता है। इस तरह की दशाएँ दुनिया के सभी समाजों में होने के कारण सभी जगह आत्महत्या करता है। इस तरह की दशाएं दुनिया के सभी समाजों में होने के कारण सभी जगह आत्महत्या की घटनाओं का प्रतिशत लगभग एक जैसा होता है। इसके विपरीत, समाजशास्त्रीय

अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ कि पिछले कुछ समय से उन ग्रामीणों और जनजातीय समुदायों में भी आत्महत्या की घटनाएँ तेजी से बढ़ती जा रही हैं जो इसके बारे में सोचते भी नहीं थे। इसका कारण लोगों पर बैंकिंग सुविधाओं के कारण ऋण का बढ़ता हुआ बोझ, सामाजिक संरचना से | सबन्धित वर्तमान तनाव और जीवन की असफलताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना है।

समाजशास्त्र की प्रकृति को निर्धारित कीजिए।

हारलम्बोस ने सामान्य बोध तथा समाजशास्त्रीय बोध का अन्तर

स्पष्ट करने के साथ ही इनकी पारस्परिक निर्भरता पर भी प्रकाश डाला है। उनके अनुसार, एक सामान्य समझ के रूप में समाजशास्त्र के बारे में अनेक भ्रामक धारणाएँ होने के बाद भी उनमें सत्यता का भी कुछ अंश होता है तथा एक विशेष विज्ञान के विकास में अक्सर ऐसी धारणाएँ उपयोगी भी हो सकती हैं।

हारलम्बोस ने इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि एक सामान्य समझ यह हूँ कि मनुष्य के व्यवहार सीखे हुए होते हैं, जबकि कीड़ों और पशुओं के व्यवहार कुछ जन्मजात प्रेरणाओं से प्रभावित होते हैं। एक सामान्य समझ के रूप में इस धारणा में सच्चाई का कुछ अंश जरूर है यद्यपि इससे सम्बन्धित वास्तविकता कहीं अधिक जटिल है। उदाहरण के लिये, दीमक और मधुमक्खी जैसे सामान्य कीड़ों से लेकर कुछ उन्नत किस्म के नरवानरों के बारे में जा अध्ययन किए गये, उनसे स्पष्ट होता है कि उनके व्यवहार जन्मजात प्रेरणाओं से प्रभावित होने के बाद भी उन पर सीख और अनुकरण का भी प्रभाव पड़ता है।

इसी तरह एक सामान्य समझ यह है कि अपने अस्तित्व के लिए मनुष्य उन व्यवहारों पर निर्भर रहता है जो सीखे हुए होते हैं तथा जिनका सम्बन्ध मानव की सांस्कृतिक विशेषताओं से होता है। वास्तव में मनुष्य के न तो सभी व्यवहार अपनी संस्कृति से प्रभावित होते हैं और न ही उन सभी का उद्देश्य सदैव सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना होता है। इसके बाद भी जब हम एक सामान्य समझ के रूप में संस्कृति और मानव व्यवहारों के सम्बन्ध की बात करते हैं तो मानव और उसकी संस्कृति को समझने के प्रति हमारी जागरूकता बढ़ने लगती है।

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